Sunday, January 15, 2017

और मेरी बहन चुद गई

मेरा मानना है कि हर किसी के जीवन में कभी कभी ऐसा समय ज़रूर आता है जब सेक्स और चुदने चुदवाने की इच्छा तन और मन पर हावी होने लगती है। ऐसे में अक्सर अपने घर की औरतों को देखने का हमारा नजरिया भी बदलने लगता है और कभी न कभी हम उन्हें चोद डालने के बारे में सोचते भी हैं।
मेरे माँ बाप गाँव में रहते हैं और मैं शहर में अपनी बहन के यहाँ रह कर पढ़ाई करता हूँ। घर में मैं, मेरी बहन और जाजा जी, हम 3 लोग हैं। मेरी बहन का नाम सौम्या है, 23-24 की उम्र की वो औरत एक बेहद कामुक बदन की मालकिन है, 34-30-34 की फिगर, गोरा रंग और वासना से भरी हुई!
मेरे स्कूल में हम सब दोस्त अक्सर आपस में बैठ कर सेक्स और चुदाई की बातें किया करते धीरे-धीरे मेरी यह आदत और ज्यादा बढ़ती गई और मैं रात के समय चोरी-चोरी अपने बहन-जीजा जी की चूत चुदाई देखने लगा। मेरा जीजा रोज रात को मेरी बहन को कुत्ती बना कर उसे बुरी तरह पेलता और अक्सर चुदाई के दर्द से मेरी बहन की आँखों में आँसू आ जाते और उस छिनाल की ऐसी हालत देख कर मेरा लौड़ा पूरी तरह गर्म और कड़क हो जाता।
अब तो सपनों में भी मुझे मेरा जीजा मेरी बहन को ठेलते हुए नज़र आता। खैर इसी तरह करते करते काफी वक़्त गुज़र गया और अब मेरे लिए यह सामान्य सी बात हो गई।
एक दिन मेरे स्कूल में किसी सम्मेलन का आयोजन था तो हम सब दोस्तों ने मिलकर चुपके से स्कूल से भागने का सोचा, सब चुपचाप पिछले गेट से होकर निकल गये और अपनी खास जगह पर पहुँच गये।
इससे पहले कि हम अपनी महफ़िल जमा पाते, बारिश ने हमारा सारा खेल बिगाड़ दिया। स्कूल तो वापस जा नहीं सकते थे तो सब अपने अपने घर की तरफ भाग गये।
मैं पूरी तरह भीगा हुआ घर पहुंचा और अभी बैग भी नहीं उतारा था कि दीदी की कामुक सिसकारियों की आवाज़ मेरे कानों में गूँज उठी।
मैंने सोचा- ओह्ह्ह ! लगता है आज जीजा जी जल्दी लौट आये और आते ही बहन की चूत चोदने का काम चालू कर दिया।
मैं उत्तेज़ना से भरा हुआ फ़ौरन अपनी बहन के कमरे की ओर बढ़ा और दरवाज़े के ऊपर बने रोशनदान से देखने लगा।
लेकिन जैसे ही अंदर का नज़ारा मेरी आँखों के सामने आया, मेरी तो आंखें फटी की फटी ही रह गई, मेरी बहन मेरे जीजा के नहीं बल्कि हमारे मोहल्ले के लेडीज टेलर मोहन के नीचे अपनी फुद्दी मरवा रही थी।
यह देखकर मेरी तो सारी ठरक छूमन्तर हो गई और दिमाग गुस्से के मारे उबलने लगा साली राण्ड छिनाल कुतिया कहीं कीरात को जीजा जी और दिन को इस मुहल्ले के टेलर से अपना भोसड़ा पेलवा रही है? उफ्फफ्फकितनी चुदक्कड़ है मेरी बहन साली!
दीदी फर्श पर खड़ी थी, अपने दोनों हाथ बिस्तर पर रख कर आगे की तरफ झुकी हुई थी और वो साला हरामी पीछे से उसकी फुद्दी में अपना लौड़ा ठूंस रहा था।
दीदी- आह्ह अह्ह उम्म्हअहहहययाहसाले भड़वे जल्दी जल्दी चोद ले, किसी ने देख लिया तो आफत आ जाएगी।
मोहन- चुप कर साली हराम की जनी, रोज नखरे दिखाती है, आज तक कभी ठीक से चूत चुदवाई भी है? कभी भाई आ जायेगा तो कभी पति के आने का टाइम हो गया है, हर रोज बस यही बहाना लेकिन आज नहीं, आज तो तेरी गांड भी पेल के जाऊंगा हरामजादी।
दीदी- नहीं! जितनी चूत मारनी है मार लेपर चुत्तड़ों (गांड) में नहीं डालने दूंगी।
इतना सुनते ही मोहन गुस्से से लाल हो गया और उसने अपना लौड़ा पूरा बाहर निकाल कर फिर से एक ही झटके में मेरी बहन के भोसड़े में घुसा दिया।
उफ्फउसका लंड लगभग 8 इंच का था और पचककी आवाज़ के साथ मेरी बहन की फुद्दी की दीवारों को रगड़ता हुआ शायद उसकी बच्चेदानी तक घुस गया।
मेरी बहन की चूत फ़ट गई, खून की बूंद तक बह निकली और सारा घर उसकी चीख से गूंज उठा- अआह्हह साले मार डाला रेकुत्तेआह्ह्ह् ! तेरी बहन का भोसड़ा हरामी, साले चूतिये फाड़ डाली मेरी, बहन के लौड़े धीरे चोद!
मोहन ने अपना खून से सना लंड बाहर खींचा- आह्ह, क्यों मेरी छिनाल रानी, मैं न कहता था कि तेरी बुर मैं ही चीरूँगा! देख कैसी फड़फड़ा रही है साली राण्ड, अब आया न मज़ा!
दीदी बिस्तर पर निढाल हो गई लेकिन मोहन कहाँ रुकने वाला था, उसने दीदी के चूतड़ों पर 2-3 थप्पड़ जड़ दिए और गांड के छेद में लौड़ा ठूंस कर अन्दर बाहर करने लगा।
दीदी के मुख से भी दर्द भरी आवाजें निकलना शुरू हो गईं- आआह्ह ऊओह्ह ऊह्ह! मॉ ऊफ्फ्फ अह्ह्ह अह्ह्ह्हा!
थोड़ी देर में मोहन दीदी की गांड के अंदर ही झड़ गया, मैं अपनी बहन की गांड के छेद से उसका चिपचिपा, गन्दा सफेद वीर्य निकलता हुआ साफ़ देख सकता था।
फारिग होने के बाद उसने कपड़े पहने और दीदी को वहीं छोड़ कर जाने लगा। मैं फ़ौरन दूसरे कमरे में जाकर दरवाजे के पीछे हो गया।
थोड़ी देर बाद दीदी भी उठी और खिलखिलाते हुए बाथरूम जाकर अपने चुदे हुए गुप्तांगों को धोने लगी।
मैं उसकी चुदाई देखकर उत्तेजना से भरा हुआ था, लौड़ा भी तना हुआ था और पैंट भी तम्बू के आकार में बाहर की तरफ निकली हुई थी।
थोड़ी ही देर में दीदी बाथरूम से बाहर आई और वैसी ही नंग-धड़ंग रसोई में जा घुसी।
मेरे कानों में उसके गुनगुनाने की आवाजें साफ़ सुनाई दे रहीं थी।
मैं- साली राण्डकितनी चुदक्कड़ है, चूत चुदने की ख़ुशी तो देखो साली के चेहरे पर।
धीरे धीरे मेरी ठरक मेरे दिमाग पर हावी होने लगी और मैं सीधा अपनी बहन के पास रसोई में पहुँच कर उसके पीछे खड़ा हो गया।
दीदी को भी किसी के पास खड़े होने का एहसास हुआ तो वो भी पीछे मुड़ी और जैसे ही उसने मुझे देखा थोड़ी देर के लिए तो वो सुन्न ही हो गई- अअरे ! तू कब आया?
मैं- जब तू क..कमरे में व..वो!
दीदी सीधी खड़ी मेरी आँखों में आँखें डाल मुझे गुस्से से घूरने लगी- अच्छा! अब क्या तू इतना बड़ा हो गया कि बहन की जासूसी भी करने लगा? या इसे मैं तेरी बद्तमीज़ी कहूँ?
मैं- अब इतनी भोली भी न बन दीदी! मैंने सब देखा है अपनी आखों से तेरे और उस दर्जी की करतूत! वो कौन सी शराफत थी?
दीदी- देख, अभी ये सब तेरी समझ के बाहर है तू जा अपने कमरे में जा।
लेकिन मेरे मन में तो उस वक़्त कुछ और ही चल रहा था और मैं सीधा उसके सामने गया और अपनी पैंट की ज़िप खोल दी, आज़ाद होते ही मेरा तना हुआ लंड फुफ़कारते हुए मेरी पैंट से बाहर कूद पड़ा।
दीदी ने मेरे लंड की तरफ नज़र उठाकर देखा और वो भी मेरा मतलब समझ गई- अच्छा ये बात! मैं तो तुझे उम्र में छोटा समझती थी पर तू तो बड़ा खिलाड़ी निकला।
दीदी नीचे झुकी और उसने मेरा लंड अपने हाथों में ले लिया- अरे वाह बेटा! लौड़ा तो अभी से दमदार हो गया है तेरा, लगता है अपनी बहन चुदते देख जोश भर गया इसमें, देखो तो कैसे फड़फड़ा रहा है।
मैं- एक बार मेरे सामने अपने टांगें तो फैला दीदी, तेरी फुद्दी मारने का दम भी है इसमें!
यह सुनकर दीदी हंस पड़ी और उसने बिना देर किये सीधा मेरा लुल्ला अपने मुंह में ठूंस लिया।
उस वक़्त तो मानो मुझे जन्नत मिल गई होमैं उसकी जीभ अपने सुपारे के ऊपर घूमते हुए महसूस कर सकता था, उसके होंठों का कसाव बड़ा ही मादक था, अपनी जीभ को मेरे लौड़े पर कस कर उसने चुस्कियां लेना शुरू किया मानो मेरे लंड के अंदर से चूसकर कुछ निकालने की कोशिश कर रही हो।
मैंने भी अपनी आँखें बंद करके अपना लंड उसके मुंह में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया, बीच-बीच में मैं उसके बालों को पकड़कर उसके मुंह को अपनी तरफ दबा देता जिससे मेरा लंड उसके गले तक उतर जाता।
करीब 10 मिनट तक वो कुत्ती ऐसे ही मेरा लंड चूसती रही।
मैं- ओह दीदी! अब अपने भाई को अपनी चूत के दर्शन भी करा दो।
दीदी- ठीक है भईया, चल आज अपनी बहन को चोद के भी देख लेलेकिन पहले वादा कर आज जो कुछ भी हुआ वो हमारे बीच ही रहेगा, तू किसी से कुछ नहीं कहेगा?
मैं- ठीक है दीदी, किसी को कुछ नहीं बताऊंगा।
मेरे इतना कहते ही दीदी उठी और सीधा कमरे में घुस गई और मैं भी उसके पीछे पीछे कमरे में चला गया। मैंने सबसे पहले उसे बिस्तर पर लेटाया।
उफ्फक्या नज़ारा था वो!
मेरी बहन मेरे सामने बिस्तर पर नंगी लेटी थी, यह पहली बार था जब मैंने इतना करीब से किसी औरत को नंगी देखा। उसकी सांसें तेज थी जिससे उसकी छाती तेज़ी से ऊपर नीचे हो रही थी, उसके दोनों मुम्मे एकदम कसे हुए थे और दोनों मुम्मों के ऊपर गहरे काले रंग के निप्पल) एकदम सीधे खड़े थे, उनके थोड़ी ही नीचे उसकी बेहद गहरी नाभि थी और उसके नीचे उसकी फुद्दी की लम्बी सी चीर।
मैंने बिना वक़्त गंवाए उसकी टांगें चौड़ी कर दी और उसका फूला हुआ भोसड़ा मेरे सामने खुल गया, मैंने अपने हाथों से उसकी चूत की फांकें अलग की और उसके छेद से अपना मुँह सटा दिया।
दीदी- आअह्ह्ह! भईया आह्ह्ह ऊह्हचाट ले अपनी बहन की चूत कमीने आह्ह्ह्ह! आज मौका है!
मैं- ओह्ह दीदी! कितनी मस्त और गर्म चूत है तेरी!
इसी बीच दीदी की चूत से पानी रिसना शुरू हो गया, उसकी खुशबू कमाल की थी, मैंने भी उसकी बुर चाट चाट कर साफ़ कर दी और उसके दाने पर जोर से काटा।
दीदी- आह्ह्ह कुत्ते, क्या कर रहा है? आराम से चूस न कमीने जान लेगा मेरी क्या?
मैं- चुप कर साली, उस कुत्ते के सामने तो तुझे कोई तकलीफ नहीं थी, मेरे ही पास नखरे दिखा रही है कुतिया
इतना कहते ही मैंने अपना लंड सहलाकर उसकी चूत के दरवाजे पर टिकाया और जोरदार झटका मारा, उसकी फांकें अभी भी फूलीं हुई थी और भोसड़ी का छेद भी ढीला था, मेरा लंड एक ही झटके में उसकी फुद्दी की दीवारों को रगड़ता हुआ अंदर घुस गया।
दीदी- आअह्ह हरामी सालेउफ्फ मार डाला रे ऊह्ह मॉआह्ह्ह धीरे पेल कुत्ते ऊह्ह्ह!
दीदी मदहोशी में बड़बड़ाने लगी!
मैं बिना रुके लगातार धक्के मार रहा था, धीरे धीरे मुझे दीदी की चूत के अंदर चिकनाई बढ़ती हुई महसूस हुई, मैंने नीचे देखा तो मेरा लंड उसके खून से सना हुआ था, मैं समझ गया कि मैंने उसकी चूत के टांके फिर से खोल दिए हैं।
दीदी- ऊह्ह कमीने अआह्हहआराम से चोद साले, बहन हूँ तेरी ऊह्ह्ह फाड़ डाली रे!!!
मैं- आह्ह ! दीदी तेरी फ़ुद्दी फाड़ने के सपने तो मैं हमेशा से ही देखते आ रहा हूँ दीदीआज वो सपना पूरा हुआ दीदी! ओह्ह्ह चल मेरी कुत्ती भी बन जा अब!
इतना कहते ही दीदी घुटनों के बल हो गई, घुटनों के बल बैठी वो औरत वाकयी किसी कुतिया से कम नहीं लग रही थी, बड़े-बड़े मांसल चुत्तड़ और उसके बीच में से झांकती उसकी बड़ी सी फूली हुई चूत जिसकी लकीर उसके चुत्तड़ों तक पहुँच रही थी।
यह नज़ारा देख कर मेरा लंड फुफ़कारने लगा।
दीदी- अब क्या हुआ चूतिये? मुझे कुतिया ही बनाना चाहता था न? ले बन गई कुतिया! अब मार ले मेरी चूत, चोद अपनी बहन को कमीने!
मेरी बहन चुदाई के लिए मचलने लगी।
मैंने भी बिना देर किये अपना लंड उसकी चूत पर टिकाया और जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए, मेरा लंड उसकी फुद्दी में जड़ तक घुस गया जिससे दीदी की चीखें निकल गई।
दीदी- आह्ह कमीने, कितना सख्त हो गया है लंड तेरा! लगता है मेरी ही बुर का प्यासा था आह्ह ह्ह्हओह्ह्ह ऊउफ़्फ़ आराम से हरामजादे आह्ह्ह्ह आअह्ह्ह ओह्ह्ह धीरे कर हरामी! आह्ह ओह्ह्ह मर गई!
मैं- आह्ह कुत्ती, इतना चिल्ला क्यूँ रही है, उस दर्जी का तो आराम से खा गई तू? बस मेरा ही लेने में नखरे दिखा रही है हरामजादी पूरे मोहल्ले को इकट्ठा करेगी क्या? चुपचाप चुद कमीनी वरना सारा मोहल्ला यहीं जमा हो जायेगा!
दीदी- तो होने दे न कुत्ते, सबको पता तो चले की घर में बहन भाई में क्या खिचड़ी पक रही है।
मैं- ओह्ह दीदी! खिचड़ी तो अब पकेगी जब मेरा माल तेरी फ़ुद्दी में जायेगा।
दीदी- ओह्ह भईया, उड़ेल दे मेरी चूत के अंदर ही सारा पानी!
मैं- ओह्ह म..म..दीदी मेरा माल निकलने वाला है दीदी, अआह्हह मैं गया दीदी ओह्ह ओह्ह अह्ह्ह्ह!
मेरे लंड से गर्म वीर्य की पिचकारी निकल गई जिससे दीदी की चूत उसकी जड़ तक सफ़ेद मक्खन से भर गई जो मेरा लंड बाहर खींचते ही उसकी फ़ुद्दी से बाहर रिसने लगा।
दीदी- ऊह्ह्ह वाह भईया! कितना माल जमा कर रखा था इस लंड में तूने कमीने उफ्फ्फ!
