Wednesday, December 29, 2010
Tuesday, December 28, 2010
रक्षाबंधन या सुहागरात
मेरी दीदी का नाम नीतू है, वो मुझसे तीन साल बड़ी है, उनका रंग गोरा चिट्टा है और हाँ उनके होंटों के नीचे एक काला तिल है, जिसकी वजह से वो बहुत सेक्सी लगती है! उनकी शादी एक अनिवासी भारतीय लड़के से यानि कि मेरे जीजा जी से हो गई, जो कि दुबई में नौकरी करते हैं ! दीदी उन्हीं के साथ रहती है। वैसे तो वो दोनों बहुत खुश रहते हैं मगर शादी के दो साल गुजर जाने के बाद भी उनकी कोई औलाद न होने से दीदी उदास सी रहती है!
मेरा नाम राज है मैं भी एक अनिवासी भारतीय हूँ और कनाडा में एक कम्पनी में जॉब करता हूँ। यहाँ आने से पहले मेरे माँ-बाप का स्वर्गवास हो गया था इसलिए दीदी, जीजाजी के सिवा मेरा और कोई नहीं है!
एक दिन मैं अपने जीजा जी के साथ फ़ोन पर बात कर रहा था तो बातों ही बातों में मैंने जीजा जी को दीदी के साथ अपने पास घूमने आने का निमंत्रण दे दिया। तभी जीजाजी ने यह कह कर टाल दिया कि उनको अभी छुट्टी नहीं मिल सकती, उन पर कम्पनी के काम का बहुत भार है।
थोड़ा रुकने के बाद जीजा जी ने कहा- मैं कुछ दिनों के लिए तेरी दीदी को तेरे पास भेज देता हूँ, उसकी नौकरी भी छुट गई है, सारे दिन भर घर में बोर हो जाती है, वो पहले से काफी उदास सी रहने लगी है, कुछ दिन पहले तुझे ही याद कर रही थी, शायद वो तुझको देखना-मिलना चाहती है। वैसे भी राखी का त्यौहार नजदीक आ रहा है, दोनों भाई-बहन मिल भी लेना और उसको कहीं घुमा भी देना, शायद इसी बहाने उसका मन ही बहल जाए !
मैंने कहा- ठीक है जीजा जी ! जैसा आप कहें !
और कुछ दिन बाद वो दिन भी आ गया जब दीदी मेरे पास आने के लिए दुबई से रवाना हुई। मैं भी दीदी को लेने के लिए ठीक समय पर एयरपोर्ट पहुँच चुका था। कुछ समय बाद दीदी की फ्लाईट लैण्ड होने की घोषणा हुई। मैंने अपनी आँखें एग्जिट-गेट पर जमा दी।
कुछ समय बाद मैंने दीदी को लोगों के साथ बाहर आते देखा तो मैं दीदी को देखता ही रह गया। सच क्या लग रही थी दीदी ! मैंने कभी भी दीदी को इस रूप में नहीं देखा था। उन्होंने ऊँची ऐड़ी की सेंडल पहनी हुई थी और काले रंग की फेंसी साड़ी और हाफ कट वाला ब्लैक ब्लाउज़ पहना हुआ था। ब्लाउज़ का गला काफी खुला और बड़ा होने से उनके आधे नंगे स्तन ऊपर से साफ दिखाई दे रहे थे। उनके वक्ष के ऊपर एक काला तिल था जो अलग ही चमक रहा था जैसे दूध में मक्खी !
तभी दीदी की नज़र मुझ पर पड़ी तो मैंने हाथ हिला कर उनको अपने होने का इशारा किया और दीदी ने एक हल्की सी मुस्कान देकर मेरी ओर बढ़ी और मेरे नजदीक आकर मेरे गले लगने लगी। मैंने भी मोके का फ़ायदा उठाया और दीदी की नंगी गोरी चिकनी कमर को अपने दोनों हाथों से सहलाते हुए जकड़ लिया। वहाँ खड़े सारे लोग शायद यही सोच रहे होंगे कि हम पति पत्नी हैं। फिर मैंने दीदी का सामान उठाया और हम दोनों घर की ओर चल दिए !
घर पहुँच कर दीदी फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चली गई ( क्यूँकि गर्मी के दिन थे और मेरी दीदी को बहुत पसीना आता है और वो तो उस दिन पसीने से बहुत भीग चुकी थी) मैंने दीदी जी का सामान सेट कर दिया और थोड़ी देर बाद दीदी भी फ्रेश हो कर बाथरूम से बाहर आ गई !
जैसे ही मैंने उनको देखा तो मेरी आंखें फटी की फटी रह गई। दीदी सिर्फ पेटीकोट-ब्लाउज़ में ही बाथरूम से बाहर आ गई थी। काले पेटीकोट और ब्लाउज में उनका गोरा-गोरा अंग एकदम सोने की तरह चमक रहा था। दीदी को देख कर मेरे अंदर थोड़ी अजीब सी घबराहट होनी शुरु हो गई। मैं दीदी को न चाह कर भी देखना चाहता था ! मैं कभी दीदी के वक्ष के ऊपर विराजमान काले तिल को देखता तो कभी उनकी नंगी कमर को, तो कभी उनके नाड़े वाले नंगे हिस्से को !
तभी दीदी ने मेरे पास आकर मेरे सर में प्यार से हाथ फेर कर पूछा- किया हुआ भईया? कहाँ खो गए ?
मैं थोड़ा घबरा कर और शरमा कर बोला- कुछ नहीं दीदी ! बस मैं..... आप काले कपड़ों में बहुत सुंदर लगती हो !
दीदी समझ गई कि मैं क्यों ऐसे बोल रहा हूँ। दीदी शरमा कर बोली- भाई मैं क्या करूं, बहुत गर्मी है और साड़ी में बहुत घुटन हो रही थी, इसलिए मैंने साड़ी अलग निकाल दी!
मैं बोला- दीदी कोई बात नहीं, हम दोनों के सिवा और कोई भी नहीं है यहाँ पर ! और मैं बिल्कुल फ्रैंक लड़का हूँ, तुम निश्चिंत रहो, मैं तालिबानी जैसा भी नहीं हूँ कि जो अपनी इतनी सुन्दर दीदी को बुरके में पसंद करे !
दीदी हंस दी और बोली- भईया, तू तो बहुत शैतान हो गया है ! चल जल्दी से तू भी नहा धो ले ! आज राखी है राखी नहीं बंधवानी क्या !
फिर मैं भी बाथरूम मैं नहाने चले गया। बाथरूम में बहुत ही अच्छी खुशबू आ रही थी। आज से पहले कभी ऐसी खुशबू बाथरूम में नहीं थी ! मैं समझ गया कि यह खुशबू दीदी के बदन की है! आज मैं इस खुशबू में समां जाना चाहता था और मैंने पहली बार अपनी दीदी के बारे में कर उनके नाम की मुठ मार दी। इसका एक अलग ही आनंद आया और जब मैं बाथरूम से नहा धो कर बाहर आया तो दीदी बोली- क्या बात है, बड़ी देर लगा दी तूने?
मैं बोला- क्या करूँ दीदी जी ! आज मेरा तो बाथरूम से बाहर आने का मन ही नहीं कर रहा था !
दीदी बोली- क्यों ?
मैं चुप रहा और मैंने दीदी को एक स्माइल दी ! दीदी भी शायद मेरा इशारा समझ गई थी और वो शरमाकर बोली- लगता है अब जल्द से जल्द तेरे लिए एक लड़की तलाशनी पड़ेगी ! बोल मेरे राजा भइया, तुझको कैसी लड़की पसंद है, मैं अपने राजा भइया के लिए वैसी ही लड़की लाउंगी !
मैं दीदी से बोला- सच !
दीदी हँस कर बोली- मुच !
मैंने तुंरत ही दीदी का हाथ पकड़ा और उनको शीशे के आगे ले जा कर बोला- मुझे ऐसी लड़की चाहिए !
दीदी थोड़ी शरमा कर बोली- पागल ऐसी लड़की लायेगा तो सुहागरात के बदले रक्षा बंधन मनाना पड़ेगा तुझे !
और जोर जोर से हँसने लगी!
मैं दीदी के पीछे की तरफ खड़ा था और दीदी मेरे आगे थी। हम दोनों भाई बहन एक दूसरे को शीशे में देख कर बातें कर रहे थे !
मैं बोला- दीदी अगर आप जैसी सुंदर लड़की मुझे मिल जाए तो मैं उससे राखी भी बंधवाने के लिए तैयार हूँ !
दीदी बोली- ऐसा क्या है मुझमें जो तू अपनी दीदी का इतना दीवाना हुआ पड़ा है ! क्या देखा तूने मुझमें ?
मैं बोला- दीदी आप गुस्सा तो नहीं होंगी ना !
दीदी बोली- मैं आज तक अपने राजा भइया से गुस्सा हुई हूँ जो अब होंऊगी !
मैं बोला- दीदी ! मैं सच में तुम्हारा दीवाना हूँ !
जब से मैंने तुम्हें एयर पोर्ट पर देखा है, मैं तुम्हारा दीवाना हो गया हूँ। पता नहीं क्यों मैं तुम्हें पाना चाहता हूँ, तुम्हें छूना चाहता हूँ, तुम्हें तुम्हारे नाज़ुक होटों के नीचे काले तिल का अहसास दिलाना चाहता हूँ !
और मैंने आव देखा न ताव ! और दीदी की गर्दन के नीचे प्यार से एक किस कर दिया। दीदी मुझे शीशे में देख रही थी और वो वैसे ही खड़े रह कर मेरे गाल पर प्यार से हाथ फेरने लगी ! मैंने भी दीदी को अपने दोनों हाथों से आगे से जकड़ लिया और दीदी ने अपनी दोनों आँखें बंद कर ली जिससे मेरा थोड़ा और साहस बढ़ा और दीदी के कान में मैंने हल्की सी आवाज में ' आई लव यू दीदी ' बोल दिया और बोला- अगर आप मेरी बहन न होती तो मैं आप को ज़रूर प्रपोज़ करता ! आप कितनी सुंदर हो ! मैंने आप सी सुंदर कोई लड़की नहीं देखी ! हम भाई बहन क्यों हैं ?
दीदी ने अभी तक अपनी आँखें बंद कर रखी थी क्योंकि मैं उनके पेट पर, नाभि पर हल्का-हल्का हाथ फेर रहा था। अचानक मैंने दीदी के पेटीकोट के नाड़े की तरफ हाथ बढ़ाया तो दीदी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और गर्दन हिला कर मना करने लगी और बोली- भईया मैं तुम्हारी बहन हूँ !
मैंने बोला- मैं जानता हूँ ! आज मैं सारे रिश्तों को भुला देना चाहता हूँ, तुम मेरी हो और मैं आज अपनी बहन की बाँहों मैं समा जाना चाहता हूँ !
दीदी बोली- किसी को मालूम चल गया तो समाज में हमारी थू-थू हो जायेगी !
मैंने कहा- हमें समाज देखने थोड़े ना आ रहा है !
दीदी चुप हो गई और कुछ सोचने के बाद मेरे से लिपट गई और रोने लगी।
मैंने पूछा- दीदी क्या हुआ? क्यों रो रही हो ?
तो बोली- मैं बहुत प्यासी हूँ ! तेरे जीजाजी से मुझे वो खुशी नहीं मिली जो हर औरत को शादी के बाद अपने पति से मिलती है !
मैं बोला- दीदी साफ साफ बताओ ना ! मैं समझ नहीं पा रहा हूँ !
वो बोली- तेरे जीजा जी मर्द नहीं हैं !
यह सुनकर मुझे तो पसीना आ गयाऔर मैं अंदर ही अंदर सोचने लगा- यानि कि दीदी अभी कुँवारी हैं और उनकी सील भी नहीं टूटी !
मैंने दीदी के आँसू को अपनी जीभ से चाट कर साफ किया और बोला- दीदी ! तुम चिंता मत करो मैं हूँ ना ! तुम बस मुझको यह बताओ कि तुम मुझको पसंद करती हो?
दीदी बोली- जान से भी ज्यादा !
क्या तुम मुझे भाई की जगह अपना पति मानोगी? मैं तुम्हें हर वो खुशी दूंगा जो तुम चाहती हो !
दीदी ने फ़ौरन मेरे होटों पर किस कर दिया और बोली- आज से तुम ही मेरे पति हो ! मेरा तन-मन सब तुम्हारा है ! जो तुम बोलोगे, वो मैं करूंगी !
मैंने दीदी को बोला- आज मैं तुमसे शादी करूंगा !