दीदी ने अपनी उंगली से मेरा वीर्य लिया और चाटने लगी।
मैं- क्या करूं दीदी, तेरी चूत थी ही इतनी गर्मइसमें मेरे लंड का क्या कसूर हैमेरे वीर्य का स्वाद अच्छा लगा या नहीं??
दीदी- बहुत बढ़िया, मुझे तो पता ही नहीं था मेरे घर में इतना स्वादिष्ट लौड़ा है अब तो रोज ही ये गर्म माल चखने को मिलेगा।
यह सुनकर मैं और दीदी दोनों हंसने लगे, थोड़ी देर वहीं लेटे रहने के बाद हमने अपने अपने कपड़े पहने।
2 घंटे बाद जीजा जी भी घर आ गये जिनको कुछ पता नहीं था कि आज घर पर क्या काण्ड हुआ है।

उसी दिन से मेरा और बहन का रिश्ता बहन-भाई के बजाए लंड और चूत का हो गया और तभी से वो राण्ड रात को जीजा जी और दिन को मेरे नीचे सोती है।

Friday, January 13, 2017

बहन की प्रवेश परीक्षा

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में विभिन्न विषयों की प्रवेश परीक्षा देने के लिए विद्यार्थी दूर दूर से आए हुए थे। लंका (काहिवि के मुख्य द्वार पर स्थित मार्केट) एवं आसपास के सारे होटल भरे हुए थे। मैं कई होटलों में भटक चुका था लेकिन कोई कमरा खाली नहीं मिला। मेरी चचेरी बहन, सुगन्धा, जिसे जीव विज्ञान में स्नातक की प्रवेश परीक्षा देनी थी वो भी मेरे साथ घूमते घूमते थक चुकी थी। ऊपर से जानलेवा गर्मी। हमारे कपड़े पसीने से भीग चुके थे।
एक दो होटलों में और देखने के बाद उसने कहा- भैय्या अब जहाँ भी जैसा भी कमरा मिले तुरंत ले लेना मुझसे और नहीं चला जाता। थोड़ी और परेशानी झेलने के बाद एक घटिया से होटल में सिंगल बेड रूम मिला। होटल दूर दूर से आए परीक्षार्थियों से भरा हुआ था। मैंने होटल के मैनेजर से एक अतिरिक्त गद्दा जमीन पर बिछाने के लिए कहा तो उसने एक घटिया सा कंबल लाकर जमीन पर बिछा दिया।
मैंने सुगन्धा से कहा- तुम थक गई होगी चलो बाहर कहीं से खाना खाकर आते हैं इस गंदे होटल में तो मुझसे खाना नहीं खाया जाएगा।
फिर हम लोग पास के एक रेस्टोरेंट से खाना खाकर आए। सुगन्धा को मैंने बेड पर सो जाने के लिए कहा और खुद नीचे सो गया।
रात को मैं बाथरूम जाने के लिए उठा और जैसे ही बत्ती जलाई मेरा दिल धक से रह गया। थकी होने के कारण सुगन्धा घोड़े बेचकर सो रही थी। इतनी गर्मी में कुछ ओढ़ने का तो सवाल ही नहीं उठता था। ऊपर से पंखा भी भगवान भरोसे ही चल रहा था। उसकी स्कर्ट उसकी जाँघों के ऊपर उठी हुई थी। अभी एक महीने पहले ही वो अठारह साल की हुई थी। उसकी हल्की साँवली जाँघें ट्यूबलाइट की रोशनी में ऐसी लग रही थीं जैसे चाँद की रोशनी में केले का तना। उस वक्त मैं राजनीति शास्त्र में एमए करके इलाहाबाद से प्रशासकीय सेवाओं की तैयारी कर रहा था। मेरा ज्यादातर समय पढ़ाई में ही बीतता था। लड़कियों के बारे में मैंने दोस्तों से ही सुना था और युवाओं के मशहूर लेखक मस्तराम को पढ़कर हस्तमैथुन कर लिया करता था। अचानक मुझे लगा कि मैं यह क्या कर रहा हूँ? यह लड़की मुझे भैया कहती है और मैं इसके बारे में ऐसा सोच रहा हूँ। मुझे बड़ी आत्मग्लानि महसूस हुई और मैं बाथरूम में चला गया।
बाहर आकर मैंने सोचा कि इसकी स्कर्ट ठीक कर दूँ। फिर मुझे लगा कि अगर यह जग गई तो कहीं कुछ गलत न सोचने लग जाए इसलिए मैं बत्ती बुझाकर नीचे लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा। लेकिन मुझे नींद कहाँ आ रहा थी। ऐसा लग रहा था जैसे मेरे भीतर एक युद्ध चल रहा हो। मस्तराम की कहानियाँ रह रहकर मुझे याद आ रही थीं। मस्तराम की कहानियों में भाई बहन की बहुत सी कहानियाँ थीं मगर मैं उन्हें देखते ही छोड़ देता था। मुझे ऐसी कहानियाँ बेहद ही बचकाना एवं बेवकूफ़ी भरी लगती थीं। भला ऐसा भी कहीं होता है कि लड़की जिसे भैय्या कहे उसके साथ संभोग करे।
अगला एक घंटा ऐसे ही गुजरा। कामदेव ने मौका देखकर अपने सबसे घातक दिव्यास्त्र मेरे सीने पर छोड़े। मैं कब तक बचता। आखिर मैं उठा और मैंने कमरे की बत्ती जला दी। सुगन्धा की स्कर्ट और ऊपर उठ गई थी और अब उसकी नीले रंग की पैंटी थोड़ा थोड़ा दिखाई पड़ रही थी। उसकी जाँघें बहुत मोटी नहीं थीं और उरोज भी संतरे से थोड़ा छोटे ही थे। मैं थोड़ी देर तक उस रमणीय दृष्य को देखता रहा। मेरा लिंग मेरे पजामे में तम्बू बना रहा था। अगर इस वक्त सुगन्धा जग जाती तो पता नहीं क्या सोचती।
फिर मेरे दिमाग में एक विचार आया और मैंने बत्ती बुझा दी। थोड़ी देर तक मैं वैसे ही खड़ा रहा धीरे धीरे मेरी आँखें अँधेरे की अभ्यस्त हो गईं। फिर मैं बेड के पास गया और बहुत ही धीरे धीरे उसकी स्कर्ट को पकड़कर ऊपर उठाने लगा। जब मुझे लगा कि स्कर्ट और ज्यादा ऊपर नहीं उठ सकती तो मैंने स्कर्ट छोड़कर थोड़ी देर इंतजार किया और कमरे की बत्ती जला दी। जो दिखा उसे देखकर मैं दंग रह गया। ऐसा लग रहा था जैसे पैंटी के नीचे सुगन्धा ने डबल रोटी छुपा रक्खी हो या नीचे आसमान के नीचे गर्म रेत का एक टीला बना हुआ हो। मैं थोड़ी देर तक उसे देखता रहा।
फिर मैंने बत्ती बुझाई और बेड के पास आकर उसकी जाँघों पर अपनी एक उँगली रक्खी। मैंने थोड़ी देर तक इंतजार किया लेकिन कहीं कोई हरकत नहीं हुई। मेरा दिल रेस के घोड़े की तरह दौड़ रहा था और मेरे लिंग में आवश्यकता से अधिक रक्त पहुँचा रहा था। फिर मैंने दो उँगलियाँ उसकी जाँघों पर रखीं और फिर भी कोई हरकत न होते देखकर मैंने अपना पूरा हाथ उसकी जाँघों पर रख दिया।
धीरे धीरे मैंने अपने हाथों का दबाव बढ़ाया मगर फिर भी कोई हरकत नहीं हुई। सुगन्धा वाकई घोड़े बेचकर सो रही थी।
धीरे धीरे मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी। फिर मैंने अपना हाथ उसकी जाँघों से हटाकर उसकी पैंटी के ऊपर रखा। मेरी हिम्मत और बढ़ी। मैंने अपने हाथों का दबाव बढ़ाया। अचानक मुझे लगा कि उसके जिस्म में हरकत होने वाली है। मैंने तुरंत अपना हाथ हटा लिया। उसके जिस्म में वाकई हरकत हुई और उसने करवट बदली। मैं फौरन जाकर नीचे लेट गया। फिर वो उठी और उसने कमरे की लाइट जलाई। मैंने कस कर आँखें बंद कर लीं और ईश्वर से दुआ करने लगा- प्रभो इस बार बचा ले ! आगे से मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा। वो बाथरूम का दरवाजा खोलकर अंदर चली गई। अब मेरी समझ में आया कि वो बाथरूम गई है। वो वापस आई। ट्यूबलाइट की रोशनी सीधे मेरी आँखों पर आ रही थी इसलिए आँख बंद करने के बावजूद ट्यूब लाइट की रोशनी की तीव्रता कम होने से मैंने महसूस किया कि वो ट्यूबलाइट के पास जाकर खड़ी हो गई है। वो थोड़ी देर तक वैसे ही खड़ी रही मेरा दिल फिर धड़कने लगा।
अचानक उसने ट्यूबलाइट बंद कर दी और अपने बिस्तर पर जाकर लेट गई। तब मुझे समझ में आया कि वो ट्यूबलाइट के पास क्यूँ खड़ी थी। मेरे लिंग ने पजामे में तंबू बनाया हुआ था और मैं बनियान पहनकर सो रहा था। हो न हो ये जरूर मेरे लिंग को ही देख रही होगी आखिर जीव विज्ञान की छात्रा है मुझसे ज्यादा तो मैथुन क्रिया के बारे में इसे पता होगा।
यह सोचकर मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं हस्तमैथुन करने लगा। थोड़ी देर बाद ढेर सारा वीर्य फर्श पर गिरा। मैंने उस गंदे कंबल के निचले हिस्से से फर्श पोंछा और सो गया।
अगले दिन सुबह जब मैं उठा तो वह बाथरूम में थी। मेरी निगाह अब उसके लिए बदल चुकी थी और मेरी हिम्मत भी इस वक्त बहुत बढ़ी हुई थी। मैंने तलाश किया तो उस घटिया होटल के घटिया से बाथरूम के पुराने दरवाज़े में एक छोटा सा सुराख फर्श से एक फीट ऊपर दिखाई दिया। अंदर से कपड़े धोने की आवाज़ आ रही थी लेकिन बैठकर भी उस सुराख से झाँका नहीं जा सकता था। तो मैं वहीं फर्श पर लेट गया और अपनी आँखें उस सुराख पर लगा दीं।
अंदर का दृश्य देखकर फौरन मेरा लिंग उत्तेजित अवस्था में आ गया। सुगन्धा बिल्कुल नंगी होकर कपड़े धो रही थी। उसके निर्वस्त्र पीठ और नितंब मेरी तरफ थे। दो अधपके खरबूजे रात्रिभोज का निमंत्रण दे रहे थे।
फिर वो खड़ी हो गई और मुझे उसकी सिर्फ़ टाँगें दिखाई पड़ने लगीं। मैं किसी योगी की तरह उसी आसन में योनि के दर्शन पाने का इंतजार करने लगा।
आखिरकार इंतजार खत्म हुआ। वो मेरी तरफ मुँह करके बैठी और उसने अपनी जाँघों पर साबुन लगाना शुरू किया। फिर उसने अपनी टाँगें फैलाई तब मुझे पहली बार उस डबल रोटी के दर्शन मिले जिसको चखने के लिए मैं कल रात से बेताब था। हल्के हल्के बालों से ढकी हुई योनि ऐसी लग रही थी जैसे हिमालय पर काली बर्फ़ गिरी हुई हो और बीच में एक पतली सूखी नदी बर्फ़ के पिघलने और अपने पानी पानी होने का इंतजार कर रही थी। पहली बार मैंने सचमुच की योनि देखी।
अच्छी चीजें कितनी जल्दी नज़रों के सामने से ओझल हो जाती हैं। साबुन लगाकर वो खड़ी हो गई और फिर मुझे उसके कपड़े पहनने तक सिर्फ़ उसकी टाँगें ही दिखाई पड़ीं।
प्रवेश परीक्षा का पहला पेपर दिला कर मैं उसे होटल वापस लाया। दूसरा और आखिरी पेपर अगले दिन था। वो प्रवेश परीक्षा दे रही थी और मैं परीक्षा हाल के बाहर बैठा अपनी वासना की पूर्ति के लिए योजना बना रहा था। शाम को हम खाना खाने गए। वापस आकर मैंने उससे कहा- सुगन्धा, कल रात मैं ठीक से सो नहीं पाया, यह कंबल बहुत चुभता है, इस पर मुझे नींद नहीं आती।
वो बोली- भैया, आप बेड पर सो जाओ मैं नीचे सो जाती हूँ।
इस पर मैं बोला- नहीं, तुम्हारा ठीक से सोना जरूरी है तुम्हारी परीक्षा चल रही है। चलो कोई बात नहीं मैं एक दिन और अपनी नींद खराब कर लूँगा।
इस पर वो बोली- नहीं भैय्या, ऐसा करते हैं, हम दोनों बेड पर सो जाते हैं।
मेरी योजना सफल हो गई थी। मैंने उसे दिखाने के लिए बेमन से हामी भर दी।
वो दूसरी तरफ मुँह करके सो रही थी और मैं धड़कते दिल से उसके सो जाने का इंतजार कर रहा था। मेरा पजामा और उसका स्कर्ट एक दूसरे को चूम रहे थे।
जब मुझे लगा कि वो सो गई है तो मैंने अपना लिंग उसके खरबूजों के बीच बनी खाई से सटा दिया।
जब मुझे लगा कि वो सो गई है तो मैंने अपना लिंग उसके खरबूजों के बीच बनी खाई से सटा दिया। थोड़ी देर तक मैं उसी पोजीशन में रहा। जब उसकी तरफ से कोई हरकत नहीं हुई तो मैंने लिंग का दबाव बढ़ाया। फिर भी कोई हरकत नहीं हुई। तब मैंने धीरे से अपना हाथ उसके नितम्ब पर रख दिया। मेरे हाथ में हल्का हल्का कंपन हो रहा था। थोड़ी देर इंतजार करने के बाद मैंने उसके नितम्ब पर अपने हाथों का दबाव और बढ़ा दिया।
अचानक उसके नितम्ब थोड़ा पीछे हुए और उनमें संकुचन हुआ, उसके खरबूजों ने मेरे लिंग को जकड़ लिया। पहले तो मैं यह सोचकर डर गया कि वो जगने वाली है पर उसकी तरफ से और कोई हरकत नहीं हुई तो मैं समझ गया कि इसे भी मजा आ रहा है।
कल यह मेरा लिंग देख रही थी और आज बिना ज्यादा ना नुकुर किए मेरे साथ इस सिंगल बेड पर सोने को तैयार हो गई। यह सोचकर मेरी हिम्मत बढ़ी और मैंने अपना हाथ उसके नितम्ब से सरकाकर उसकी जाँघ पर ले गया फिर थोड़ा इंतजार करने के बाद मैंने अपनी हथेली उसकी डबल रोटी पर रख दी। उसका पूरा बदन जोर से काँपा वो थोड़ा और पीछे होकर एकदम मुझसे सट गई और मेरा लिंग उसके खरबूजों की दरार में और गहरे सरक गया।
अब मैं पूरी तरह आश्वस्त हो गया कि आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है।
फिर मैं आहिस्ता आहिस्ता उसकी डबल रोटियों को सहलाने लगा। उसका बदन धीरे धीरे काँप रहा था और गरम होता जा रहा था। मैंने अपना हाथ ऊपर की तरफ ले जाना शुरू किया। सुगन्धा ने अभी ब्रा पहनना शुरू नहीं किया था। कारण शायद यह था कि उसका शरीर अभी इतना विकसित नहीं हुआ था कि ब्रा पहनने की जरूरत पड़े। उसने टीशर्ट के अंदर बनियान पहन रखी थी।
मेरा हाथ किसी साँप की तरह सरकता हुआ उसके पेट पर से होता हुआ जब उसके नग्न उभारों पर आया तो उसके मुँह से सिसकारी निकल गई।
मैंने धीरे धीरे उसके उभारों को सहलाना और दबाना शुरू किया तो उसके खरबूजों ने मेरे लिंग पर क्रमाकुंचन प्रारंभ किया। मेरी जो हालत थी उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। कामदेव जरूर अपनी सफलता पर मुस्कुरा रहा होगा। दुनिया की सारी बुराइयों की जड़ यह कामदेव ही है।
थोड़ी देर बाद जब मैं उसके उभारों से उब हो गया तो मैंने अपना हाथ नीचे की तरफ बढ़ाया। उसके स्कर्ट की इलास्टिक फिर पैंटी की इलास्टिक को ऊपर उठाते हुए जब मेरे हाथ ने उसके दहकते हुए रेत के टीले को स्पर्श किया तो उसने कस कर मेरा हाथ पकड़ लिया। यह मेरा पहला अनुभव था इसलिए मैंने समझा कि सुगन्धा मुझे और आगे बढ़ने से रोक रही है। उस वक्त मेरी समझ में कहाँ आना था कि यह प्रथम स्पर्श की प्रतिक्रिया है।
वो मेरी चचेरी बहन थी और मैं उससे बहुत प्यार करता था। अपनी उस खराब हालत में भी मैं उसके साथ जबरदस्ती नहीं करना चाहता था। मैंने अपना हाथ बाहर निकाल लिया और उसके पेट की त्वचा को सहलाने लगा। थोड़ी देर बाद उसने मेरा खुद ही मेरा हाथ पकड़ कर स्कर्ट के अंदर डाल दिया। मेरी खोई हुई हिम्मत वापस लौट आई और मैंने उसके टीले को आहिस्ता आहिस्ता सहलाना शुरू किया और उसको झटके लगने शुरू हो गए। इन झटकों से उसके खरबूजे मेरे लिंग से रगड़ खाने लगे। उफ़ क्या आनन्द था ! जो आनन्द किसी वर्जित फल के अचानक झोली में गिरने से प्राप्त होता है वो दुनिया की और किसी चीज में नहीं होता।
जब मेरे हाथों ने उसके टीले को दो भागों में बाँटने वाली दरार को स्पर्श किया तो उसे फिर से एक जोर का झटका लगा। अगर मेरा पजामा और उसकी स्कर्ट पैंटी बीच में न होते तो मेरा लिंग पिछवाड़े के रास्ते से उसके शरीर में प्रवेश कर जाता। उसकी दरार से गुनगुने पानी का रिसाव हो रहा था जिसके स्पर्श से मेरी उँगलियाँ गीली हो गईं। गीलापन मेरी उँगलियों के लिए चिकनाई का कार्य कर रहा था और अब मेरी उँगलियाँ उसकी दरारों में गुप्त गुफ़ा ढूँढ रही थीं। न जाने क्यों सारे खजाने गुप्त गुफ़ाओं में ही होते हैं। जल्द ही मेरी तर्जनी ने गुफा का मुहाना खोज लिया और उसमें प्रवेश करने की चेष्टा करने लगी। गुफ़ा के रास्ते पर बड़ी फिसलन थी और जैसे ही मेरी तर्जनी सरकते हुए मुहाने के पार गई सुगन्धा के मुँह से हल्की सी चीख निकल पड़ी, वो करवट बदलकर मुझसे लिपट गई।
इस प्रक्रिया में मेरी तर्जनी और लिंग दोनों उस असीम सुख से वंचित हो गए जो उन्हें मिल रहा था।
थोड़ी देर मैंने उसे खुद से लिपटे रहने दिया फिर मैंने धीरे से उसे खुद से अलग किया और चित लिटा दिया। फिर मैंने नीचे से उसका स्कर्ट उठाना शुरू किया और उसकी टाँगों को चूमना शुरू किया। मेरे हर चुम्बन पर वो सिहर जाती थी। जब मैंने उसकी पैंटी के ऊपर से उसके गर्म रेतीले टीले को चूमा तो वो जोर से काँपी। अब मैं उसके टीलों को देखने का आनंद लेना चाहता था। बाथरूम में इतनी दूर से देखने में वो मजा कहाँ था जो इतने करीब से देखने पर मिलता।
मैंने सुगन्धा से पूछा- बत्ती जला दूँ?