यह सुन कर दीदी जल्दी से सिंदूर और अपना मंगल सूत्र ले कर मेरे पास आ गई। मैंने उनकी मांग भर कर मंगल सूत्र उनके गले में पहना दिया।
दीदी बोली- भइया ! मैं अपने कमरे में जा रही हूँ, तुम थोड़ी देर बाद कमरे के अंदर आ जाना ! मैं तुम्हारा इन्तजार करूंगी !
और जब मैं थोड़ी देर बाद दीदी के कमरे में गया तो दीदी सज-संवर के अपने शादी के जोड़े में घूँघट ओढ़े पलंग पर बैठी मेरा बेसबरी से इंतजार कर रही थी। मैं दीदी के पास गया और प्यार से उनका घूँघट उठाया और उनकी ठुडी को अपने हाथ से ऊपर उठाने के साथ ही उनके होटों का चुम्बन ले कर बोला- ओह दीदी ! आई लव यू ! मैंने आज तक तुम जैसी सेक्सी लड़की नहीं देखी !
और उनके होटों के नीचे वाले काले तिल को अपने दाँतों में बुरी तरह दबोच लिया और चूसने लगा। दीदी को दर्द हो रहा था मगर दीदी मुझ से भी ज्यादा प्यासी थी, उसे दर्द में भी मज़ा आ रहा था।
तभी मैंने दीदी के ब्लाउज़ को अपने दोनों हाथों से फाड़ दिया और उनके गोरे गोरे आम के जैसे बूब्स बाहर आ गये। मैं उनको चूसने लगा। थोड़ी देर बाद दीदी ने मेरी पैन्ट की ज़िप खोल कर मेरे लंड को बाहर निकाला और अपने कोमल गोरे हाथों से उसे सहलाने लगी। कुछ देर बाद जब मेरा लंड लौड़ा बन गया तो उसको अपनी जीभ से चाटने, सहलाने लगी और होटों से रगड़ कर उसे खड़ा कर दिया !
हम दोनों भाई बहन नंगे थे, मैंने दीदी को बिस्तर में लिटा दिया और उनकी चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा।
दीदी ओह माय भईया डार्लिंग ! आई लव यू ! बोल रही थी।
मैंने अपनी दीदी को गीध की तरह नौचना शुरु कर दिया। कुछ देर बाद जब मैंने अपनी बहन की चूत में अपना लौड़ा डाला तो दीदी ने उई माँ ! बोल कर मुझको जोर से जकड़ लिया और मुझको फ्रेंच किस करने लगी और अपने दोनों हाथों को मेरे चूतड़ों पर रख कर भइया और जोर से ! और जोर से ! बोलने लगी।
कुछ देर बाद मैंने दीदी को डौगी स्टाइल में चोदना शुरू किया। दीदी के गद्देदार चूतड़ को देख मैं ललचा गया और उनके चूतड़ चाटने लगा। दीदी को मैंने सारी रात चोदा !
सुबह जब मैं जागा तो दीदी मेरे लंड को चूस रही थी, मुझको प्यासी आँखों से देख रही थी और मेरा लौड़ा खड़ा करके उसके ऊपर बैठ गई और फिर दुबारा से मैंने दीदी को चोदना शुरु कर दिया।
हम दोनों चार साल बीत जाने के बाद भी हमेशा एक दूसरे के साथ सेक्स में डूबे रहते हैं।
सच अपनी बहन के साथ कितना मजा आता है, मैं क्या बताऊँ !
अब हम दोनों भाई बहन एक पति पत्नी की तरहं जिन्दगी जी रहे हैं। मेरी दीदी से मेरी एक लड़की हुई है .....
Sunday, December 26, 2010
छोटी बहन को चोदा
आगे कुछ कहूँ इस से पहले थोड़ा परिचय करवा दूं ? मेरी फेमिली में मैं हूँ माताज़ी है पिताजी है और सोलह साल की छोटी बहन है रिया. हम भाई बहन एक दूजे से बहुत प्यार कर ते हें और छेड़ छाड़ भी कर लेते हें. बचपन में हमें एक दूजे को नंगे भी देखे थे. जब रिया चौदह साल की हुई तब उस का बदन जवान होने लगा. उस के खिल ते हुए स्तन और भारी नितंब मेरी नज़रों से छुपे ना रहे थे. इन सब के अलावा रिया को चोद ने का ख़याल तक मेरे दिमाग़ में आया नहीं था.
अब ये जो माधवी है वो मेरी मौसी की बेटी है कई साल पहले मौसा ईस्ट आफ़्रीका चले गये थे. वहाँ उन्हों ने बहुत पैसे कमाए. उन के दो बच्चे परेश और माधवी वहीं जन्मे और बड़े हुए. वो दोनो एक रेसीड़ेनशियल स्कूल में पढ़े.
अचानक मौसा को स्वदेश वापस आना पड़ा. अपने गाँव में चार मज़ले का बड़ा मकान बनवाया उन्हों ने. गरमी क छुट्टियों में मौसी ने मुझे अपने गाँव बुलाया था. मैं दो हपता रहा. उस दौरान मैने माधवी को कस कर चोदा. ये राझ हम किसी को नहीं बताएँगे ऐसा वचन दिया लिया हम दोनो ने.
अभी एक महीने पहले रिया मौसी के घर गयी थी. माधवी ने कुछ व्रत रक्खा था. सात दिन रह कर रिया वापस आई तब रिया रिया नहीं रही थी, इतनी बदल गयी थी. एक तो वो मुझ से शरमा ने लगी थी. नखरें दिखती थी. जब मौक़ा मिले तब मुझे छू लिया करती थी. स्कूल में यूनिफ़ोर्म कंपलसरी था लेकिन घर में अब वो चोली, घाघरी और ओढनी डाल ने लगी थी. मेरे ख़याल से जब वो घर होती थी तब ब्रा नहीं पहनती थी. बड़े आम की साइझ की उस की चुचियाँ वैसे भी बड़ी लुभावनी थी, अब ज़्यादा हो गयी क्यूं की वो ओढनी का आँचल संभाल ती नहीं थी और चोली भी लो कट पहन ती थी. कई बार उस की गोरी गोरी चुचियाँ देख ने का मौक़ा मिला मुझे.
वैसे भी मैं माधवी की याद से परेशन तो था ही. उस की चूत मैं रोज़ सपनों में मार लिया कर ता था. दिन भर उस के रसीले होठ और कड़ी चुचियाँ याद आया करती थी. ऐसे में रिया अजीब सा वर्तन कर ने लगी पहली बार रिया को बाहों में भर कर उस के स्तन मसल देने की इच्छा हुई. फिर मैं संभाल गया. ये क्या ? रिया मेरी छोटी बहन है इस के बारे में ऐसा सोच भी कैसे सकता था मैं ?
इस उलझन हल कर दी रिया ने, हुआ क्या की गाँव में एक संत पधारे सात दिन की कथा के लिए हर रोज़ शाम के चार से छे बजे तक कथा चलती थी. मताज़ी हर रोज़ कथा सुन ने जाया करती थी. एक दिन ------
मैं तीसरे मज़ले पर मेरे कमरे में बैठा पढ़ रहा था की रिया स्कूल से आ गयी कई देर तक छोटी बच्ची की तरह वो दरवाज़े पर खड़ी छुपा छुपी देखती रही. मैने कहा : कौन है ? आ जाओ अंदर.
दबे पाँव जैसे डरती हो, वो चली आई. हाथ मलती हुई नीची नज़र किए मेरे पास खड़ी हो गयी मैने पूछा : क्या बात है रिया ? परेशन क्यूं हो ? रोती सूरत बना कर वो बोली : भैया, मुझे बहुत बेचैनी लग रही है
मैं : सेहत तो ठीक है ना ?
रिया : पता नहीं. सारा दिन दिल धक धक कर ता है अभी भी करता है देखिए ना
मैं कुछ कहूँ इस से पहले उस ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रख दिया और दबा दिया. मेरे पन्जे में उस की दाइ चुचि पकड़ी गयी पल भर के लिए मुझे लगा की मैने माधवी की चुचि पकड़ ली है इसी लिए थोड़ी सी दबा भी ली. जब होश आया तब पता चला की रिया ने मेरा हाथ छोड़ दिया था फिर भी मेरा हाथ चुचि पर लगा रहा था. एक झटके से मैने हाथ हटा दिया.
शर्म से उस का चहेरा लाल लाल हो गया था और वो दाँतों से होठ काट रही थी. वो बोली : कैसी है मेरी चुचि ? पसंद आई ?
मैं : ग़लती हो गयी चली जा यहाँ से.
रिया : ऐसा भी क्या करते हें आप ? मैं आप को पसंद नहीं हूँ ?
मैं : पसंद क्यूं ना हो ? मेरी छोटी बहन जो हो.
रिया : बस इतना ही ? बहन से ज़्यादा कुछ नहीं ?
मैं : क्या मतलब?
रिया : अभी आप ने मेरी चुचि दबा देखी, पसंद आई ?
मैं : रिया, चली जा. हम भाई बहन हें, ऐसा नहीं करना चाहिए.
रिया : क्या कर लिया है हम ने? ज़रा सी चुचि दबा दी तो क्या आसमान गिर पड़ा ? लाइए आप का हाथ
उस ने फिर से मेरा हाथ पकड़ कर स्तन पर रख दिया. वो इतनी क़रीब आ गयी थी की उस की जाँघ मेरी जाँघ से लग रही थी. मुझे लगा की वो मुझ से अपना स्तन दबवाना चाहती थी. मुझे भी मीठा लग रहा था. मैने पन्जे में ले कर स्तन सहलाया और धीरे से दबाया. उधर मेरा लंड खड़ा हो ने लगा.
मैं हाथ हटा लूं इस से पहले वो ऐसे घूम गयी की मेरी गोद में बैठ गयी उस ने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी, मेरा दूसरा हाथ उस की कमर से लिपट गया. तब मुझे पता चला की वो रो रही थी. मैने उस के आँसू पोंछे और कहा : जो हुआ सो हुआ, रो मत
मेरे सीने में चहेरा छुपा कर वो बोली : भैया, मैं माधवी दीदी से कम हूँ ? उन में क्या है जो मुझ में नहीं है ?
मैं चोन्क पड़ा. मैने पूछा : ऐसा क्यूं कहती हो ? तू तो माधवी से कहीं ओर ज़्यादा ख़ूब सूरत हो.
रिया : बस ? मैं आप को ख़ूब सूरत ही नज़र आती हूँ ? ज़्यादा कुछ नहीं ?
सच कहूँ तो उस का कोमल बदन बाहों में भर लेना मुझे बहुत मीठा लगता था. मेरा हाथ स्तन सहला रहा था, दूसरा पीठ पर रेंग रहा था. मेरा लंड खड़ा हो गया था. रिया मुझे एक लड़की दिखाई देने लगी बहन नहीं.
मैने कहा : क्यूं नहीं ? तू बहुत सेक्सी लग रही हो.
रिया : सच ? मैं आप को सेक्सी लगती हूँ तो --- तो --- आप मेरे साथ वो करेंगे जो आप ने माधवी दीदी से किया था ?
मैं सुन्न रह गया, मैने पूछा : क्या कहती हो ? क्या किया है मैने माधवी के साथ ?
रिया : माधवी दीदी ने मुझे सब बता दिया है भैया, कहाँ, कब, कितनी बार सब. अब मेरे साथ भी कीजिए ना ? मैने दीदी से सुना है तब से बेचैन हो गयी हूँ
मैं : रिया, हम भाई बहन हें, आपस में ऐसा नहीं करते. माधवी की बात अलग है वो हमारी मौसी की लड़की है
रिया फिर रोने लगी बोली : आप चाहते हें की मैं ओर किसी के पास जा उन ?
Saturday, December 25, 2010
मेरी सेक्सी दीदी
बोली - अरे तुम इतने बड़े हो गए। मैंने तुम्हे जब अपनी शादी में देखा था तो तुम सिर्फ़ ११ साल के थे।
मैंने कहा - जी दीदी अब तो मै बीस साल का हो गया हूँ।
दीदी ने मुझे खूब खिलाया पिलाया। जीजा जी अभी पिछले तीन महीने से कश्मीर में अपनी ड्यूटी पर थे। दीदी की शादी हुए आठ साल हो गए थे। दीदी की एक मात्र संतान तीन साल की जूही थी जो बहूत ही नटखट थी। वो भी मुझसे बहूत ही घुल -मिल गई। शाम को जीजा जी का फ़ोन आया तो मैंने उनसे बात की। वो भी बहूत खुश थे मेरे आने पर।
बोले - एक महीने से कम रहे तो कोर्ट मार्शल कर दूँगा।
रात को यूँ ही बातें करते करते और पुरानी यादों को ताज़ा करते करते मै अपने कमरे में सोने चला गया। दीदी ने मेरे लिए बिस्तर लगा दिया
और बोली - अब आराम से सो जाओ।
मै आराम से सो गया। किंतु रात के एक बजे नैनीताल की ठंडी हवा से मेरी नींद खुल गई। मुझे ठण्ड लग रही थी। हालाँकि अभी मई का महिना था लेकिन मै मुंबई का रहने वाला आदमी भला नैनीताल की मई महीने की भी हवा को कैसे बर्दाश्त कर सकता। मेरे पास चादर भी नही था। मैंने दीदी को आवाज लगाई । लेकिन वो शायद गहरी नींद में सो रही थी। थोडी देर तो मै चुप रहा लेकिन जब बहूत ठण्ड लगने लगी तो मै उठ कर दीदी के कमरे के पास जा कर उन्हें आवाज लगाई। दीदी मेरी आवाज़ सुन कर हडबडी से उठ कर मेरे पास चली आई और
कहा - क्या हुआ गुड्डू?