इतनी देर में वो पहली बार बोली- नहीं मुझे शर्म आएगी।
उफ़ ! ये लड़कियाँ भी ज्यादा बेशर्म हो जाएँ तो बेमजा, ज्यादा शर्मीली हो जाएँ तो बेमजा।
बहरहाल मैंने उसकी पैंटी की इलास्टिक में अपनी उंगली फँसाई और उसे नीचे खींचने लगा। उसने अपने नितंब ऊपर उठा दिए और मेरा काम आसान हो गया। पैंटी उतारने के बाद मैं अपना मुँह उसकी योनि के पास ले गया। एक अजीब सी गंध मेरे नथुनों से टकराई। मैंने साँस रोककर उसकी योनि को चूम लिया।
वो उछल पड़ी।
अब स्वयं पर नियंत्रण रख पाना मेरे लिए मुश्किल था। मैंने तुरंत पजामा उतार दिया। शायद आदमी हो या पजामावाली कहावत यहीं से बनी है। ऐसी स्थिति में भी जो पजामा पहने रहे वो वाकई आदमी नहीं पजामा है। मैंने बनियान भी उतारी और उसके बाद अपने अंतिम अंतर्वस्त्र को भी बेड के नीचे फेंक दिया। सुगन्धा की टाँगें चौड़ी की और महान लेखक मस्तराम की कहानियों की तरह लिंग उसकी योनि पर रखकर एक जोरदार झटका मारा।
लिंग तो घुसा नहीं सुगन्धा चीख पड़ी सो अलग।
यह क्या हो गया मैंने सोचा। मस्तराम की कहानियों में तो दो तीन झटकों और थोड़े से दर्द के बाद आनन्द ही आनन्द होता है। यहाँ सुगन्धा कराह रही है।
मैं तुरंत सुगन्धा के बगल लेट गया और उसे कसकर खुद से चिपटा लिया, मैंने पूछा- क्या हुआ बेबी?
वो बोली- भैय्या, बहुत दर्द हुआ, इतने जोर से मत कीजिए। धीरे धीरे कीजिए न।
बार बार मेरी हिम्मत टूट रही थी और सुगन्धा बार बार मेरी हिम्मत बढ़ा रही थी। शायद कामदेव ने उसके ऊपर भी अपने सारे अमोघ अस्त्रों का प्रयोग कर दिया था। मैं दुबारा उसकी जाँघों के बीच बैठा और इस बार महान लेखक मस्तराम के लिखे को न मानते हुए मैंने अपना लिंग उसकी योनि पर रगड़ना शुरू किया। वो भी अपनी कमर उठा उठा कर मेरा साथ देने लगी। फिर मैंने उसकी गुफा के मुहाने पर लिंगमुंड का दबाव बढ़ाया। इस बार उसने कुछ नहीं कहा।
मैंने थोड़ा और दबाव बढ़ाया तो वो बोली- भैय्या।
मैंने कहा- हाँ।
वो बोली- आपकी भी प्रवेश परीक्षा चल रही है।
उसकी बात सुनकर मेरे मुँह से बेसाख्ता हँसी निकल गई। मैं समझ गया कि लिंग रगड़ने के दौरान ही सुगन्धा आनंद के चरम पर पहुँच गई थी और अब वो केवल मेरा साथ देने के लिए लेटी हुई है। ऐसी स्थिति में अंदर घुसाने की कोशिश करना बेकार भी था और खतरनाक भी।
मैं उसकी योनि पर ही अपना लिंग रगड़ने लगा और रगड़ते रगड़ते एक वक्त ऐसा भी आया जब मेरे भीतर सारा लावा फूट कर उसकी योनि पर बिखरने लगा। फिर मैंने उसकी पैंटी उठाई और उसकी योनि पर गिरे अपने वीर्य को साफ करने के पश्चात अपने हाथों से उसे पहना दी। फिर मैंने उठकर अपने कपड़े पहने और सुगन्धा को बाहों में भरकर सो गया।
सुबह ग्यारह बजे मेरी नींद खुली, सुगन्धा तब भी घोड़े बेचकर सो रही थी, मैंने उसे जगाया।
उसकी प्रवेश परीक्षा दस बजे से थी। अब कुछ नहीं हो सकता था।
मैंने कहा- ट्रेन तो शाम को है, चलो इस बहाने आज बनारस घूमते हैं।
हम दोनों तैयार होकर निकल पड़े। रास्ते में मैं सोच रहा था कि हम दोनों की प्रवेश परीक्षा अधूरी रह गई लेकिन हम दोनों ही बहुत खुश थे। यह कालेज नहीं तो कोई और कालेज सही। कहीं न कहीं तो दाखिला मिलेगा ही।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा के दो सप्ताह बाद सुगन्धा को इलाहाबाद विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा देनी थी। मैंने पिछली कहानी में ही जिक्र कर दिया था कि उन दिनों मैं इलाहाबाद में किराए पर कमरा लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी कर रहा था। मेरा कमरा प्रयाग स्टेशन से दो मिनट की दूरी पर था। मेरे मकान मालिक स्टेट बैंक आफ़ इंडिया में प्रबंधक थे। वो, उनकी माँ, उनकी पत्नी और उनकी बेटी वहाँ रहते थे। उनका एक बेटा भी था जो पंतनगर से यांत्रिक अभियांत्रिकी में स्नातक कर रहा था। उनका मकान दो मंजिला था लेकिन ऊपर की मंजिल पर केवल एक कमरा, रसोई और बाथरूम थे जो उन्होंने मुझे किराए पर दे रखा था। उनका परिवार नीचे की मंजिल में रहता था। ऊपर चढ़ने के लिए घर के बाहर से ही सीढ़ियाँ थीं ताकि किराएदार की वजह से उन लोगों को कोई परेशानी न हो। मकान मालिक मुझे बहुत पसंद करते थे। कारण था कि मैं अपनी पढ़ाई लिखाई में ही व्यस्त रहता था। मेरे दोस्त भी एक दो ही थे और वो भी बहुत कम मेरे पास आते थे। लड़कियों से तो मेरा दूर दराज का कोई नाता नहीं था। उनकी बेटी मुझे भैय्या कहती थी।
जब मैं सुगन्धा के साथ प्रयाग स्टेशन पर उतरा तो मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। बनारस से लौटने के बाद मैं इलाहाबाद चला आया था। कल रात सुगन्धा को इलाहाबाद लाने के लिए गाँव रवाना हुआ था। उस समय से ही सुगन्धा के साथ फिर से रात गुजारने के बारे में सोच-सोच कर मेरे लिंग का बुरा हाल था। सुगन्धा ने सलवार सूट पहना हुआ था और देखने में बिल्कुल ही भोली भाली और नादान लग रही थी।
मैं उसको लेकर पहले मकान मालिक के पास गया। उनको बताना जरूरी था कि सुगन्धा कौन थी और मेरे साथ क्या कर रही थी। मकान मालिक कहीं बाहर गए हुए थे। मैंने मकान मालकिन का परिचय सुगन्धा से कराया और यह भी बताया कि यह इलाहाबाद विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा देने आई है। अगर इसका दाखिला हो गया तो यहीं महिला छात्रावास में रहकर पढ़ाई करेगी।
परिचय कराने के बाद मैं सुगन्धा को लेकर ऊपर गया। सुगन्धा के अंदर आते ही मैंने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। मुझे पता था कि अब यहाँ कोई नहीं आने वाला।
सुगन्धा मेरी तरफ देख रही थी, मैंने तुरंत उसे कसकर अपनी बाहों में भर लिया। उफ़ क्या आनन्द था। वो भी लता की तरह मुझसे लिपटी हुई थी। फिर मैंने उसे चूमना शुरू किया गाल, गर्दन, पलकें, ठोढ़ी और होंठ। उसके होंठ बहुत रसीले नहीं थे। मैंने अपनी जीभ से उसके होंठ खोलने चाहे लेकिन उसने मुँह नहीं खोला। फिर मैंने अपना एक हाथ उसके सूट के अंदर डाल दिया और उसके रसीले संतरों को मसलने लगा। उसके चूचूकों को अपनी दो उँगलियों के बीच लेकर रगड़ने लगा तो उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं।
सुगन्धा ने धीरे से कहा,”भैय्या कोई आ जाएगा।
मैंने भी उतने ही धीरे से जवाब दिया,”यहाँ कोई नहीं आता मेरी जान, आज मुझे मत रोको। तुम नहीं जानती पिछले दो हफ़्ते मैंने कैसे गुजारे हैं तुम्हारी याद में। प्लीज आज मुझे मत रोको सुगन्धा, प्लीज।
ऐसा कहने के बाद मेरे हाथ उसके सलवार के नाड़े से उलझ गए। कुछ ही पलों बाद उसकी सलवार उसके घुटनों के नीचे गिरी हुई थी और उसकी चिकनी जाँघें खिड़की के पर्दे से छनकर आ रही रोशनी में चमक रही थीं। मैं तुरंत घुटनों के बल बैठ गया और उसकी चिकनी जाँघों को चूमने लगा। मेरे हर चुम्बन पर वो सिहर उठती थी। फिर मैंने उसका कमीज़ ऊपर उठाया। उसने गुलाबी रंग की पैंटी पहन रखी थी। कमीज़ उठाते हुए मैंने उसके शरीर से बाहर निकाल दिया। अब वो सफेद बनियान और गुलाबी पैंटी में मेरे सामने खड़ी थी।
उफ़ ! क्या नजारा था !
कितना तरसा था मैं किसी लड़की को इस तरह देखने के लिए। फिर मैंने उसकी बनियान उतारनी शुरू की। उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। मैंने पूछा,”क्या हुआ?”