वो सिर्फ़ एक गंजी और छोटी सी पेंट जो की औरतों की पेंटी से थोडी ही बड़ी थी। गंजी भी सिर्फ़ छाती को ढंकने की अधूरी सी कोशिश कर रही थी। में उनकी ड्रेस को देख के दंग रह गया। दीदी की उमर अभी उनतीस या तीस की ही होती रही होगी। सारा बदन सोने की तरह चमक रहा था। में उनके बदन को एकटक देख ही रहा था की दीदी ने फिर
कहा- क्या हुआ गुड्डू?
मेरी तंद्रा भंग हुई।
मैंने कहा -दीदी मुझे ठण्ड लग रही है। मुझे चादर चाहिए।
दीदी ने कहा - अरे मुझे तो गर्मी लग रही है और तुझे ठंडी?
मैंने कहा -मुझे यहाँ के हवाओं की आदत नही है ना।
दीदी ने कहा -अच्छा तू रूम में जा , में तेरे लिए चादर ले कर आती हूँ।
मै कमरे में आ कर लेट गया। मेरी आंखों के सामने दीदी का बदन अभी भी घूम रहा था। दीदी का अंग अंग तराशा हुआ था। थोडी ही देर में दीदी एक कम्बल ले कर आयी और मेरे बिस्तर पर रख दी।
बोली - पता नही कैसे तुम्हे ठण्ड लग रही है। मुझे तो गर्मी लग रही है। खैर , कुछ और चाहिए तुम्हे?
मैंने कहा- नही, लेकिन कोई शरीर दर्द की गोली है क्या?
दीदी बोली- क्यों क्या हुआ?
मैंने कहा - लम्बी सफर से आया हूँ। बदन टूट सा रहा है।
दीदी ने कहा- गोली तो नही है। रुक में तेरे लिए कॉफ़ी बना के लाती हूँ। इससे तेरा बदन दर्द दूर हो जायेगा.
मैंने कहा- छोड़ दो दीदी , इतनी रात को क्यों कष्ट करोगी?
दीदी ने कहा -इसमे कष्ट कैसा? तुम मेरे यहाँ आए हो तो तुम्हे कोई कष्ट थोड़े ही होने दूँगी।
कह कर वो चली गई। थोडी ही देर में वो दो कप कॉफ़ी बना लायी। रात के डेढ़ बाज़ रहे थे। हम दोनों कॉफ़ी पीने लगे।
कॉफ़ी पीते पीते वो बोली - ला, में तेरा बदन दबा देती हूँ। इस से तुम्हे आराम मिलेगा।
मैंने कहा - नही दीदी, इसकी कोई जरूरत नही है। सुबह तक ठीक हो जाएगा।
लेकिन दीदी मेरे बिस्तर पर चढ़ गई
और बोली - तू आराम से लेटा रह मै अभी तेरी बदन की मालिश कर देती हूँ .
कहते कहते वो मेरे जाँघों को अपनी जाँघों पे रख कर उसे अपने हाथों से दबाने लगी। मैंने पैजामा पहन रखा था। वो अपनी नंगी जाँघों पर मेरे पैर को रख कर उसे दबाने लगी।
दबाते हुए बोली - एक काम कर, पैजामा खोल दे, सारे पैर में अच्छी तरह से तेल मालिश कर दूँगी। ।
अब मैं किसी बात का इनकार करने का विचार त्याग दिया। मैंने झट अपना पैजामा खोल दिया। अब मैं अंडरवियर और बनियान में था। दीदी ने फिर से मेरे पैर को अपनी नंगी जांघों पे रख कर तेल लगा कर मालिश करने लगी। जब मेरे पैर उनकी नंगी और चिकनी जाँघों पे रखी थी तो मुझे बहूत आनंद आने लगा। दीदी की चूची उनकी ढीली ढीली गंजी से बाहर दिख रही थी. उसकी चूची की निपल उनकी पतली गंजी में से साफ़ दिख रही थी. मै उनकी चूची को देख देख के मस्त हुआ जा रहा था. उनकी जांघ इतनी चिकनी थी की मेरे पैर उस पर फिसल रहे थे. उनका हाथ धीरी धीरे मेरे अंडरवियर तक आने लगा। उनके हाथ के वहां तक पहुंचने पर मेरे लंड में तनाव आने लगा। मेरा लंड अब पूरी तरह से फनफनाने लगा। मेरा लंड अंडरवियर के अन्दर करीब छः इंच ऊँचा हो गया। दीदी ने मेरी पैरों को पकड़ कर मुझे अपनी तरफ खींच लायी और मेरे दोनों पैर को अपने कमर के अगल बगल करते हुए मेरे लंड को अपने चूत में सटा दी. मुझे दीदी की मंशा गड़बड़ लगने लगी. लेकिन अब मै भी चाहता था कि कुछ ना कुछ गड़बड़ हो जाने दो.
दीदी ने कहा - गुड्डू , तू अपनी बनियान उतर दो न। छाती की भी मालिश कर दूँगी।
मैंने बिना समय गवाए बनियान भी उतर दिया। अब मैं सिर्फ़ अंडरवियर में था। वो जब भी मेरी छाती की मालिश के लिए मेरे सीने पर झुकती उनका पेट मेरे खड़े लंड से सट रहा था. शायद वो जान बुझ कर मेरे लंड को अपने पेट से दबाने लगी. एक जवान औरत मेरी तेल मालिश कर रही है। यह सोच कर मेरा लिंग महाराज एक इंच और बढ़ गया। इस से थोडा थोडा रस निकलने लगा जिस से की मेरा अंडरवियर गीला हो गया था.
अचानक दीदी ने मेरे लिंग को पकड़ कर कहा - ये तो काफी बड़ा हो गया है तेरा।
दीदी ने जब मुझसे ये कहा तो मुझे शर्म सी आ गयी कि शायद दीदी को मेरा लंड बड़ा होना अच्छा नही लग रहा था. मुझे लगा शायद वो मेरे सुख के लिए मेरा बदन मालिश कर रही है और मै उनके बदन को देख कर मस्त हुआ जा रहा हूँ और गंदे गंदे ख़याल सोच कर अपना लंड को खड़े किये हुआ हूँ.
इसलिए मैंने धीमे से कहा- ये मैंने जान बुझ कर नहीं किया है. खुद ब खुद हो गया है.
लेकिन दीदी मेरे लंड को दबाते हुए मुस्कुराते हुए कही- बच्चा बड़ा हो गया है. जरा देखूं तो कितना बड़ा है मेरे भाई का लंड.
ये कहते हुए उसने मेरा अंडरवियर को नीचे सरका दिया. मेरा सात इंच का लहलहाता हुआ लंड मेरी दीदी की हाथ में आ गया. अब में पूरी तरह से नंगा अपनी दीदी के सामने था। दीदी ने बड़े प्यार से मेरे लिंग को अपने हाथ में लिया। और उसमे तेल लगा कर मालिश करने लगी।
दीदी ने कहा - तेरा लिंग लंबा तो है मगर तेरी तरह दुबला पतला है। मालिश नही करता है इसकी?
मैंने पुछा - जीजा जी का लिंग कैसा है?
दीदी ने कहा- मत पूछो। उनका तो तेरे से भी लंबा और मोटा है।
वो बोली- कभी किसी लड़की को नंगा देखा है?
मैंने कहा - नहीं.
उसने कहा - मुझे नंगा देखेगा?
मैंने कहा - अगर तुम चाहो तो .
दीदी ने अपनी गंजी एक झटके में उतार दी.
गंजी के नीचे कोई ब्रा नही थी। उनके बड़ी बड़ी चूची मेरे सामने किसी पर्वत की तरह खड़े हो गए।उनकी दो प्यारी प्यारी चूची मेरे सामने थी.
दीदी पूछी- मुठ मारते हो?
मैंने कहा - हाँ।
दीदी- कितनी बार?
मैंने - एक दो दिन में एक बार।
दीदी- कभी दूसरे ने तेरी मुठ मारी है?
मैंने -हाँ ।
दीदी- किसने मारी तेरी मुठ?
मैंने- एक बार में और मेरा एक दोस्त ने एक दुसरे की मुठ मारी थी।
दीदी - कभी अपने लिंग को किसी से चुसवा कर माल निकाला है तुने?
मैंने- नही।
दीदी - रुक , आज में तुम्हे बताती हूँ की जब कोई लिंग को चूसता है तो चुस्वाने वाले को कितना मज़ा आता है।
इतना कह के वो मेरे लिंग को अपने मुंह में ले ली। और पूरे लिंग को अपने मुंह में भर ली। मुझे ऐसा लग रहा था की वो मेरे लिंग को कच्चा ही खा जायेगी। अपने दाँतों से मेरे लिंग को चबाने लगी। करीब तीन चार मिनट तक मेरे लिंग को चबाने के बाद वो मेरे लिंग को अपने मुंह से अन्दर बाहर करने लगी। एक ही मिनट हुआ होगा की मेरा माल बाहर निकलने को बेताब होने लगा।
मैंने- दीदी , छोड़ दो, अब माल निकलने वाला है।
दीदी - निकलने दो ना .
उन्होंने मेरे लिंग को अपने मुंह से बाहर नही निकाला। लेकिन मेरे माल बाहर आने लगा। दीदी ने सारा माल पी जाने के पूरी कोशिश की लेकिन मेरे लिंग का माल उनके मुंह से बाहर निकल कर उनके गालों पर भी बहने लगा। गाल पे बह रहे मेरे माल को अपने हाथों से पोछ कर हाथ को चाटते हुए
बोली - अरे, तेरा माल तो एकदम से मीठा है। कैसा लगा आज का मुठ मरवाना?
मैंने - अच्छा लगा।
दीदी - कभी किसी बुर को चोदा है तुने?
मैंने - नही, कभी मौका ही नही लगा।
फिर बोली- मुझे चोदेगा?
मैंने - हाँ।
दीदी - ठीक है .
कह कर दीदी खड़ी हो गई और अपनी छोटे से पैंट को एक झटके में खोल दिया। उसके नीचे भी कोई पेंटी नही थी। उसके नीचे जो था वो मैंने आज तक हकीकत में नही देखा था। एक दम बड़ा, चिकना , बिना किसी बाल का, खुबसूरत सा बुर मेरी आँखों के सामने था।
अपनी बुर को मेरी मुंह के सामने ला कर बोली - ये रहा मेरा बुर, कभी देखा है ऐसा बुर ? अब देखना ये है की तुम कैसे मुझे चोदते हो। सारा बुर तुम्हारा है। अब तुम इसका चाहे जो करो।
मैंने कहा- दीदी, तुम्हारा बुर एकदम चिकना है। तुम रोज़ शेव करती हो क्या?
दीदी- तुम्हे कैसे पता की बुर चिकना होता है की बाल वाला??
मैंने कहा- वो मैंने अपनी नौकरानी का बुर तीन चार बार देखा है। उसके बुर में एकदम से घने बाल हैं। उसकी बुर तो काली भी है। तुम्हारी तरह सफ़ेद बुर नही है उसकी।
दीदी- अच्छा, तो तुमने अपनी नौकरानी की बुर कैसे देख ली है?