वो बोली,”वो पर्दा ठीक से बंद नहीं है।
ये लड़कियाँ भी जब देखो तब खड़े लिंग पर डंडा मार देती हैं। अरे यहाँ कुत्ता भी नहीं आता। पर्दा न भी लगाऊँ तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा, मैंने सोचा।
बहरहाल मैं उसको नाराज नहीं करना चाहता था। मैंने पर्दा अच्छी तरह से खींच-खींचकर बंद किया। फिर मैं उसके पास आया और बिना देर किए उसकी बनियान उतार दी। उसने शर्म के मारे अपनी हथेलियों में मुँह छिपा लिया। उसके हल्के साँवले उरोज मेरी तरफ तने हुए थे, जिनके बीचोंबीच छोटे छोटे कत्थई रंग के चूचुक चूसने का निमंत्रण दे रहे थे।
मैंने दोनों उरोजों को अपनी हथेलियों में लेकर सहलाना शुरू कर दिया। उफ़ क्या आनन्द था। आज पहली बार मैं उसके चूचुकों को रोशनी में देख रहा था और उनसे खेल रहा था। कुछ देर बाद मैंने उसके एक चूचुक को अपने होंठों के बीच दबा लिया। उसके मुँह से सीत्कार निकल पड़ी। मैंने धीरे धीरे उसके चुचुकों को चूसते हुए उसके उभारों को और ज्यादा अपने मुँह में लेना शुरू किया। उसका बदन मस्ती से काँपने लगा था। यही क्रिया मैंने उसके दूसरे उभार के साथ भी दुहराई।
फिर मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू किये। अंडरवियर को छोड़कर मैंने सबकुछ उतार दिया। सुगन्धा अभी तक अपना मुँह हथेलियों में छुपाये हुये थी।
मैंने उसकी हथेलियाँ पकड़ीं और उसके मुँह से हटाकर अपनी कमर पर रख दीं और उसे खुद से चिपका लिया। उसके उरोज मेरे सीने से चिपक गये। कुछ भी कहिये, जो मजा किसी काम को पहली बार करने में आता है वो उसके बाद फिर कभी नहीं आता।
मैंने उसके नंगे बदन को चूमना शुरू किया। नीचे आते हुए जब मैंने उसकी पैंटी को चूमा तो उसने मेरे बाल पकड़ लिये। मैंने अपनी उँगलिया पैंटी की इलास्टिक में फँसाई और उसके घुटनों से नीचे खींच दिया। फिर मैं अपना मुँह उसकी योनि के पास ले आया। इस बार मैं इतना उत्तेजित था कि योनि की अजीब सी गंध भी मुझे अच्छी लग रही थी। उसने अभी योनि के बाल साफ करना शुरू नहीं किया था।
मैंने उँगलियों से उसकी योनि की संतरे जैसी फाँकें फैला दीं तो हल्का साँवला रंग अंदर गहराई में जाकर लाल रंग में बदलता हुआ दिखा। इसी लाल गुफा के अंदर जीवन का सारा आनन्द छुपा हुआ है, मैंने सोचा।
जहाँ से दरार शुरू हो रही थी उसके ठीक नीचे मटर के फूल जैसी एक संरचना थी। मुझे प्रेम गुरू की कहानियाँ पढ़ने के बाद पता चला कि उसे भगनासा कहते हैं।
मैंने अपनी जुबान उस मटर के फूल से सटा दी। सुगन्धा चिहुँक पड़ी। उसने मेरे बालों को और कस कर जकड़ लिया। मैंने अपनी जुबान उस फूल पर फिरानी शुरू की तो सुगन्धा के शरीर का कंपन बढ़ने लगा।
इस अवस्था में अब और ज्यादा कुछ कर पाना संभव नहीं था तो मैं खड़ा हुआ और उसे अपनी गोद में उठाकर बिस्तर पर ले गया। बिस्तर क्या था, दो फ़ोल्डिंग चारपाइयाँ एक दूसरे से सटाकर उन पर दो सिंगल बेड वाले गद्दे बिछा दिए गए थे।
दूसरा फोल्डिंग बेड मैं तभी बिछाता था जब गाँव से कोई दोस्त या पिताजी आते थे वरना उसको मोड़कर पहले वाले फोल्डिंग बेड के नीचे डाल देता था। इस बार गाँव जाने से पहले मैं दोनों फ़ोल्डिंग बेड बिछा कर गया था।
उसके ऊपर चादर बिछी हुई थी। मैंने सुगन्धा को लिटा दिया। पैंटी और सलवार अभी भी उसके पैरों से लिपटे हुए थे। मैंने उन्हें भी उतारकर बेड से नीचे फेंक दिया।अब वो बिल्कुल निर्वस्त्र मेरे सामने पड़ी हुई थी और मैं खिड़की से छनकर आती रोशनी में उसका शानदार जिस्म देख रहा था।
थोड़ी देर उसका जिस्म निहारने के बाद मैंने उसके घुटने मोड़ कर खड़े कर दिये और टाँगें चौड़ी कर दीं। फिर मैं अपना मुँह उसकी टाँगों के बीच करके लेट गया। उँगलियों से उसकी योनि की फाँको को इतना फैलाया कि उसकी सुरंग का छोटा सा मुहाना दिखाई पड़ने लगा। मैंने सोचा कि इतने छोटे से मुहाने से मेरा इतना मोटा लिंग एक झटके में कैसे अंदर जा पाता। मस्तराम वाकई हवाई लेखन करता है। मैंने अपनी जीभ उस छेद से सटा दी। मेरी जुबान पर स्याही जैसा स्वाद महसूस हुआ। मैंने जुबान अंदर घुसाने की कोशिश की तो सुगन्धा ने अपने नितंब ऊपर उठा दिये। अब उसकी योनि का छेद थोड़ा और खुल गया और मुझे जुबान का अगला हिस्सा अंदर घुसाने में आसानी हुई।
फिर मैंने अपनी जुबान बाहर निकाली और फिर से अंदर डाल दी। उसके शरीर को झटका लगा। उसने अभी भी नितंब ऊपर की तरफ उठा रखा था। मैंने बगल से तकिया उठाया और उसके नितंबों के नीचे लगा दिया।
फिर मैंने अपनी तरजनी उँगली उसके छेद में घुसाने की कोशिश की। मेरी जुबान ने पहले ही गुफा को काफी चिकना बना रखा था। तरजनी धीरे धीरे अंदर घुसने लगी। जब उँगली अंदर चली गई तो मैं उसे अंदर ही मोड़कर उसकी योनि के आंतरिक हिस्सों को छूने लगा। मुझे अपनी उँगली पर गीली रुई जैसा अहसास हो रहा था। कुछ हिस्से थोड़ा खुरदुरे भी थे। उनको उँगली से सहलाने पर सुगन्धा काँप उठती थी।
मैंने सोचा अब दो उँगलियाँ डाल कर देखी जाए। मैं तरजनी और उसके बगल की उँगली एक साथ धीरे धीरे उसकी गुफा में घुसेड़ने लगा। थोड़ी सी रुकावट और सुगन्धा के मुँह से एक कराह निकलने के बाद दोनों उँगलियाँ भीतर प्रवेश कर गईं। अब सुगन्धा की गुफा से पानी का रिसाव काफी तेजी से हो रहा था। मैंने तकिया हटाया और उसकी जाँघें अपनी जाँघों पर चढ़ा लीं। फिर मैं अपना लिंग मुंड उसकी योनि पर रगड़ने लगा और वो अपनी कमर उठा उठा कर मेरा साथ देने लगी।
थोड़ी देर रगड़ने के बाद मैंने अपना गीला लिंग मुंड उसकी गुफा के मुहाने पर रखा और अंदर डालने के लिए जोर लगाया। उसके मुँह से फिर चीख निकली उसने पलट कर अपना मुँह तकिए में छुपा लिया। मैं आश्चर्य चकित रह गया कि यह आखिर क्या हुआ। मस्तराम की कहानियों के हिसाब से तो मुझे इसकी गुफा में प्रवेश कर जाना चाहिए था। अच्छा हुआ यहाँ कोई आता जाता नहीं वरना इसकी चीख मुझे संकट में डाल देती।
अचानक मेरे दिमाग को एक झटका लगा। मुझे अपनी छात्रावास की रैगिंग याद आ गई। जब हम सबको नंगा करके हमारे लिंग नापे गये थे और मुझे अपनी कक्षा के सबसे बड़े लंडधारक की उपाधि प्रदान की गई थी। अच्छा तो इसलिए मुझको सफलता नहीं मिल रही है। सुगन्धा ठहरी कच्ची कली और मैं ठहरा आठ इंच का लंडधारी। कहाँ से पहली बार में कामयाबी मिलती। अच्छा हुआ मैंने ज्यादा जोर नहीं लगाया।
मुझे याद आया कि मेरे सबसे छोटे चाचा कि पत्नी को सुहागरात के बाद अगले दिन अस्तपाल ले जाना पड़ा था। क्यों? यह बात घर की महिलाओं के अलावा किसी को नहीं पता थी। सुनने में आया था कि पुलिस केस होने वाला था मगर ले देकर रफ़ा दफ़ा किया गया। जरूर ये लंबा लिंग अनुवांशिक होता है और चाचा ने सुहागरात के दिन ज्यादा जोर लगा दिया होगा।
हे कामदेव, अच्छा हुआ मैंने खुद पर नियंत्रण रखा वरना आपके चक्कर में अर्थ का अनर्थ हो जाता।
मैं उठा और कमरे से सटी रसोई में जाकर एक कटोरी में थोड़ा सा सरसों का तेल ले आया। मैं सुगन्धा के पास गया और बोला,”सुगन्धा इस बार धीरे से करूँगा। प्लीज बेबी करने दो ना।
इतना कहकर मैंने उसको कंधे से पकड़कर खींचा। उसने कोई विरोध नहीं किया। मैंने उसे चित लिटा दिया। मैंने तरजनी उँगली तेल में डुबोई और उसकी गीली गुफा में घुसा दी। एक दो बार अंदर बाहर करने से तेल गुफा की दीवारों पर अच्छी तरह फैल गया। फिर मैंने दो उँगलियाँ तेल में डुबोईं और अंदर डालकर तीन चार बार अंदर-बाहर किया।
गुफा का मुहाना अब ढीला हो चुका था। लेकिन इस बार मैं कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था। मैंने तीन उँगलियाँ तेल में डुबोईं और उसकी गुफा में घुसाने लगा। थोड़ी दिक्कत के बाद तीन उँगलियाँ अंदर चली गईं। मेरी टूटती हुई हिम्मत वापस लौटी। लिंग महाराज जो जम्हाई लेने लगे थे उन्होंने एक शानदार अंगड़ाई ली और सचेतन अवस्था में वापस लौटे।
मैंने अपने लिंग पर तेल लगाना शुरू किया। सुगन्धा ज्यादातर समय आँखें बंद करके मजा ले रही थी। उसके लिए भी यह सब नया अनुभव था इसलिए उसका हिचकिचाना और शर्माना स्वाभाविक था।
जब लिंग पर तेल अच्छी तरह लग गया तब मैंने लिंगमुंड पर थोड़ा सा तेल और लगाया। इस बार मैं कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता था। फिर मैंने उसकी जाँघें अपनी जाँघों पर रखीं। एक हाथ से अपना लिंग पकड़ा और उसकी योनि के मुँह पर रख दिया। मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। मैंने थोड़ा जोर लगाया और मुझे उसकी गुफा का मुहाना अपने लिंगमुंड पर कसता हुआ महसूस हुआ। मैंने थोड़ा जोर और लगाया।
सुगन्धा थोड़ा कसमसाई पर बोली कुछ नहीं। फिर मैंने कामदेव का नाम लेकर हल्का सा झटका दिया और इस बार लगा कि जैसे मेरे लिंगमुंड की खाल चिर गई हो। सुगन्धा के मुँह से भी कराह निकली मगर कामदेव की कॄपा से इस बार लिंगमुंड अंदर चला गया था। सुगन्धा ने अपनी कमर हिलाने की कोशिश की लेकिन मैंने उसकी जाँघें कसकर पकड़ रखी थीं। वो हिल नहीं पाई। एक दो बार और कोशिश करने के बाद वो ढीली पड़ गई। मैं प्रतीक्षा करता रहा। जब मुझे लगा कि अब यह मेरा लिंग बाहर निकालने की कोशिश नहीं करेगी तब मैंने उसकी जाँघें छोड़ दीं और लिंग पर दबाब बढ़ाया। मेरा लिंग थोड़ा और अंदर घुसा। क्या कसाव था, क्या आनन्द था।
मैंने लिंग थोड़ा सा बाहर खींचा और फिर दबाव बढ़ाते हुये अंदर डाल दिया। धीरे धीरे मैं लिंग अंदर बाहर कर रहा था। लेकिन मैं लिंगमुंड को बाहर नहीं आने दे रहा था। क्या पता सुगन्धा दुबारा डलवाने से मना कर दे। लिंग और योनि पर अच्छी तरह लगा हुआ सरसों का तेल मेरे प्रथम संभोग में बहुत सहायता कर रहा था।
फिर मैंने लिंग अंदर बाहर करने की गति थोड़ा और बढ़ा दी। लिंग अभी भी पूरा नहीं घुसा था लेकिन अब सुगन्धा मेरे हर धक्के पर अपना नितंब उठा उठाकर मेरा साथ दे रही थी।
अब मैं आश्वस्त हो गया था कि लिंग निकल भी गया तो भी सुगन्धा दुबारा डालने से मना नहीं करेगी। मैंने लिंग निकाला और मैं सुगन्धा के ऊपर लेट गया। लिंग मैंने हाथ से पकड़कर उसकी योनि के द्वार पर रखा और फिर से धक्का दिया सुगन्धा को थोड़ी सी दिक्कत इस बार भी हुई लेकिन वो सह गई। उसे भी अब पता चल गया था कि लिंग और योनि के मिलन से कितना आनन्द आता है। पहले धीरे धीरे फिर तेजी से मैं धक्के लगाने लगा।
धीरे धीरे मैं आनन्द के सागर में गहरे और गहरे उतरता जा रहा था। पता नहीं कैसे मेरे मुँह से ये शब्द निकलने लगे,”सुगन्धा, मेरी जान ! दो हफ़्ते कितना मुट्ठ मारा है मैंने तुम्हें याद कर करके। आज मैं तुम्हारी चूत फाड़ दूँगा रानी। आज अपना सारा वीर्य तुम्हारी चूत में डालूँगा मेरी जान। ओ सुगन्धा मेरी जान। पहले क्यूँ नहीं मिली मेरी जान। इतनी मस्त चूत अब तक किसलिए बचा के रखी थी रानी। फट गई न तेरी चूत, बता मेरी जान फट गई ना।
सुगन्धा भी अपना नियंत्रण खो चुकी थी, वो बोली,”हाँ भैय्या, फट गई, आपने फाड़ दी मेरी चूत भैय्या।
पता नहीं और कौन कौन से शब्द उस वक्त हम दोनों के मुँह निकले। हम दोनों ही होशोहवास में नहीं थे। मेरा लिंग उसकी गहराइयों में उतरता जा रहा था। जाँघों पर जाँघें पड़ने से धप धप की आवाज पूरे कमरे में गूँज रही थी। लिंग और योनि एक साथ फच फच का मधुर संगीत रच रहे थे।
थोड़ी देर बाद सुगन्धा ने मुझे पूरी ताकत से जकड़ लिया और उसका बदन सूखे पत्ते की तरह काँपने लगा। मैं धक्के पर धक्का मारे जा रहा था और कुछ ही पलों बाद मेरे भीतर का सारा लावा पिघल पिघलकर उसकी प्यासी धरती के गर्भ में गिरने लगा।
दस मिनट तक हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे। फिर मैं उसके ऊपर से नीचे उतरा। तेल की कटोरी बिस्तर पर लुढ़की पड़ी थी। चादर खराब हो चुकी थी।
वो उठी और बाथरूम गई।
मैं उसके हिलते हुए नितंबों को देख रहा था। 
वो वापस आई और अपने कपड़े पहनने लगी, पहनते पहनते वो बोली,”लगता है मुझे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला मिल जाएगा।मैंने पूछा,”क्यूँ?”
वो बोली,”चचेरी सही तो क्या हुआ बहन तो आपकी ही हूँ। जब आज आपको दाखिला मिल गया तो मुझे भी मिल ही जाएगा।
एक बार फिर मेरे मुँह से बेसाख्ता हँसी निकल गई। इस लड़की का सेंस आफ़ ह्यूमर भी न, कमाल है।
वो फिर बोली,”और आप कितनी गंदी गंदी बातें कर रहे थे। शर्म नहीं आती आपको ऐसे गंदे गंदे शब्द मुँह से निकालते हुए।
मैंने सोचा ये देहाती लड़कियाँ भी न, इनको करने में शर्म नहीं आती लेकिन बोलने में बड़ी शर्म आती है लेकिन मैंने कहा,”सारी बेबी आगे से नहीं कहूँगा।
उस रात भी मैं करना चाह रहा था लेकिन वो बोली कि उसकी योनि में दर्द हो रहा है तो मुझे हस्तमैथुन करके काम चलाना पड़ा।
प्रवेश परीक्षा के परिणाम घोषित हुए तो उसका दाखिला सचमुच हो गया था।
आखिर बहन तो मेरी ही है चचेरी सही तो क्या हुआ, सोचकर मैं हँस पड़ा।
चलो अब तो वो यहीं रहेगी इलाहाबाद में, छुट्टी के दिन बुला लिया करूँगा।
मेरे और सुगंधा के बीच प्रथम संभोग के बाद अगले दिन उसकी परीक्षा थी, जिसे दिलवाकर मैं शाम की ट्रेन से उसे गाँव वापस छोड़ आया।
दो महीने बाद उसे महिला छात्रावास में कमरा मिल गया और उसकी पढ़ाई-लिखाई शुरू हो गई। तभी सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षाओं का परिणाम घोषित हुआ और मैं उनमें सफल रहा। अब मुझे मुख्य परीक्षाओं की तैयारी करनी थी। मुख्य परीक्षाओं के लिए मेरे विषय थे हिंदी और राजनीति विज्ञान। मेरे मकान मालिक को पता चला कि मेरा प्रारंभिक परीक्षाओं में चयन हो गया है तो उन्होंने मुझे बधाई दी और मुख्य परीक्षाओं के बारे में मेरी योजना जानने के बाद मुझसे बोले- तुम्हारी हिंदी तो काफी अच्छी होगी, तभी तुमने मुख्य परीक्षाओं के लिए हिंदी का चुनाव किया है। तुम मेरी बेटी नेहा को हिंदी पढ़ा दिया करो। तुम तो जानते ही हो कि वो हिंदी माध्यम की छात्रा है। गणित, विज्ञान तो कोचिंग में पढ़ लेती है हिंदी पढ़ाने वाला कोई नहीं मिलता। हिंदी में उसके नंबर भी बहुत कम आते हैं।
मैंने कहा- अंकल, मेरे पास खुद ही पढ़ने के लिए इतनी सामग्री है कि समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। मैं कैसे उसे समय दे सकूँगा।
अंकल बोले- बेटा, रोज मत पढ़ाना, कभी सप्ताह में एक दिन रख लो। वैसे भी हिंदी ऐसा विषय है कि सप्ताह में एक दिन भी किसी से मार्गदर्शन मिल जाए तो विद्यार्थी स्वयं ही तैयारी कर लेता है।
मैं बोला- ठीक है अंकल, रविवार को मैं उसे एक घण्टा पढ़ा दिया करूँगा।
अंकल खुश हो गए, उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया कि मेरा मुख्य परीक्षाओं में चयन हो जाए।
रविवार को मैं मुक्तिबोधकी लंबी कविता अँधेरे मेंपढ़कर समझने की कोशिश कर रहा था जब दरवाजे पर दस्तक हुई।
यहाँ कौन आ गया?’ सोचते हुए मैंने दरवाजा खोला। सामने स्कर्ट और टॉप पहने नेहा खड़ी थी। इसके पहले मेरी दो तीन बार उससे औपचारिक बातचीत भर हुई थी।
वो बोली- भैय्या, मैं हिंदी पढ़ने के लिए आई हूँ। पापा ने कहा है रविवार को मैं आपसे हिंदी पढ़ लिया करूँ।
मैं बोला- आओ बैठो, किताब लाई हो क्या?
उसने अपने हाथ में थमी किताब मुझे थमा दी। किताब पर उसने अखबार चढ़ाया हुआ था, किताब थी काव्यांजलि, जो उन दिनों उत्तर प्रदेश में विज्ञान संकाय के छात्रों को सामान्य हिंदी विषय में पढ़ाई जाने वाली किताबों में से एक थी।
परीक्षा में इसका एक पूरा पैंतीस अंकों का पर्चा होता था। मैंने उसे हिंदी में ज्यादा नंबर पाने के कुछ तरीके बताए, सुनकर वो खुश हो गई। फिर मैंने कबीर के कुछ दोहों की व्याख्या की और उसके बाद मैं बोला- आज के लिए इतना ही काफी है। बाकी अगले सप्ताह।
वो खुश होकर चली गई।
अगले रविवार को सुबह-सुबह मैंने पास के पीसीओ पर जाकर सुगंधा के छात्रावास में फोन लगाया। वो फोन पर आई तो मैंने पूछा- कैसी चल रही है तुम्हारी पढ़ाई आजकल?
वो बोली- अच्छी चल रही है। आप बताइए आपकी प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम घोषित होने वाला था?
मैं बोला- हो गया। अब मुख्य परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हूँ।
वो वोली- इतनी अच्छी खुशखबरी बिना मिठाई के दे रहे हैं?
मैं बोला- अब फोन से मिठाई खाएगी क्या?
वो बोली- मिठाई लेकर जल्दी से आइए।
मैंने बाजार से तीन चार तरह की मिठाइयाँ मिलाकर आधा किलो का पैकेट बनवाया और लेकर उसके छात्रावास की तरफ चल पड़ा।
छात्रावास के गेट पर पहुँचकर मैंने अंदर संदेशा भिजवाया तो वो बाहर निकली। उसने एकदम कसी जींस और टॉप पहना हुआ था। पिछले दो तीन महीनों में उसके उरोज और नितंबों में काफी बदलाव आया था और वो भरे भरे लग रहे थे। क्या संभोग भी शरीर के हार्मोनल बदलावों की गति बढ़ा सकता है, मैंने सोचा।
जीव विज्ञान में मेरा सामान्य ज्ञान कमजोर पड़ रहा था।
तभी उसकी आवाज मेरे कानों में पड़ी- लाइए, पैकेट दीजिए, मैं अपनी सहेलियों को देकर आती हूँ।
कहकर उसने पैकेट मेरे हाथों से छीन लिया और छात्रावास के भीतर चली गई।
वो बाहर आई तो पैकेट उसके हाथों में नहीं था, वो बोली- ये तो था मेरी सहेलियों का हिस्सा, अब बताइए मैं क्या खाऊँ।
मैं बोला- चलो, चलकर और खरीद लेते हैं।
साथ साथ चलते हुए हम मिठाई की दुकान पर आए। मिठाई लेने के बाद मैं उससे बोला- यहाँ तो बहुत भीड़ है। चलो मेरे कमरे पर चलकर आराम से खाते हैं।
इतना कहकर मैंने उसके चेहरे की ओर देखा। उसके चेहरे से मुस्कान धीरे धीरे गायब हो गई और वो भाव उभर आए जो समर्पण करने को तैयार लड़कियों की आँखों में होते हैं और जिन्हें मैं पहले भी उसकी आँखों में देख चुका था।
उसके बाद पूरे रास्ते हममें कोई बात नहीं हुई। मैं आगे आगे और वो मेरे पीछे पीछे चलती रही। मुड़कर देखने की मुझमें हिम्मत नहीं थी। वैसे ही चुपचाप हम कमरे पर पहुँचे।
उसके अंदर आने के बाद मैंने दरवाजा बंद किया, वो फोल्डिंग बेड पर बैठ गई। पिछले संभोग के बाद से मैंने दूसरे फोल्डिंग बेड को हटाया नहीं था। मैंने डिब्बा खोलकर उसे मिठाई दी और रसोई से एक गिलास पानी लाकर दिया। उसने थोड़ी सी मिठाई खाई और थोड़ा सा पानी पिया फिर गिलास बेड के नीचे रख दिया। मैंने उसके पास आकर उसकी आँखों में झाँका, उसकी साँसें तेज हो गई थीं और टॉप में कैद उसके वक्ष तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे।
मैंने उसके कंधों पर अपने दोनों हाथ रखे। उसने अपने हाथ मेरी कमर पर रख दिए। मैंने उसको खुद से सटा लिया। उसका चेहरा मेरी छाती से सट गया। मैंने उसे कंधों से पकड़कर उठाया और अपनी बाहों में भींच लिया। उसने भी मुझे कसकर पकड़ लिया। मेरे हाथ धीरे धीरे उसकी पीठ पर फिरने लगे।
सुगंधा दो-तीन महीनों में ही कितनी गदरा गई है !मैंने सोचा।
मैंने अपना हाथ पीछे से सुगंधा की जींस में डालने की कोशिश की। जींस बहुत तंग थी। केवल हाथ का उँगलियों वाला हिस्सा ही अंदर घुस सका। मैंने हाथ बाहर निकाला और जींस के ऊपर से ही उसके नितंबों को दबाना शुरू किया। यह मेरे लिए एक नया अनुभव था। हाथों को महसूस तो जींस का मोटा कपड़ा ही हो रहा था लेकिन एक अलग ही आनन्द आ रहा था। शायद यह इसलिए था कि अब तक जींस पहनी हुई लड़कियों के नितंब देखदेखकर मन में उनको मसलने की ख्वाहिश इतनी तेज हो चुकी थी कि जींस का कपड़ा नंगे नितम्बों को सहलाने से ज्यादा मजा दे रहा था। यह कामदेव जो न करवाये सो थोड़ा।
थोड़ी देर में मेरा मन उसके नितम्बों से भर गया तो मैंने उसे बेड पर लिटा दिया। उसकी आँखें बंद थी।
मैंने उससे कहा- आँखें खोल लो सुगंधा, अब मुझसे कैसी शर्म?
उसने अपनी आँखें खोलीं, मैं उसके ऊपर लेट गया। मेरा उभरा हुआ पजामा उसके जाँघों के बीच उभरे जींस से सट गया। मैं उसके होंठों को अपने होंठों के बीच लेकर चूसने लगा और मिठाई की मिठास मेरे मुँह में घुलने लगी। फिर मैंने उसकी टीशर्ट ऊपर उठानी शुरू की।
उसने सफेद रंग की ब्रा पहनी हुई थी। उसने मेरा मलतब समझकर अपने हाथ ऊपर उठाए और मैंने उसकी टीशर्ट खींचकर बाहर निकाल दी। मैंने ताबड़तोड़ उसके शरीर के नग्न हिस्सों को चूमना शुरू किया। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलकर कमरे में गूँजने लगीं। शायद वो भी इन दो महीनों में उतना ही तड़पी थी जितना मैं तड़पा था।
मैंने उसके ब्रा का बायाँ कप हटा दिया और उसका चुचूक मुँह में भर कर चूसने लगा। वो मचलने लगी पर मैं अब कहाँ रुकने वाला था। मैंने उसका चुचूक अपने दाँतों के बीच पकड़ा और धीरे धीरे काटने लगा। बीच बीच में मैं थोड़ा जोर से भी काट लेता था और वो चिहुँक उठती थी। मगर यहाँ ऊपर कौन सुनने वाला था। यही हाल मैंने उसके दूसरे चुचूक का भी किया।
मेरा लिंग पूरी तरह तन चुका था, अब अगर मैंने इसे आजाद न किया तो मेरा अंडरवियर ही फट जाएगा, मैंने सोचा।
मैं उठा और फटाफट अपने कपड़े उतार कर फेंके, कौन सा कपड़ा कहाँ गिरा, इसकी सुध लेने की फुर्सत मुझे कहाँ थी। तभी मुझे याद आया कि मस्तराम की कहानियों के नायक तो नायिका को अपना लिंग भी चुसवाते हैं।
सुगंधा ने फिर अपनी आँखें बंद कर ली थीं। शायद वो मुझे नग्न देखकर शर्मा गई थी। 
मैं अपने पैर उसके शरीर के दोनों तरफ करके उसके वक्ष के ऊपर इस तरह बैठ गया कि मेरा भार उसके शरीर पर न पड़े। मैं अपना लिंग उसके मुँह के पास ले आया, मैंने कहा- सुगंधा आँखें खोलो।
उसने आँखें खोली और अपने मुँह के ठीक सामने मेरे भीमकाय लिंग को देखकर डर के मारे फिर से बंद कर लीं।
मैंने कहा- सुगंधा, इसे चूसो। जैसे मैं तुम्हारी योनि चूसता हूँ वैसे ही।
उसने आँखें खोलीं और बोली- नहीं, मुझे घिन आती है।
मैंने कहा- घिन तो मुझे भी आती है तुम्हारी योनि चूसते हुए, मगर तुमको मजा देने के लिए चूसता हूँ न। उसी तरह तुम भी मुझे मजा देने के लिए चूसो।
कहकर मैं अपना लिंग उसके मुँह के पास ले आया। उसने कुछ नहीं किया तो मैंने खुद ही अपना लिंग उसके होंठों से सटा दिया। फिर भी उसने कुछ नहीं किया तो मैंने अपना लिंग उसके होंठों पर रगड़ना शुरू किया।
अचानक उसने मेरा लिंग अपने हाथों में पकड़ लिया और बोली- आपका लिंग तो बहुत बड़ा है।
मैं चौंक गया, मैंने पूछा, “तुम्हें कैसे पता? तुमने तो आजतक सिर्फ़ मेरा ही लिंग देखा है।
उसने फिर अपनी आँखें बंद कर लीं और शर्म से उसके गाल लाल हो गए।
मैंने कहा- बता सुगंधा की बच्ची, तुझे कैसे पता कि मेरा लिंग बहुत बड़ा है?वो बोली- छात्रावास में कंप्यूटर विज्ञान की एक लड़की के पास कंप्यूटर है। छात्रावास में हमारी सीनियर्स ने रैगिंग के दौरान हमें उस कंप्यूटर पर ब्लू फिल्म दिखाई थी। उसके बाद मैंने कई बार अपनी सहेलियों के साथ उस कंप्यूटर पर ब्लू फ़िल्म देखी है लेकिन जितना बड़ा आपका लिंग है इतना बड़ा उन फिल्मों में किसी का भी लिंग नहीं था।
मैंने कहा- मैं इतना बड़ा हो गया हूँ और आज तक मैंने सिर्फ़ मस्तराम की कहानियाँ ही पढ़ी थीं और तूने फिल्में भी देख लीं। विज्ञान संकाय की लड़कियाँ छात्रावास में रहकर वाकई बर्बाद हो जाती हैं। लेकिन उन फ़िल्मों में तो लिंग चूसते हुए भी दिखाते होंगे। तो तू मेरा लिंग क्यों नहीं चूस रही है?
वो बोली- मुझे वो दृश्य बहुत गंदे लगते हैं। जब ऐसे दृश्य फ़िल्मों में आते हैं तो मैं अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लेती हूँ।
यह लड़की नहीं चूसने वाली, लेकिन एक दिन मैंने अपना ये भीमकाय लिंग इसके गले तक न उतारा तो मेरा भी नाम नहीं।
यह सोच फिर मैं नीचे आया और उसके जींस का एकमात्र बटन खोलकर जिप नीचे सरकाई। उसने काले रंग की पैंटी पहनी हुई थी। जींस इतनी मस्त और पैंटी गाँव की लड़कियों वाली।
बहरहाल मैंने उसका जींस पकड़कर नीचे खींचना शुरू किया। जींस बेहद टाइट थी। नीचे खींचने में मुझे पसीना आ गया। लड़कियाँ इतनी टाइट जींस पहनती ही क्यूँ हैं?
मैंने सुगंधा से कहा- जल्दी से अपनी जींस उतार।
वो उठी और उसने एक ही झटके में अपनी जींस उतार कर रख दी। इसे कोई जादू आता है क्या? जिस काम में मुझे इतनी दिक्कत हो रही थी इसने एक झटके में कर दिया।
अब बात मेरे बर्दाश्त के बाहर थी। मैंने उसकी पैंटी पकड़कर खींची तो वो चर्र की आवाज़ के साथ फट गई। गाँव की लड़कियों की पतली सी पैंटी।
उसने कहा- मेरी पैंटी फाड़ दी आपने, अब मैं क्या पहनूँगी?
मैं बोला- चुप रह, मैं दस खरीद दूँगा। चार रूपए की पैंटी के लिए चार करोड़ के आनन्द में विघ्न डाल रही है।
सुगंधा समझ गई कि अब मै खुद पर से नियंत्रण खो चुका हूँ। वो और कुछ बोलती इससे पहले ही मैंने उसकी योनि को मुँह में भरकर चूसना और बीच बीच में दाँतों से हल्के से काटना शुरू कर दिया। उसकी कमर मचलने लगी।
मैं पागलों की तरह उसकी योनि चूस रहा था। आज मुझको योनि की गंध दुनिया के बेहतरीन इत्र से भी अच्छी लग रही थी और योनि का हल्का नमकीन, हल्का कसैला और हल्का खट्टा स्वाद दुनिया के सबसे स्वादिष्ट पकवान से भी लजीज लग रहा था। मैंने अपनी जीभ उसकी योनि के अंदर जितना घुस सकती थी घुसेड़ दी। उसने अपनी कमर ऊपर उठा दी ताकि मैं अपनी जीभ और अंदर घुसेड़ सकूँ। मैं अपनी जीभ उसकी योनि में तेजी से अंदर बाहर करने लगा। उसकी कमर हिलने लगी। मैंने जीभ बाहर निकाली और फिर से उसकी योनि मुँह में लेकर चूसने लगा।उसकी योनि में स्थित मटर के फूल के बीच में एक मटर के दाने जैसी छोटी संरचना थी। जैसे ही मेरी जीभ उससे टकराती उसके मुँह से सिसकारी निकलने लगती। मैं समझ गया कि इस मटर के दाने को चुसवाने में इसे ज्यादा मजा आ रहा है। मैंने अपना सारा प्रयास उस मटर के दाने को अपनी जीभ से चाटने में लगा दिया। जितना तेजी से मुझसे हो सकता था मैं उस दाने को चूस रहा था। सुगंधा के मुँह से निकली सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं।
थोड़ी देर बाद उसने कसकर मेरे बाल अपनी हथेलियों में पकड़ लिए, धीरे धीरे उसके हाथों ने मेरे बालों को खींचना शुरू किया। मैं तेजी से चूस रहा था और उसकी हथेलियों का खिंचाव मेरे बालों पर बढ़ता जा रहा था।
अचानक उसकी कमर बुरी तरह उछलने लगी और वो मुझे दूर धकेलने लगी लेकिन मैंने चूसना नहीं छोड़ा।
कुछ क्षणों बाद उसने कहा- बस, भैया बस ! अब बस करो, प्लीज।
और वो निढाल पड़ गई।
सुगंधा को चरम आनंद की प्राप्ति हो चुकी थी, अब मेरी बारी थी। मैं बिना देरी किए उसके ऊपर आ गया। उसकी योनि चूसने से काफी गीली हो चुकी थी। मैंने लिंग मुंड को तीन-चार बार उसकी योनि से रगड़कर गीला किया और बेताबी में एक जोर का धक्का दिया। मेरा लिंगमुंड सुगंधा की योनि में प्रविष्ट हुआ और उसके मुँह से घुटी घुटी सी चीख निकली। उसने मुझे अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश की लेकिन मुझे धकेलना उसके बस की बात कहाँ थी। वो दो तीन बार तड़पी फिर ढीली पड़ गई।
मैं उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा। कुछ क्षणों बाद मैंने फिर एक धक्का मारा तो उसने अपने होंठ मेरे होंठों से छुड़ा लिए और बोली- आज फिर दर्द हो रहा है।
मैंने पूछा- पिछली बार से कम या पिछली बार से ज्यादा?
वो बोली- नहीं, पिछली बार तो बहुत ज्यादा दर्द हुआ था।
मैंने कहा- तो सब्र कर, जैसे पिछली बार किया था थोड़ी देर में दर्द गायब हो जाएगा।
इस बार मैंने आहिस्ता आहिस्ता अपने लिंग पर दबाव बढ़ाया। लिंगमुंड उसकी गहराइयों में उतरने लगा। उसे थोड़ी दिक्कत तो हो रही थी लेकिन आनन्द पाने के लिए कष्ट तो सहना ही पड़ता है। लिंग पूरा उसकी गहराई में उतर जाने के बाद मैंने आहिस्ता आहिस्ता अपनी कमर हिलानी शुरू की। वो मेरा साथ नहीं दे रही थी पर इस वक्त मुझे परवाह कहाँ थी। मैं धीरे धीरे अपनी गति बढ़ाने लगा। उसकी जाँघों से मेरी जाँघें टकराने लगीं और कमरे में धप धप की आवाज गूँजने लगी। उसके होंठ मेरे होंठों में थे और उसके मांसल उरोज मेरी छाती से दबकर चिपक गए थे।
मैं और जोर से धक्के मारने लगा। थोड़ी देर बाद वो भी मेरे धक्कों के साथ साथ कमर हिलाने लगी। मैंने उसकी दोनों टाँगें अपने नितंबों के ऊपर चढ़ा लीं और अपने हाथ उसके नितंबों के नीचे ले गया। अब मैं और गहराई में पहुँच रहा था। अब वो अपनी जीभ से मेरी जीभ चूस रही थी। संभोग का नशा उसके भी सर चढ़कर बोल रहा था।
एक बार फिर हम दोनों अपने होश खो बैठे थे।
मेरे मुँह से फिर गंदे शब्द निकल रहे थे- सुगंधा, जानेमन, कैसा लग रहा है मेरी जान? मजा आ रहा है रानी? देख तेरी छोटी सी चूत का मेरे मोटे लंड ने क्या हाल कर दिया है। मैंने तेरी फाड़ डाली है सुगंधा। अब मैं जब चाहूँगा, जहाँ चाहूँगा, जैसे चाहूँगा तुझे चोदूँगा मेरी जान। ओ सुगंधा मेरी जानेमन। ये ले मेरी जान। ले ले मेरा मोटा लौंडा। आज मैं अपने बीज से तेरी सारी आग बुझा दूँगा मेरी जान।
सुगंधा के मुँह से भी गंदे गंदे शब्द निकल रहे थे। फच फच की आवाज के साथ गंदे शब्द मिलकर अजीब सा संगीत रच रहे थे।
अचानक सुगंधा मुझसे कसकर लिपट गई। उसका बदन काँपने लगा। मैं समझ गया कि यह दोबारा चरम आनंद प्राप्त कर रही है। मैं अपनी पूरी ताकत से धक्के मारने लगा। मैं अपना सारा वीर्य उसकी योनि में गिराना चाहता था।
अचानक वो बोली- आज अंदर मत गिराइएगा।
मैंने पूछा- क्यों?