मैंने कहा - वो जब भी मेरे कमरे में आती है ना तो अगर मुझे नही देखती है तो मेरे शीशे के सामने एकदम से नंगी हो कर अपने आप को निहारा करती है। उसकी यह आदत मैंने एक दिन जान लिया । तब से में तीन चार बार जान बुझ कर छिप जाता हूँ और वो सोचती थी की में यहाँ कमरे नही हूँ, वो वो नंगी हो मेरे शीशे के सामने अपने आप को देखती थी।
दीदी- बड़े शरारती हो तुम।
मैंने कहा- वो तो मैंने दूर से काली सी गन्दी सी बुर को देखा था जो की घने बाल के कारण ठीक से दिखाई भी नही देते थे। लेकिन आपकी बुर तो एक दम से संगमरमर की तरह चमक रही है।
दीदी- वो तो में हर संडे को इसे साफ़ करती हूँ। कल ही न संडे था। कल ही मैंने इसे साफ़ किया है।
अब मुझसे रहा नही जा रहा था। समझ में नही आ रहा था की कहाँ से स्टार्ट किया जाए ? मुझे कुछ नही सूझा तो मैंने दीदी को पहले अपनी बाहों से पकड़ कर बिस्तर पर लिटा दिया ।अब वो मेरे सामने एकदम नंगी पड़ी थीं । पहले मैंने उनके खुबसूरत जिस्म का अवलोकन किया ।दूध सा सफ़ेद बदन। चुचियों की काया देखते ही बनती थी । लगता था संगमरमर के पत्थर पे किसी ने गुलाब की छोटी कली रख दिया हो। उनकी निपल एकदम लाल थी। सपाट पेट। पेट के नीचे मलाईदार सैंडविच की तरह फूली हुई बुर . बुर का रंग एकदम सोने के तरह था। उनके बुर को हाथ से फाड़ कर देखा तो अन्दर लाल लाल तरबूज की तरह नज़ारा दिखा। कही से भी शुरू करूं तो बिना सब जगह हाथ मारे उपाय नही दिखा। सोचा ऊपर से ही शुरू किया। जाए । मैंने सबसे पहले उनके रसीले लाल ओठों को अपने ओठों में भर लिया । जी भर के चूमा । इस दौरान मेरे हाथ दीदी के चुचियों से खेलने लगे । दीदी ने भी मेरा किस का पूरा जवाब दिया . फिर में उनके ओठों को छोड़ उनके गले होते हुए उनकी चूची पर आ रुका . काफ़ी बड़ी और सख्त चूचियां थी . एक बार में एक चूची को मुंह में दबाया और दुसरे को हाथ से मसलता रहा . थोडी देर में दूसरी चूची का स्वाद लिया . चुचियों का जी भर के रसोस्वदन के बाद अब बारी थी उन के महान बुर के दर्शन का . ज्यों ही में उन के बुर पास अपना सर ले गया मुझसे रहा नही गया और मैंने अपनी जीभ को उनके बुर के मुंह पर रख दिया . स्वाद लेने की कोशिश की तो हल्का सा नमकीन सा लगा । मजेदार स्वाद था . अब में पूरी बुर को अपने मुंह में लेने की कोशिश करने लगा . दीदी मस्त हो कर सिसकारी निकालने लगी . मैं समझ रहा था कि दीदी को मज़ा आ रहा है . मैं और जोर जोर से दीदी का बुर को चुसना शुरू किया . करीब पन्द्रह मिनट तक में दीदी का बुर का स्वाद लेता रहा । अचानक दीदी ज़ोर से आँख बंद कर के कराही और उन के बुर से माल निकल कर उनके बुर के दरार होते हुए गांड की दरार की और चल दिए . मैंने जहाँ तक हो सका उनके बुर का रस का पान किया . मैंने देखा अब दीदी पहले की अपेक्षा शांत हैं . लेकिन मेरा लिंग महाराज एकदम से तनतना गया . मैंने दीदी के दोनों पैरों को अलग अलग दिशा में किया और उनके बुर की छिद्र पर अपना लिंग रखा और धीरे धीरे दीदी के बदन पर लेट गया . इस से मेरा लिंग दीदी के बुर में प्रवेश कर गया . ज्यों ही मेरा लिंग दीदी के बुर में प्रवेश किया दीदी लगभग छटपटा उठी .
मैंने कहा - क्या हुआ दीदी, जीजा जी का लिंग तो मुझसे भी मोटा है ना तो फ़िर तुम छटपटा क्यों रही हो ?
दीदी - तीन महीने से कोई लिंग बुर में नही ली हूँ न इसलिए ये बुर थोड़ा सिकुड़ गया है .उफ़, लगता नही है की तुम्हे चुदाई के बारे में पता नही है। कितनो की ली है तुने?
मैं बोला- कभी नही दीदी, वो तो में फिल्मों में देख के और किताबों में पढ़ कर सब जानता हूँ।
दीदी बोली- शाबाश गुड्डू, आज प्रेक्टिकल भी कर लो। कोई बात नही है। तुम अच्छा कर रहे हो। चालू रहो। मज़ा आ रहा है।
मैंने दीदी को अपने दोनों हाथों से लपेट लिया। दीदी ने भी अपनी टांगों को मेरे ऊपर से लपेट कर अपने हाथों से मेरी पीठ को लपेट लिया। अब हम दोनों एक दुसरे से बिलकूल गुथे हुए था। मैंने अपनी कमर धीरे से ऊपर उठाया इस से मेरा लिंग दीदी के बुर से थोड़ा बाहर आया। मैंने फिर अपना कमर को नीचे किया। इस से मेरा लिंग दीदी के बुर में पूरी तरह से समां गया। इस बार दीदी लगभग चीख उठी।
अब मैंने दीदी की चीखूं और दर्द पर ध्यान देना बंद कर दिया। और उनको पुरी प्रेम से चोदना शुरू किया। पहले नौ - दस धक्के में तो दीदी हर धक्के पर कराही । लेकिन दस धक्के के आड़ उनकी बुर चौडी हो गई॥ तीस पैंतीस धक्के के बाद तो उनका बुर पूरी तरह से फैल गया। अब उनको आनंद आने लगा था। अब वो मेरे चुतद पर हाथ रख के मेरे धक्के को और भी जोर दे रही थी। चूँकि थोडी देर पहले ही ढेर सारा माल निकल गया था इस लिए जल्दी माल निकालने वाला तो था नहीं. मै उनकी चुदाई करते करते थक गया। करीब बीस मिनट तक उनकी बुर चुदाई के बाद भी मेरा माल नही निकल रहा था।
दीदी बोली - थोड़ा रुक जाओ।
मैंने दीदी के बुर में अपना सात इंच का लिंग डाले हुए ही थोडी देर के लिए रुक गया। मेरी साँसे तेज़ चल रही थी। दीदी भी थक गई थी। मैंने उनकी चूची को मुंह में भर कर चुसना शुरू किया। इस बार मुझे शरारत सूझी। मैंने उनकी चूची में दांत गडा दिए। वो चीखी.
बोली- क्या करते हो?