वो बोली- पिछली बार सुरक्षित समय था। इस बार अंदर गिराएँगें तो मैं गर्भवती हो जाऊँगी। मेरा मासिक धर्म हुए दस दिन बीत चुके हैं।
मेरे दिमाग को एक झटका सा लगा। यह जीव विज्ञान की छात्रा है निश्चित ही सही कह रही होगी। इतना बड़ा रिस्क लेना ठीक नहीं है। जीव विज्ञान में मेरा सामान्य ज्ञान वाकई कमजोर था।
मैंने अपना लिंग बाहर निकाल लिया। उसकी टाँगों को पूरी तरह फैला दिया और उनके बीच में बैठकर हस्तमैथुन करने लगा। उसकी योनि के बाल न ज्यादा छोटे थे न ज्यादा बड़े। मैं एक हाथ से उसकी योनि सहलाने लगा और एक हाथ से हस्तमैथुन करने लगा। दो मिनट बाद मेरे लिंग से वीर्य की धार निकलर उसके पेट और स्तनों पर गिरने लगी। कुछ बूँदें उसके चेहरे पर भी गिरीं। उसने अजीब सा मुँह बनाया।
मैंने उसकी फटी पैंटी उठाई और उसके शरीर से अपना वीर्य पोंछकर साफ किया। फिर मैंने उसे कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया।
मेरा मुँह खिड़की की तरफ था, अचानक मैंने देखा कि पर्दे के एक किनारे किसी की छाया पड़ रही है। पर्दे और खिड़की की दीवार के बीच थोड़ी सी जगह थी और बाहर जो कोई भी था वो यकीनन यह सब देख रहा था।
मेरे तो होश उड़ गए, अब क्या होगा? कौन हो सकता है बाहर?
आज रविवार है और हो सकता है कि नेहा मुझसे हिंदी पढ़ने आई हो !
हे कामदेव, वासना मिटाने के चक्कर में इतनी महत्वपूर्ण बात मेरे ध्यान से कैसे उतर गई।
मैं फटाफट उठा और जल्दी से कुर्ता और पैजामा डालकर बाहर आया। नेहा जल्दी जल्दी सीढ़ियाँ उतर रही थी। संभवतः उसने भी मुझे अपनी ओर देखते देख लिया होगा।
हे कामदेव, अगर इसने किसी से कुछ कह दिया तो मैं और सुगंधा कहीं के नहीं रहेंगे।
मेरे मुँह से अपने आप निकल गया- नेहा, सुनो !
वो खड़ी हो गई, उसने मुड़कर देखा, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था।
मैंने कहा- आओ, तुम्हें अपनी चचेरी बहन से मिलवाता हूँ।
वो वहीं खड़ी रही। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा, मैं सभी देवताओं से मनाने लगा कि आज बचा लो, आज के बाद ऐसा काम कभी नहीं करूँगा।
फिर उसने ऊपर वाली सीढ़ी पर कदम रखा। मैंने चैन की साँस ली, कामदेव एवं अन्य देवों को धन्यवाद दिया।
वो ऊपर आई। हम कमरे में आए। सुगंधा बाथरूम में थी। उसकी पैंटी एक कोने में पड़ी हुई थी। मेरे अंडरवीयर और बनियान बेड के नीचे पड़े हुए थे।
सुगंधा बाहर निकली। उसने कपड़े पहन लिए थे अपने बाल जूड़े की शक्ल में बाँध लिए थे।
मैंने दोनों का परिचय करवाया। उसके बाद मैंने नेहा को मिठाई दी।
फिर नेहा के हाथ से किताब लेकर मैंने उसे कामायनीका वो अंश जो उसकी पुस्तक में थे दिखाया और बोला- इसे अच्छी तरह पढ़ लो। अगर इसकी भाषा तुम्हें कठिन लगे तो चिंचित मत होना। तुम इसे दो तीन बार गा गाकर पढ़ लो। मैं जरा सुगंधा को इसके छात्रावास छोड़ कर आता हूँ। मैं वापस आकर तुम्हें इस महाकाव्य के बारे में विस्तार से बताऊँगा।
सुगंधा को साथ लेकर मैं निकल पड़ा।
रास्ते में उसने मुझसे पूछा- आप को एकदम सही समय पर कैसे ख्याल आया कि यह ऊपर आने वाली है?
अब मैं सुगंधा को कैसे बताता कि नेहा ने सबकुछ देख लिया है। सुगंधा बेकार में डर जाती। मैंने बाजार से उसके लिए नई पैंटीज लीं और उसे उसके छात्रावास छोड़ कर वापस लौटा।
रास्ते में मुझे वो प्रसिद्ध कहावत याद आई। इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते। अब क्या होगा? क्या नेहा सबको बता देगी कि मैं और सुगंधा संभोग कर रहे थे?
कहीं नेहा मुझे ब्लैकमेल तो नहीं करने लगेगी?
हे कामदेव, इस बार बचा ले।
नेहा मेरे कमरे में फ़ोल्डिंग बेड पर पैर लटकाकर बैठी हुई थी और कामायनीका सस्वर पाठ कर रही थी। मेरी उससे कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ी। जो कुछ उसने देखा था उसके बाद मेरी उससे निगाह मिलाने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी। मैंने उससे पुस्तक ले ली और मनु और श्रद्धा की कहानी उसे सुनाने लगा। कहानी खत्म होने के बाद मैंने उसे कविता का अर्थ समझाना शुरू किया।
बीच में एक पंक्ति आई- और एक फिर व्याकुल चुम्बन रक्त खौलता जिससे, शीतल प्राण धधक उठते हैं तृषा तृप्ति के मिष से।
पढ़ने के बाद मैंने उसकी तरफ देखा। पंक्ति में चुम्बन शब्द आने से उसने थोड़ा बहुत अंदाजा तो लगा ही लिया था कि इसका अर्थ क्या होगा।
मैंने डरते डरते कहा, “इन पंक्तियों को छोड़ देते हैं।
वो बोली, “क्यों।
मैंने कहा, “इनका अर्थ अश्लील है।
वो बोली, “और आप जो कर रहे थे वो अश्लील नहीं था क्या?”
मैंने अनजान बनते हुए पूछा, “मैं क्या कर रहा था?”
वो बोली, “मैं काफ़ी देर से खिड़की के पास खड़ी थी और आपको और सुगंधा को सेक्स करते देख रही थी। आपको शर्म नहीं आती ऐसी घटिया हरकत करते हुए और वो भी अपनी चचेरी बहन के साथ।
मैंने शर्म से सर झुका लिया और धीमी आवाज़ में बोला, “मुझे माफ़ कर दो नेहा मैं बहक गया था। आज के बाद कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा। प्लीज मुझे माफ़ कर दो।
उसने कहा, “कब से ये सब कर रहे हैं आप दोनों।
मैंने कहा, “बस ये दूसरी बार है और इसके बाद ऐसा कभी नहीं होगा। प्लीज किसी से कुछ मत कहना इसके बारे में, वरना मैं और सुगंधा दोनों बर्बाद हो जाएँगें।
उसने कहा, “चलिए इस बार तो मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी मगर अब कभी अगर आप सुगंधा को यहाँ लाए तो मैं पापा को सब-कुछ बता दूँगी।
मैंने कहा, “थैंक्यू बेबी, आज के बाद मैं कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा।
मेरी जान में जान आई। मैंने कामदेव को धन्यवाद दिया। एक बड़ा संकट टल गया था।
मैंने वो दो पंक्तियाँ छोड़ दीं और नेहा को आगे का अर्थ समझाने लगा। एक घंटे बाद वो चली गई।
अगले रविवार को नेहा का जन्मदिन था। उसका मुँह बंद रहे इसलिए बेहतर था कि मैं उसे कोई अच्छा सा तोहफा दे देता। मैं उसके लिए अच्छी सी घड़ी खरीद कर लया।
अपने जन्मदिन के अगले ही दिन वो विद्यालय से वापस आते ही स्कर्ट और शर्ट पहने हुए ही छत पर मेरे कमरे में आई और बोली, “थैंक्यू, भैय्या।
मैं बोला, “यू आर वेलकम, बेबी।
वो सचमुच बहुत खुश थी। मैंने उसको अठारह साल की हो जाने पर दुबारा बधाई दी और कहा कि अब तुम वोट दे सकती हो और अपनी मर्जी से जिससे चाहो शादी भी कर सकती हो।
वो मुस्कुराने लगी। फिर मैंने उससे पूछा कि विद्यालय में आज क्या पढ़ाया गया। वो बताने लगी। थोड़ी देर हम दोनों में इधर उधर की बातें होती रहीं फिर वो वापस चली गई।
अगले रविवार वो मेरे पास आई तो उसने जींस और टॉप पहना हुआ था। मैंने उसको इससे पहले भी बाजार वगैरह में जींस और टॉप में देखा था लेकिन दूर दूर से और हमेशा एक बच्ची की नज़र से। आज तो वो कयामत लग रही थी। बिल्कुल कसी हुई टॉप में उसके बड़े बड़े उरोज बाहर निकल आने को आतुर लग रहे थे। इसके सामने सुगंधा के उरोज तो कुछ भी नहीं हैं, मैंने सोचा।
दो सप्ताह से मैं हस्तमैथुन करके काम चला रहा था। लेकिन योनि का रस जिसने एक बार छक कर पी लिया उसका मन हस्तमैथुन से कहाँ भरता है।वो मेरे सामने से गुजरकर फ़ोल्डिंग बेड पर बैठने के लिए गई तो मैंने पीछे से उसके नितम्बों का जायजा लिया।
हे कामदेव ! इतने बड़े नितम्ब।
कहाँ छुपाकर रक्खे थे इस लड़की ने?”
सचमुच भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है।
हे कामदेव, अपने पुष्पबाण वापस तरकश में डाल लो, वरना मैं न जाने क्या कर बैठूँ।
पर कामदेव जब एक बार पुष्पबाण चलाना शुरू कर देते हैं तो फिर जान निकाले बिना कहाँ मानते हैं। न जाने कहाँ से मुझमें इतनी हिम्मत आ गई कि मैंने उससे पूछा, “अपने ब्वायफ्रेंड से मिलकर आ रही हो क्या।
वो बोली, “नहीं अपने ब्वॉय फ़्रेंड से मिलने जा रही हूँ मगर आपको इससे क्या? आप तो मुझे हिंदी पढ़ाइए और अपनी चचेरी बहन से सेक्स कीजिए।
मेरा मुँह लटक गया। मुझे उससे ऐसे कटाक्ष की आशा नहीं थी।
उसने मेरी तरफ देखा और मेरा लटका हुआ मुँह देखकर बोली, “मैं तो मजाक कर रही थी। आप तो बुरा मान गए।
मैंने कहा, “मैंने तुमसे बताया था न कि मुझसे गलती हो गई। इसके लिए मैं शर्मिन्दा हूँ। फिर भी तुम ऐसी बात कह रही हो। उस बात को भूल जाओ और आगे से कभी ऐसा मजाक मत करना नहीं तो मैं कहीं और कमरा ले लूँगा।
अचानक उसे न जाने क्या हुआ कि वो आकर मुझसे लिपट गई और रोने लगी।
मैं भौंचक्का रह गया।
वो मुझसे लिपटकर रो रही थी, उसके मांसल उरोज मेरे सीने से दबे हुए थे और वो रोए जा रही थी।
कुछ देर मैंने उसे रोने दिया, फिर मैंने उससे पूछा, “क्या हुआ बेबी?”
वो बोली, “आई लव यू, भैय्या। आई लव यू। आप नहीं जानते आप मुझे कितने अच्छे लगते हैं। मैं कब से आप से प्यार करती हूँ इसलिए उस दिन जब मैंने आपको और सुगंधा को सेक्स करते हुए देखा तो मैं पागल हो गई। यदि आप मुझे न रोकते तो मैं सचमुच पापा को बता देती और जब मुझे यह पता चला कि वो आपकी चचेरी बहन है तो मुझे आपसे नफ़रत होने लगी। पर जब आपने बताया कि आप अपने किए पर शर्मिंदा हैं और आप फिर कभी ऐसा नहीं करेंगे तो मैंने दिल से आपको माफ़ कर दिया। अब मैं कभी उस घटना का जिक्र नहीं करूँगी। प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिए और अब कभी यह घर छोड़कर जाने की बात मत कीजिएगा।
मैं जानता था कि यह उम्र होती ही ऐसी है जिसमें लड़की आकर्षण और प्यार में अंतर नहीं कर पाती। मेरे जैसे स्मार्ट लड़के पर उसका आकर्षित होना कोई बड़ी बात नहीं थी। लेकिन वो आकर्षण को प्यार समझ बैठी थी। ये कमसिन और नादान उम्र की लड़कियाँ भी न, दूध के दाँत भी अभी ठीक से नहीं टूटे कि दुनिया की सबसे जटिल भावना प्रेमको समझ पाने और प्यार होने का दावा करने लगती हैं।
मैंने कहा, “भैय्या भी कहती हो और आई लव यू भी कहती हो। मैं एक बार गलती कर चुका हूँ दुबारा नहीं करना चाहता।
अब उसका रोना बंद हुआ और वो बोली, “आई लव यू, सर !
मैं बोला, “अब ठीक है, लाओ किताब दो और उधर बैठो।
वो बाथरूम से अपना चेहरा धोकर आई। मैंने उसे ऊपर से नीचे तक निहारा। मेरी निगाह उसके मांसल उरोजों पर जाकर रुकी। उसने मेरी निगाह का पीछा किया तो शर्म से उसके गाल लाल हो गए।
मैंने अपनी बाहें फैला दीं। वो सर झुकाकर धीरे धीरे आई और मेरी बाहों में सिमट गई। मैंने कसकर उसे खुद से भींच लिया। उसके बड़े बड़े उभार मेरे सीने में चुभकर अजीब सी गुदगुदी कर रहे थे। मैंने उसके बालों में उँगलियाँ फेरनी शुरू कीं। फिर उसकी पीठ पर हाथ फिराना शुरू किया।
वो मुझसे लिपटी हुई थी। मुझे पता था कि एक बार सचमुच का सेक्स देखने के बाद अब तो इसका मन करता होगा कि इसके साथ भी वही सब कुछ हो।
मैं डरते डरते अपना हाथ उसके नितम्बों पर ले गया। 
हे कामदेव इसके नितम्ब तो सुगंधा के नितम्बों से तिगुने हैं।
उसने कोई विरोध नहीं किया। मैं उसके नितम्बों को धीरे धीरे सहलाने लगा। फिर मैंने उसके नितम्ब को पकड़कर उसे और करीब खींच लिया। उसकी जाँघें मेरी जाँघों से सट गईं। उसका गदराया हुआ बदन बाहों में भरने का आनंद ही अलग था।
उससे चिपके चिपके ही मैं उसे बेड के पास ले गया और उसे बेड पर लिटाने लगा। वो मुझसे अलग होने को तैयार ही नहीं थी। मैंने उसके गालों पर फिर होंठों पर चुम्बन लिया। उसके गले पर चुम्बनों की बरसात कर दी। उसकी टीशर्ट के खुले हुए हिस्से पर चुम्बन लिये। उसके बाद मैंने उससे कहा, “लेट जाओ नेहा। मैं तुम्हारे साथ जो कुछ करना चाहता हूँ वो खड़े खड़े नहीं हो सकता।
वो मुझसे अलग हुई। मैंने उसे बेड पर लिटा दिया। वो आधी बेड पर थी लेकिन उसके पैर बेड के नीचे लटके हुए थे। मैं उसके बगल बैठ गया। उसकी साँसें पहले की अपेक्षा तेज हो गई थीं। मैंने अपना एक हाथ उसके माँसल उभार पर रखा।
वो सिहर उठी।
मैं धीरे धीरे उसके उभारों को सहलाने लगा।
पहली बार संभोग के लिए तैयार लड़कियों का कोई भरोसा नहीं होता पता नहीं कौन सी बात पर नाराज हो जाएँ और आगे बढ़ने से इंकार कर दें। इसका मूल कारण उनका डर और संभोग के संबंध में उनकी अज्ञानता होती है। इसलिए पहली बार जब भी किसी लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाएँ धीरे धीरे और बिना किसी जबर्दस्ती के बनाएँ। लड़की अगर इंकार करे तो आगे न बढ़ें वरना जबरदस्ती आप इधर उधर हाथ तो लगा लेंगे मगर साथ ही भविष्य में संभोग की सारी संभावनाएँ खत्म कर लेंगे।
मैंने अपना दूसरा हाथ उसके दूसरे उरोज पर रखा। उसकी साँसें और तेज हो गईं।
मैंने उसके उरोजों को सहलाना शुरू किया। उरोज क्या थे दो रुई के गोले थे। सुगंधा के उरोज तो इसके सामने कुछ भी नहीं थे। मेरा लिंग पजामें में तंबू बना रहा था। मैंने उरोजों को जोर जोर से मसलना शुरू किया तो उसके मुँह से कराह निकली।
अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने उसकी टीशर्ट ऊपर उठाई, उसने मेरे हाथ पकड़ लिए और बोली, “कोई आ जाएगा।
मैं झुका और उसके पेट के खुले भाग को चूमने लगा। वो गुदगुदी और आनंद के मिले जुले प्रभाव से सिसकने लगी। अब मैं दो काम एक साथ कर रहा था उसके पेट पर चूम रहा था और साथ ही साथ उसकी टीशर्ट उठा रहा था। उसके हाथों की विरोध करने की ताकत खत्म होती जा रही थी।
कुछ पलों बाद मैं उसकी टीशर्ट उठा कर उसके गले तक ले आया और उसकी सफ़ेद ब्रा के आसपास के नग्न स्थानों को चूमने लगा। मैंने उसके ब्रा का दायाँ कप हटाया। उसके दूधिया उभार पर छोटा सा चुचूक मेरा इंतजार कर रहा था। मैंने उसपर अपना जलता हुआ होंठ रखा। 
नेहा का पूरा बदन सिहर उठा। मैंने चूचुक को अपनी जीभ से चाटना शुरू किया। वो मचलने लगी। मैंने चूचुक अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा। नेहा की हालत खराब होने लगी। चूसते चूसते ही मैंने उसकी ब्रा का बायाँ कप हटाया और उसके बाएँ उभार को कस कर मसलने लगा। कितने बड़े बड़े उरोज थे मेरी पूरी हथेली में उसका आधा उरोज भी नहीं आ रहा था।
फिर मैंने उसको बैठने को कहा और उसकी टीशर्ट बाहर खींचने लगा। उसने कोई विरोध नहीं किया और मैंने पीछे से हुक खोलकर उसकी ब्रा भी उतार दी। उसके उभार हल्का सा नीचे हो गए। बड़े उभारों के साथ यही समस्या होती है बहुत कम उम्र में ही ढीले होना शुरू हो जाते हैं इसलिए बड़े उभारों का असली आनंद तो अठारह की उम्र में ही मिल पाता है।
सुगंधा की जींस उतार कर मैं देख चुका था कि लड़कियों की जींस उतारना कितना मुश्किल काम है। मैंने उसके गले पर चूमते चूमते उससे कहा, “नेहा अपनी जींस उतार दो।
वो बोली, “नहीं सर प्लीज, ये सब शादी के बाद।
हद हो गई, इन अठारह साल की लड़कियों का चुम्बन भी ले लो तो शादी और बच्चों के सपने देखने लगती हैं। इससे अच्छी तो सुगंधा थी कम से कम उसे मालूम तो था कि हम दोनों की शादी नहीं हो सकती।
मैंने कहा, “मैं सेक्स नहीं करूँगा सिर्फ़ तुम्हारी जाँघों और योनि पर चुम्बन लूँगा। मैं और कुछ करूँ तो तुम मुझे तुरंत रोक देना। प्लीज नेहा, जल्दी करो और मत तड़पाओ नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगा। तुम तो जानती हो पिछले पंद्रह दिनों से मैं सुगंधा के लिए तड़प रहा हूँ अगर तुमने न देखा होता तो मैं उसे हर रविवार को बुला लेता। अब अगर तुम चाहती हो कि मैं सुगंधा से न मिलूँ तो प्लीज अपनी जींस उतार दो और मुझे अपनी जाँघों और योनि को चूमने दो।
मेरी बातों को सुनकर और मेरी खराब हालत को देखकर वो समझ गई कि मैं बिना उसको नग्नावस्था में देखे मानने वाला नहीं हूँ। उसने अपनी जींस उतार दी।
उफ़ ये दूध जैसी गोरी गोरी और गदराई हुई जाँघें !
इनके सामने सुगंधा की हल्की साँवली जाँघें तो कुछ भी नहीं हैं।
हे कामदेव आज के बाद अगर नेहा मुझे यों ही मिलती रही तो मैं सुगंधा के बारे में सोचूँगा भी नहीं।
मैंने उसे बेड पर अच्छी तरह से लिटा दिया। अब उसके बदन पर सिर्फ़ जॉकी की पैंटी थी जो उसकी गदराई हुई जाँघों पर कयामत लग रही थी और पैंटी के ठीक बीच में उसकी योनि फूल कर कुप्पा हो गई थी।
हे कामदेव इतनी फूली हुई योनि ! धन्यवाद, बहुत बहुत धन्यवाद।
मैंने उसकी जाँघों को चूमना शुरू किया। गोरी, चिकनी, बेदाग अनछुई जाँघें मेरे हर चुम्बन पर सिहर उठतीं थीं।
मैं चुम्बन लेते लेते धीरे धीरे ऊपर आया। उसकी योनि को पैंटी के ऊपर से मैंने चूमा तो उसके पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई। मैंने उसकी पैंटी के इलास्टिक में अपनी उँगलियाँ फँसाईं तो उसने मेरे हाथ पकड़ लिए।
वो बोली, “आप तो कह रहे थे कि सिर्फ़ चूमेंगे।
मैंने कहा, “ठीक कह रहा था। लेकिन मुझे तुम्हारी नग्न योनि को चूमना है।
उसने मेरे हाथ छोड़ दिए। मैंने उसकी पैंटी नीचे खींची। उसकी योनि पर बाल ही नहीं थे। मैं दंग रह गया। हे कामदेव ऐसी योनि भी होती है क्या जिस पर बाल ही न हों।
मैंने उसे चूम लिया। वो पूरी तरह सिहर उठी। मैंने उसकी योनि के बीचोबीच बनी पतली सी दरार पर अपनी जीभ रखी। उसकी टाँगें काँप उठीं। अब मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उसकी योनि पर अपनी जीभ फिराना शुरू कर दिया। उसका जिस्म काँपना शुरू हो गया। उसकी योनि मेरी लार और उसके योनिरस से गीली होने लगी।
मैंने उसकी टाँगें फैला दीं। उसने कोई विरोध नहीं किया अब मेरी जीभ थोड़ा थोड़ा उसकी दरार में भी उतर रही थी। बिना बालों वाली कुँवारी योनि को चूसने से बड़ा सुख दुनिया में और कहीं नहीं। मैंने उसकी टाँगे और फैला दीं फिर मैं उसकी जाँघों के बीच इस तरह लेट गया कि मेरा मुँह उसकी योनि पर रहे।
इस बार मैंने अपनी उँगलियों से उसकी योनि की दरार फैला दी। अंदर छोटा सा छेद दिखाई पड़ रहा था। मैं अपनी जीभ उसकी दरार में घुसाने की कोशिश करने लगा। नेहा में अब विरोध करने की ताकत नहीं बची थी। वो अब पूरी तरह मेरी थी।
मेरी जीभ थोड़ा सा अंदर घुसी तो उसने अपने नितम्ब ऊपर उठा दिये। मैंने जीभ और अंदर डालने की कोशिश की मगर थोड़ा और अंदर जाने के बाद जीभ पर योनि का कसाव बहुत ज्यादा हो गया। मैं समझ गया कि और अंदर जीभ डालने के लिए पहले इस छेद की चौड़ाई बढ़ानी होगी।
मैंने जीभ छेद से निकालकर उसकी योनि की भगनासा को चाटने लगा और वो अपने नितम्ब उछालने लगी। उसकी भगनासा भी फूली हुई थी। योनि को चूसते चूसते मैंने अपने हाथ नीचे करके अपना पजामा और अंडरवियर नीचे सरका दिए। फिर मैं उसके ऊपर सरक आया। मैंने उसके होंठ चूमने चाहे तो उसने अपना मुँह घुमा लिया।
मैंने पूछा, “क्या हुआ नेहा।
वो बोली, “आपका मुँह गंदा हो गया है।
हद है यार ये लड़कियाँ भी न एक दिन जिसे गंदा कहकर उसकी तरफ देखना भी नहीं पसंद करतीं बाद में उसी को मुँह में लेकर लालीपॉप की तरह चूसती हैं। हे कामदेव कहाँ से मिट्टी लाकर तू बनाता है लड़कियाँ।
मैं उसके गालों को चूमने लगा। चूमते चूमते मैंने अपनी कमर और ऊपर उठाई। अब मेरा लिंग नेहा की मुलायम योनि पर था। उफ इसकी योनि कितनी गद्देदार है। मैं अपनी कमर हिलाकर अपना लिंग उसकी योनि पर रगड़ने लगा। फिर मैंने अपने हाथ से लिंग को पकड़कर योनि की गीली दरारों से रगड़ रगड़ कर गीला किया। जब मुझे लगा कि लिंग में पर्याप्त गीलापन आ गया है तो मैंने उसकी योनि के छेद पर अपना लिंग रखा और हल्का सा दबाव बढ़ाया। जल्द ही मेरा लिंग उसकी दरार से गुजरते हुए उसकी गुफा के द्वार पर जाकर अटका। मैं जानता था कि धीरे धीरे डालूँगा तो ये दर्द के मारे मुझे अपने ऊपर से हटा देगी। इसलिए मैंने अपनी पूरी ताकत लगाकर एक जोरदार झटका मारा।
लिंगमुंड आधा ही अंदर गया लेकिन नेहा किसी जिबह होती बकरी की तरह चिल्लाई। वो सुगंधा की तरह दुबली पतली तो थी नहीं। मोटी भी नहीं थी मगर हट्टी कट्टी थी। उसने मुझे अपने ऊपर से धकेल दिया। उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे वो रोए जा रही थी। मैंने उसकी योनि की तरफ देखा। वहाँ से खून रिसकर कर चादर पर गिर रहा था। मैंने इतना बड़ा लिंग देने के लिए कामदेव को कोसा।
मैंने अपना तौलिया उठाया और उसकी योनि से खून साफ करने लगा। कुछ पलों बाद खून का बहना रुक गया तो मैंने उसकी योनि को फैलाना चाहा। वो फिर दर्द से सिसक उठी। मैं समझ गया कि आगे कुछ करना ठीक नहीं होगा। मगर सुगंधा की योनि में से तो इतना खून नहीं निकला था। ये क्या माज़रा है। मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठों और गालों को चूमने लगा।
मैंने उससे पूछा, “क्या हुआ, नेहा?”
वो बोली, “बहुत दर्द हो रहा है। लगता है मैं मर जाऊँगी।
मैंने कहा, “आखिर शादी के बाद तो तुम्हें ये सब करना ही होगा। शादी के बाद कैसे करोगी।
वो बोली, “पता नहीं। लेकिन मैं अब कभी सेक्स नहीं करूँगी। बहुत दर्द हो रहा है।
मैंने कहा, “तो फिर मैं क्या करूँ। मेरा क्या होगा नेहा।
वो बोली, “आप सुगंधा के साथ ही कर लो। मैं नहीं कर सकती।
मैंने कहा, “चलो आज नहीं, अगले रविवार को फिर प्रयास करेंगे।
वो बोली, “नहीं, कभी नहीं।
मैंने कहा, “तो फिर शादी के बाद क्या करोगी। ऐसा करोगी तो शादी की पहली रात को ही तुम्हारा पति तुम्हें तलाक दे देगा।
वो बोली, “तो मैं क्या करूँ।
मैंने कहा, “किसी डॉक्टर को दिखा लो हो सकता है तुम्हारी योनि की मांसपेशियों में कुछ समस्या हो।
वो बोली, “नहीं, मैं क्या कहूँगी डॉक्टर से कि मैं योनि में लिंग घुसवा रही थी और वो नहीं घुस रहा था आप चेक करके बताइए कि क्या समस्या है।
इस अवस्था में भी मैं हँस पड़ा, मैंने कहा, “तो एक काम करता हूँ। सुगंधा तो जान ही चुकी है कि तुम मुझे और उसको संभोग करते हुए देख चुकी हो, मैंने झूठ बोला, अब उसके और मेरे बीच में कोई लाज शर्म तो बची नहीं है। मैं उससे बात करता हूँ। वो जीव विज्ञान की छात्रा है। हो सकता है वो तुम्हारी इस समस्या का कोई समाधान बता सके। नहीं तो तुम्हारी शादी के बाद क्या होगा।
मैंने उसे डराया। अब शायद वो मुझसे शादी का तो क्या शादी करने के बारे में ही अपना ख्याल बदल चुकी थी।
वो बोली, “मेरे बारे में कुछ मत कहिएगा, कह दीजिएगा कि आप की कोई दोस्त है जिसके साथ आप कर रहे थे और यह समस्या आ गई।
मैंने कहा, “चलो ऐसे ही सही। अच्छा अब एक काम करो अपनी आँखें बंद करो।
वो बोली, “क्यूँ?”
मैंने कहा, “भरोसा करो और अपनी आँखें बंद करो।
उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। मेरे दिमाग तेजी से काम कर रहा था। मुझे अपने लिंग को तो किसी भी तरह से शांत करना ही था। मैंने आलमारी में रखी शहद की शीशी उठाई उसमें से शहद अपने लिंग पर लगाया और उससे बोला, “मुँह खोलो।सुगंधा के इंकार करने के बाद मैं नेहा को धोखे में रखकर अपना लिंग चुसवाना चाहता था। मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था।
मैं उसकी छातियों पर इस तरह बैठा कि मेरा भार उस पर न पड़े। उसने मुँह खोला हुआ था। मैंने कहा, “अगर तुम मुझसे सचमुच प्यार करती हो तो अपनी आँख नहीं खोलोगी।
उसने और कसकर अपनी आँखें बंद कर लीं।
मैंने अपना शहद लगा लिंगमुंड उसके मुँह में डाल दिया। मैंने अपने पैर उसकी बाहों पर रखे हुए थे ताकि वो अपने हाथ से टटोलकर न देख सके कि मैं उसे क्या चुसवा रहा हूँ।
उसे शहद का स्वाद मिला तो उसने चूसना शुरू कर दिया। मुझे मजा आने लगा। आज पहली बार लिंग चुसवाने का सुख मिल रहा था। मैंने अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया अब वो चूस रही थी और मैं अपनी कमर हिला रहा था। अचानक मेरे शरीर में तनाव आया और मेरे लिंग से वीर्य निकल निकल कर उसके मुँह में गिरना शुरू हो गया।
उसने आँखें खोलीं और जो उसने देखा उससे उसके होश उड़ गए। उसने अपना सिर खींचा तो लिंग से निकल रहा वीर्य उसके मुँह पर और उसके मांसल उरोजों पर गिरने लगा।
उसने पूरा जोर लगाकर मुझे अपने ऊपर से ढकेला और बाथरूम की तरफ भागी। बाथरूम से उल्टी करने की आवाजें आने लगीं। बहरहाल मेरा काम हो गया था और नेहा की शुरुआत हो चुकी थी।
अब मुझे सुगंधा और नेहा की मुलाकात करवानी थी ताकि नेहा के मन से लिंग का डर निकाल सकूँ।
मेरा दिमाग आगे की योजना बनाने में व्यस्त हो गया।
पुरुष को यदि कोई स्त्री आसानी से हासिल हो जाए तो वो जल्द ही उससे ऊब जाता है। जो स्त्री पुरुष को जितना ज्यादा तरसाती है पुरुष उसको हासिल करने के लिए उतना ही ज्यादा लालायित होता जाता है।
नेहा के साथ मेरे अधूरे संभोग ने उसे पाने की मेरी इच्छा को और बढ़ा दिया था। मैं अगले ही दिन शाम को सुगंधा के छात्रावास पहुँचा। मैंने उस तक संदेशा भिजवाया कि बहुत जरूरी काम है जल्द से जल्द वो बाहर आ जाए। वो बाहर निकली। उसने सलवार सूट पहन रखा था।
उसने पूछा, “क्या हुआ भैया, इतने दिनों तक मेरी कोई खोज खबर नहीं ली आपने और अचानक इतना जरूरी काम आ पड़ा कि दौड़े चले आए? कल सुबह आठ बजे से मेरी पहली कक्षा है, उसके लिए मेरा कुछ काम बाकी रह गया है, जो कहना हो जल्दी कहिए।
मैंने कहा, “तुमसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं जो यहाँ खड़े खड़े नहीं हो सकतीं। चलो मेरे साथ। मैं कल एकदम सुबह सुबह तुम्हें वापस छोड़ जाऊँगा।
वो बोली, “तो क्या मैं रात भर आपके साथ रहूँगी।
मैंने कहा, “हाँ।
वो मुस्कुराकर बोली, “तो मैं अपने कपड़े ले लूँ और पुस्तक-पुस्तिका भी ले लूँ ताकि मैं अपनी पढ़ाई कर सकूँ।
मैंने कहा, “हाँ ले लो।
वो अपने कपड़े और अन्य सामान लेकर बाहर आई। हम कमरे पर आ गए। जैसे ही मैंने दरवाजा अंदर से बंद किया उसने अपने हाथ में थमा सामान बिस्तर पर फेंका और पीछे से मुझसे लिपट गई।
मैंने कहा, “यह क्या कर रही हो? तुम्हें तो पढ़ाई करनी है न? हम दोनों चचेरे हैं तो क्या हुआ, हैं तो बहन भाई ही न। अब तक हमारे बीच जो कुछ हुआ वो सब मेरी भूल थी। अब आगे से हम दोनों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं होगा।
उसने मुझे छोड़ दिया और अपनी कमर पर दोनों हाथ रखकर खड़ी हो गई और अजीब से नज़रों से मुझे देखने लगी, उसने कहा, “क्यों कोई और मिल गई है क्या?”