फिर मैंने उनके ओठों को अपने मुंह में भर लिया। दो मिनट के विश्राम के बाद मैंने अपने कमर को फिर से हरकत में लाया। इस बार मेरी स्पीड काफ़ी बढ़ गई। दीदी का पूरा बदन मेरे धक्के के साथ आगे पीछे होने लगा।
दीदी बोली- अब छोड़ दो गुड्डू। मेरा माल निकल गया।
मैंने उनकी चुदाई जारी रखते हुए कहा- रुको न.अब मेरा भी निकल जाएगा।
चालीस -पचास धक्के के बाद में लिंग के मुंह से गंगा जमुना की धारा बह निकली . सारी धारा दीदी के बुर के विशाल कुएं में समा गयी । एक बूंद भी बाहर नही आई। बीस मिनट तक हम दोनों को कुछ भी होश नही था। मै उसी तरह से उनके बदन पे पड़ा रहा।
बीस मिनट के बाद वो बोली -गुड्डू , तुम ठीक तो हो न?
मैंने बोला -हाँ।
दीदी - कैसा लगा बुर की चुदाई कर के?
मैंने - मज़ा आ गया।
दीदी- और करोगे?
मैंने - अब मेरा माल नही निकलेगा।
दीदी हँसी और बोली- धत पगले। माल भी कहीं ख़तम होता है। रुको में तुम्हारे लिए कॉफ़ी बना के लाती हूँ।
दीदी नंगे बदन ही किचन गई और कॉफ़ी बना कर लायी। कॉफ़ी पीने के बाद फिर से ताजगी छा गई। दीदी के जिस्म देख देख के मुझे फिर गर्मी चढ़ने लगी।
दीदी ने मेरे लिंग को पकड़ कर कहा- क्या हाल है जनाब का?
मैंने कहा - क्यों दीदी , फिर से एक राउंड हो जाए?
दीदी - क्यों नही। इस बार आराम से करेंगे।
दीदी बिस्तर पर लेट गई। पहले तो मैंने उनके बुर को चाट चाट के पनिया दिया। मेरा लिंग महाराज बड़ी ही मुश्किल से दुबारा तैयार हुआ। लेकिन जैसे ही मैंने उनको दीदी के बुर देवी से भेंट करवाया वो तुंरत ही जाग गए। सुबह के चार बज गए थे। उसी समय अपने लिंग महाराज को दीदी के बुर देवी कह प्रवेश कराया। पूरे पैंतालिस मिनट तक दीदी को चोदता रह। दीदी की बुर ने पाँच छः बार पानी छोड़ दिया।
वो मुझसे बार बार कहती रही -गुड्डू छोड़ दो। अब नही। कल करना।
लेकिन मैंने कहा नही दीदी अब तो जब तक मेरा माल नही निकल जाता तब तक तुम्हारे बुर का कल्याण नही है।
पैंतालिस मिनट के बाद मेरे लिंग महाराज ने जो धारा निकाली तो मेरे तो जैसे प्राण ही निकल गए। जब दीदी को पता चला की मेरा माल निकल गया है तो जैसे तैसे अपने ऊपर से मुझे हटाई और अपने कपड़े लिए खड़ी हो गई। में तो बिलकूल निढाल हो बिस्तर पे पड़ा रहा . दीदी ने मेरे ऊपर कम्बल रखा और बिना कपड़े पहने ही हाथ में कपड़े लिए अपने कमरे की तरफ़ चली गई . आँख खुली तो दिन के बारह बज चुके थे . में अभी भी नंगा सिर्फ़ कम्बल ओढे हुए पड़ा था . किसी तरह उठ कर कपड़े पहना और बाहर आया . देखा दीदी किचेन में है .
मुझे देख कर मुस्कुराई और बोली - एक रात में ही ये हाल है , जीजाजी का आर्डर सुना है ना पूरे एक महीने रहना है । हां हां हां हां !!!!
इस प्रकार दीदी की चुदाई से ही मेरा यौवन का प्रारम्भ हुआ . मैं वहां एक महीने से भी अधिक रुका जब तक जीजा जी नही आ गए। इस एक महीने में कोई भी रात मैंने बिना उनकी चुदाई के नही गुजारी। दीदी ने मुझसे इतनी अधिक प्रैक्टिस करवाई की अब एक रात में पाँच बार भी उनकी बुर की चुदाई कर सकता था। उन्होंने मुझे अपनी गांड के दर्शन भी कई बार करवाई। कई बार दिन में हम दोनों ने साथ स्नान भी किया।
आख़िर एक दिन जीजाजी भी आ गए। जब रात हुई और जीजाजी और दीदी अपने कमरे में गए तो थोडी ही देर में दीदी की चीख और कराहने की आवाज़ ज़ोर ज़ोर से मेरे कमरे में आने लगी। में तो डर गया। लगता है की दीदी की चुदाई का भेद खुल गया है और जीजा जी दीदी की पिटाई कर रहे हैं। रात दस बजे से सुबह चार बजे तक दीदी की कराहने की आवाज़ आती रही।
सुबह जैसे ही दीदी से मुलाकात हुई तो मैंने पुछा - कल रात को जीजाजी ने तुम्हे पीटा? कल रात भर तुम्हारे कराहने की आवाज़ आती रही।
दीदी बोली- धत पगले। वो तो रात भर मेरी चुदाई कर रहे थे। चार महीने की गर्मी थी इसलिए कुछ ज्यादा ही उछल कूद हो रही थी।
मैंने कहा- दीदी अब में जाऊँगा।
दीदी ने कहा - कब? मैंने कहा - आज रात ही निकल जाऊँगा।
दीदी बोली- ठीक है। चल रात की खुमारी तो निकाल दे मेरी।
मैंने कहा - जीजाजी घर पे हैं। वो जान जायेंगे तो।
दीदी बोली- वो रात को इतनी बेयर पी चुके हैं की दोपहर से पहले नही उठने वाले।
दीदी को मैंने अपने कमरे में ले जा कर इतनी चुदाई की की आने वाले दो - तीन महीने तक मुझे मुठ मारने की भी जरूरत नही हुई। जीजा जी ने जब दीदी को आवाज़ लगायी तभी दीदी को मुझसे मुक्ति मिली। आखिरी बार मैंने दीदी के बुर को किस किया और वो अपने कपड़े पहनते हुए अपने कमरे में जीजा जी से चुदवाने फिर चली गई। उसी रात को मैंने अपने घर की ट्रेन पकड़ ली.