ये लड़कियाँ संभोग करने के बाद ज्यादा समझदार हो जाती हैं क्या? मैंने कहा, “हाँ।
उसने पूछा, “कौन?”
मैंने कहा, “वो पड़ोस में जो राधा रहती है ना वो।
उसने कहा, “ये राधा कौन है? पहले तो आपने कभी उसका जिक्र नहीं किया।
मैंने कहा, “पहले कभी मौका नहीं लगा।
उसने कहा, “तो अब मैं क्या करूँ?”
मैंने कहा, “तूम भी अपने लिए कोई पुरुष मित्र ढूँढ लो। हमारे बीच ये सब ठीक नहीं है।
उसने कहा, “तो मुझे यहाँ क्यों लेकर आए?”
मैंने कहा, “कुछ पूछना है तुमसे इसलिए।
वो बोली, “क्या पूछना है?”
मैंने कहा, “जब मैंने पहली बार तुम्हारी योनि में अपना लिंग डाला था तो ज्यादा खून नहीं निकला था और दर्द भी तुम सह गई थी। लेकिन जब मैंने राधा की योनि में लिंग घुसाने की कोशिश की तो ढेर सारा खून निकला और उसे इतना दर्द हुआ कि उसने घुसवाने से मना कर दिया। तुम तो जीव विज्ञान की छात्रा हो बताओ ऐसा क्यूँ हुआ।
उसने कहा, “तो इसलिए मुझे लेकर आए हैं आप। जाइये नहीं बताऊँगी।
मैंने कहा, “प्लीज सुगंधा बता दे न यार। प्लीज।
वो बोली, “एक शर्त है।
मैंने कहा, “क्या?”
उसने कहा, “आज रात आपको मेरे साथ संभोग करना होगा।
मैंने कहा, “नहीं मैं नहीं कर सकता।
उसने कहा, “तो जाइए मैं नहीं बताती।
यह लड़की भी न। चलो झूठ मूठ का वादा कर देता हूँ बाद में तोड़ दूँगा तो यह क्या कर लेगी, मैंने कहा, “अच्छा ठीक है। लेकिन सिर्फ़ आज की रात, उसके बाद कभी नहीं।
वो खुश हो गई और उसने बताना शुरू किया, “हर लड़की की योनि के भीतर योनि का छेद ढँकने के लिए एक झिल्ली होती है जिसकी मोटाई, आकार एवं आकृति अलग अलग लड़कियों में अलग अलग होती है। मेरी योनि की झिल्ली पतली रही होगी और उसका छेद बड़ा रहा होगा जिससे मुझे दर्द कम हुआ और आपने आसानी से फाड़ दी। राधा की योनि की झिल्ली काफी मोटी होगी और उसका छेद भी छोटा सा होगा जिसकी वजह से आप उसे नहीं फाड़ पाए होंगे और मोटी झिल्ली में रक्त की नसें ज्यादा होने से खून भी खूब निकला होगा।
मैंने कहा, “तो अब मैं क्या करूँ। कैसे फाड़ूँ इस झिल्ली को।
वो बोली, “प्यार से फाड़ोगे तो हर झिल्ली फट जाएगी। पहले कोई पतली सी चीज क्रीम वगैरह लगा कर उसके भीतर डालो फिर और मोटी डालो फिर और मोटी। धीरे धीरे योनि की मांसपेशियाँ ढीली होती जाएँगी। आखिर बच्चा भी तो इसी छेद से निकलता है। यह ध्यान रहे कि यह काम रोज करते रहिएगा वरना मांसपेशियाँ फिर अपने पुराने आकार में आ जाएँगी। यह वैसे ही है जैसे कान में छेद करके अगर कुछ पहना दिया जाय तो छेद बना रहता है वरना भर जाता है। जैसे बच्चा निकलने के बाद योनि का छेद फिर अपने पुराने आकार में आ जाता है। इस तरह धीरे धीरे मगर लगातार छेद चौड़ा करते जाइए। अंत में तो आपका भीमकाय लिंग है ही।
मैंने कहा, “इसमें तो कई दिन लगेंगे।
उसने कहा, “सब्र करना सीखिए। सब्र का फल मीठा होता है।
मैंने कहा, “एक बात और पूछनी है।
उसने कहा, “क्या?”
मैंने पूछा, “तुमने उस दिन संभोग के दौरान कहा था कि आज सुरक्षित समय है। यह सुरक्षित समय क्या होता है?”
उसने कहा, “माहवारी आने के पाँच दिन पहले और खत्म होने के दो दिन बाद तक का समय सुरक्षित होता है। इसके अलावा बाकी सारे दिनों में वीर्य योनि के भीतर डालने पर लड़की को गर्भ ठहर सकता है।
मैंने पूछा, “ऐसा क्यों होता है?”
वो बोली, “अब पूरी बात समझाने में तो मुझे सुबह हो जाएगी। यह समझ लीजिए कि यदि आप शादीशुदा होते तो पहले सात दिन और बाद के तीन दिन सुरक्षित होते हैं। लेकिन आप शादीशुदा तो हैं नहीं इसलिए बिल्कुल भी खतरा मत मोल लीजिएगा। पाँच दिन पहले के और दो दिन बाद के, बाकी के दिन बाहर डिस्चार्ज के।
मुझे हँसी आ गई। यह तो वाकई पढ़ाकू लड़की है। या हो सकता है कि मेरे साथ संभोग के बाद इसने ये सब पढ़ा हो ताकि जान सके कि कब गर्भ ठहरने का खतरा है कब नहीं।
सुगंधा बाथरूम में गई। मैं बिस्तर पर बैठकर सोचने लगा कि क्या बहाना करूँ ताकि इसके साथ संभोग न करना पड़े। वो बाहर निकली। उसके शरीर पर सिर्फ़ पैंटी और ब्रा थी। यह लाल वाली पैंटी तो मैंने ही खरीदी थी। जानबूझ कर मैंने दस में से तीन पैंटी छोटी छोटी खरीदी थी। खरीदते समय मुझे यह पता नहीं था कि मैं नेहा से संभोग कर बैठूँगा और वो मुझे सुगंधा के साथ संभोग करने से मना कर देगी। सुगंधा ने पता नहीं कब जाकर लाल रंग की ब्रा भी खरीद ली थी।
क्या लग रही थी वो। उसका हल्का साँवला रंग बल्ब की सुनहली रोशनी में जगमगा रहा था। मेरे हृदय ने जोर लगा लगाकर मेरे लिंग में अतिरिक्त रक्त भेजना शुरू कर दिया। छोटी सी पैंटी जो आधी पारदर्शी थी उसमें से साफ दिख रहा था कि उसने अपनी योनि के बाल साफ कर लिए हैं।
हे कामदेव, यह लड़की तो पूरी तैयारी के साथ आई है।
वो कमर पर हाथ रखकर थोड़ा सा तिरछा होकर खड़ी थी। मैं अपनी आँखें बंद कर लेना चाहता था मगर पलकें मेरा साथ नहीं दे रही थीं। जब मैं थोड़ी देर तक नहीं उठा तो वो रसोई के अंदर गई। बाहर आई तो उसके हाथ में शहद की शीशी थी। उसने अपनी ब्रा उतार दी। उसके मांसल उरोज जो आज और बड़े लग रहे थे, फड़फड़ा उठे। वो शीशी में से शहद निकालकर अपने चूचुकों पर लगाने लगी।
अब बात मेरे बर्दाश्त के बाहर थी। मैं उठा और उसके पास गया। उसके एक चूचुक को मुँह में लेकर पागलों की तरह शहद चूसने लगा। वो आहें भरने लगी। सारा शहद चूसकर मैंने दूसरे चूचुक को मुँह में लिया। उसका भी शहद चूसकर सुखा दिया। मैंने शहद की शीशी उसके हाथ से लेकर वहीं जमीन पर रख दी। फिर मैंने उसे गोद में उठाया और ले जाकर बिस्तर पर पटक दिया।
मेरा लिंग पूरी तरह तना हुआ था। मैंने उसकी पैंटी एक झटके में उतार दी। उसकी चमकती हुई सफाचट योनि मेरे सामने थी, मैंने उसकी योनि को मुँह में भरकर चूसना शुरू किया। मुझसे जितना हो सकता था मैं उतनी तेजी से योनि चूस रहा था। फिर मैंने योनि को थोड़ा सा फैलाकर उसके भीतर स्थित मटर के दाने को चूसना शुरू किया। वो मस्त होकर अपनी कमर उछालने लगी। अब सुगंधा पूरी तरह गर्म हो चुकी थी। मैंने मौके का फायदा उठाने का निर्णय किया।
मैं एक झटके से उसकी योनि छोड़कर उठा और शहद की शीशी उठाकर ले आया। मैंने फटाफट अपने कपड़े उतारे और अपना लिंगमुंड निकाल कर उस पर शहद लगाया।
सुगंधा ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा, उसने पूछा, “शहद लगाकर डालेंगे क्या।
मैंने कहा, “डालूँगा तो मगर तुम्हारी योनि में नहीं, तुम्हारे मुँह में।
उसने जोर से मुँह बंद कर लिया और अपना सिर हिलाने लगी। मैं उसके ऊपर इस तरह बैठ गया कि मेरा भीमकाय लिंग उसके मुँह तक पहुँचे। मैंने एक हाथ से उसका चेहरा पकड़ा और दूसरे हाथ से उसके होंठों पर अपना लिंग रगड़ने लगा। शहद उसके होंठों पर लग चुका था। अब मैंने एक हाथ से उसकी नाक बंद कर दी। उसने साँस लेने के लिए अपना मुँह खोला और मैंने अपना लिंग उसके मुँह में डालकर उसकी नाक छोड़ दी। वो जोर जोर से साँस लेने लगी। साँस रुकने की वजह से कुछ पलों के लिए लिंग पर से उसका ध्यान हट गया था।
लिंग पर लगा शहद उसके मुँह में घुलने लगा। उसने अपना चेहरा हिलाकर लिंग निकालने की कोशिश की मगर मैंने एक हाथ से उसका चेहरा कस कर पकड़ा हुआ था। कुछ क्षणों बाद उसने हालात से समझौता कर लिया। शहद उसके मुँह में लार के साथ मिलकर उसके गले में उतर रहा था। मीठा मीठा शहद उसे अच्छा लग रहा था।
मैंने धीरे धीरे धक्के लगाना शुरू किया। वो अभी भी लिंग चूसने के मूड में नहीं थी। लेकिन अब मैं बिना चुसवाए उसे छोड़ने वाला नहीं था। कुछ देर तक मैंने धीरे धीरे लिंग मुंड अंदर बाहर किया फिर मैंने अपनी गति बढ़ा दी। जब लगा कि मैं अब सँभाल नहीं पाऊँगा और इसके मुँह में ही मेरा वीर्य गिर जाएगा तो मैंने अपना लिंग बाहर निकाला।
वो बोली, “छिः बहुत गंदे हो गए हो आप।
पर अब लिंग को छोड़कर मेरी बाकी इंद्रियों ने काम करना बंद कर दिया था। मैं तुरंत उसके ऊपर आया और उसकी योनि पर लिंग रखकर एक जोरदार झटका मारा। मेरा लिंगमुंड उसकी योनि में उतर गया।
वो चीख पड़ी।
मैंने पूछा, “क्या हुआ?”
वो बोली, “दर्द हो रहा है।
मैंने कहा, “क्यों। तुम्हारी योनि तो मैं पहले ही फाड़ चुका हूँ।
वो बोली, “इतनी जल्दी भूल गए मैंने कहा था न कि यदि लगातार संभोग न किया जाय तो योनि अपनी पहली वाली अवस्था में आने लगती है ऊपर से आपका लिंग इतना मोटा है। हर हफ़्ते मेरे साथ संभोग करते रहिए तो मुझे दर्द नहीं होगा। और एक बात तो आप हमेशा के लिए गाँठ बाँध लीजिए आपके भीमकाय लिंग को देखते हुए बहुत काम आएगी। फाड़िए मगर प्यार से।
कहकर उसने हथेलियों में अपना मुँह छिपा लिया।
बात तो वो सही कर रही थी मुझे अपने लिंग पर उसकी योनि का कसाव महसूस हो रहा था। मैंने अपने आप को काबू में किया और धीरे धीरे धक्के लगाने लगा। मेरा लिंगमुंड उसकी योनि की गहराइयों में उतरने लगा। थोड़ी देर बाद मेरा पूरा लिंग उसकी योनि में समा गया।
अब मैंने धक्कों की गति बढ़ा दी। तेजी से उसकी योनि में अपना लिंग अंदर बाहर करने लगा। उसकी सिसकारियाँ कमरे में गूँजने लगीं। वो अपने नितंब उठा उठाकर मेरा साथ देने लगी। मैंने उसे कसकर अपनी बाहों में ले लिया और जोर जोर से धक्के मारने लगा। उसने भी मुझे कसकर चिपका लिया। एक बार फिर मेरे मुँह से गंदे गंदे शब्द निकलने लगे।
फिर मैंने उसकी टाँगें अपने नितंबों के ऊपर चढ़ा लीं। अब उसके गर्भाशय तक मेरा भीमकाय लिंग पहुँच रहा था। मैंने उसके कान में कहा, “सुगंधा मेरी जान योनि के अंदर वीर्य गिरा दूँ।
वो बोली, “गिरा दीजिए। सुरक्षित समय है।
मैंने और कसकर उसे पकड़ लिया और पूछा, “सुगंधा मेरे बच्चे की माँ बनेगी।
वो बोली, “हाँ बनूँगी। मेरी योनि में अपना सारा वीर्य डाल दो। मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ।
उसके मुँह से ऐसे शब्द सुनकर मेरा जोश और बढ़ गया। मैंने और जोर जोर से धक्के मारना चालू कर दिया। थोड़ी देर बाद मेरा वीर्य निकल निकलकर उसकी योनि में गिरने लगा। वो भी मुझसे कसकर चिपक गई। उसका बदन काँपने लगा। थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही लेटे लेटे अपनी साँसें व्यवस्थित करने की कोशिश करते रहे। 
फिर मैं उठा और बाथरूम गया। वापस आकर मैंने अपने कपड़े पहने। सुगंधा ने भी यही किया।
अचानक उसने मुझसे पूछा, “आपकी यह राधा नेहा ही है न।
मुझे आश्चर्य हुआ कि इसे कैसे पता चल गया, मैंने कहा, “नहीं तो?”
वो बोली, “सोच लीजिए अगर नेहा हो तो मुझे उससे मिला लीजिए, मैं उसे सब समझा दूँगी। फिर वो आपके लिंग से डरना छोड़ देगी। वरना आपकी मर्जी। मेरा क्या जाता है।
मैं थोड़ी देर तक सोचता रहा। बात तो इसकी सही है। एक लड़की ही दूसरी लड़की को संभोग के बारे में विस्तार से समझा सकती है। मैं सुगंधा को लेकर नीचे गया। मकान मालिक अभी आए नहीं थे। मकान मालकिन और नेहा नीचे थे। मैंने उन्हें नमस्ते किया और उनके पास बैठ गया।
उन्होंने नेहा को चाय बनाने के लिए भेजा तो सुगंधा ने कहा- मैं भी मदद करती हूँ !
और वो भी भीतर चली गई। दोनों चाय बनाकर लाईं। हमने चाय पी। थोड़ी इधर उधर की बातें हुईं फिर मैं और सुगंधा ऊपर आ गए।
ऊपर आकर सुगंधा ने कहा- अब आप जाइए और घूम घामकर तीन चार घंटे बाद आइएगा, मैंने नेहा को बुलाया है, वो आएगी तो मैं उसे सब समझा दूँगी।
हे कामदेव यह लड़की कितनी बेशर्म हो गई है। अभी एक साल पहले की ही बात है मैं इसके सामने मुँह से गालियाँ निकालते हुए भी डरता था और अब ये मेरे लिए लड़की तैयार कर रही है।
हे कामदेव, तुम जो न करवा दो।
फिर मैं अपने एक दोस्त के यहाँ जाने के लिए निकल पड़ा। रास्ते में मैं नेहा के साथ संभोग के ख्याली पुलाव पका रहा था और आगे की योजना बना रहा था।