"आ गया भईया? आज जल्दी आ गया."
"हां दीदी, महने भर से रोज देर हो जाती है, आज बॉस से बहाना बनाकर भाग आया"
"तो ऐसा क्या हो गया आज, आता रोज की तरह रात के दस बजे"
"तू नाराज है दीदी, जानता हूं, इसीलिये तो आ गया आज"
"चल, आ गया तो आ गया, पर करेगा क्या जल्दी आके? वैसे भी सुबह रात बहन से मिनिट दो मिनिट तो मिल ही लेता है ना"
"अब दीदी ज्यादती ना कर, रात को लेट आता हूं फिर भी कम से कम एक घंटी तेरी
सेवा करता हूं."
"बड़ा एहसान करता है रे, बहन की सेवा करके"
"अब नाराजी छोड़ दीदी, सच्ची तेरे साथ को तरस गया हूं, सोचा आज मन भर के अपनी
प्यारी पूजनीय बहन की पूजा करूंगा."
"बड़ा नटखट है रे, बड़ा आया बहन की पूजा करने वाला. तेरी पूता और सेवा
मैं खूब जानती हूं. एक नंबर का बदमाश छोरा है तू, बचपन में तेरे को जरा डांटकर रखती तो ऐसे न
बिगड़ता"
"हाय दीदी.. झूट मूट भी नाराज होती हो तो क्या लगती
हो! पर ये तो बता के अगर तू मुझे सीदा सादा भाई बना कर रखती तो आज तेरी ऐसी सेवा
कौन करता? बता ना दीदी. तुझे
अपने भाई की सेवा अच्छा नहीं लगती क्या, कुछ कमी रह जाती है क्या दीदी? अरे मुंह क्यों छुपाती है.. बता ना!"
"अब ज्यादा नाटक न कर, बातों में कोई तुझे हरा सकता है क्या! चल खाना
तैयार है, तू मुंह धो कर आ,
मैं भी आती हूं. जरा कपड़े
बदल लूं"
"अब कपड़े बदलने की क्या जरूरत है दीदी? अच्छे तो हैं. वैसे भी कोई
भी कपड़े हों क्या फरक पड़ता है? कुछ देर में तो निकालने ही हैं ना."
"कैसी बातें करता है रे, कोई सुन लेगा तो? ऐसे सबके सामने छिछोरपना न दिखाया कर"
"अब यहां और कौन है दीदी सुनने को? और मैंने गलत क्या कहा?
तू ही कुछ का कुछ मतलब
निकालती है तो मैं क्या करूं? अब सोते वक्त कपड़े तो बदलते ही हैं ना? और बदलना हो कपड़े तो निकालने पड़ते ही हैं, उसमें ऐसा क्या कह दिया
मैंने?"
"हां हां समझ गयी, बड़ा सीधा बन रहा है अब. तू नहा के आ, मैं कपड़े बदल के खाना परोसती
हूं"
.. कुछ देर के बाद..
"मस्त पुलाव बना है दीदी. आज खास मेहरबान है मुझपे
लगता है"
"चल, ऐसा क्या कहता है. अब अपने भाई के लिये कौन बहन मन लगाकर खाना नहीं बनायेगी.
और ले ना. और ऐसा क्या घूर रहा है मेरी ओर?"
"ये साड़ी बड़ी अच्छी है दीदी. और ये ब्लाउज़ भी नया
लगता है, बहुत फब रहा है तेरे
पे. तभी कह रही थी लड़िया के कि कपड़े बदल के आती हूं"
"अच्छा है ना?"
"हां दीदी. आज स्लीवलेस ब्लाउज़ पहन ही लिया तूने.
मैं कब से कह रहा था कि एक बार तो ट्राइ कर"
"वो तू कब से जिद कर रहा था इसलिये बनवा लिया और
तुझे पहन के दिखाया. तुझे मालूम है भईया कि मैं स्लीवलेस पहनती नहीं हूं, ये मेरी बाहें नंगी हैं, मुझे शरम लगती है."
"पर कैसी गोरी गोरी मुलायम हैं. हैं ना दीदी?
फ़िर? मेरी बात माना कर"
"जो भी हो, मैं बाहर ये नहीं पहनूंगी. घर में तेरे सामने ठीक है,
तुझे अच्छा लगता है ना"
"वैसे दीदी, सिर्फ़ ब्लाउज़ और साड़ी ही नहीं, मुझे और भी चीजें नयीं लग रही हैं"
"चल बेशरम.. "
"अरे शरमाती क्यों हो दीदी? मेरे लिये पहनती भी हो और शरमाती भी हो"
"चल तुझे नहीं समझेगी बहन के दिल की बात. वैसे तुझे
कैसे पता चला?"
"क्या दीदी?"
"यही याने.. कैसा है रे.. खुद कहता है और भूल जाता
है"
"अरे बोल ना दीदी, क्या कह रही है?"
"वो जो तू बोला कि सिर्फ़ साड़ी और ब्लाउज़ ही नहीं.. और
भी चीजें नयी हैं"
"अरे दीदी, ये साड़ी शिफ़ॉन की है.. और ब्लाउज़ भी अच्छा पतला है, अंदर का काफ़ी कुछ दिखता
है"
"हाय राम.. मुझे लगा ही.. ऐसे बेहयाई के कपड़े मैंने..
"
"सच में बहुत अच्छी लग रही हो दीदी.. देखो गाल कैसे राजा
हो गये हैं नयी नवेली दुल्हन जैसे.. तू तो ऐसे शरमा रही है जैसे पहली बार है
तेरी"
"तू चल नालायक.. मैं अभी आती हूं सब साफ़ सफ़ाई करके..
फ़िर तुझे दिखाती हूं.. आज मार खायेगा मेरे हाथ की तू बेहया कहीं का"
"दीदी.. सिर्फ़ मार खिलाओगी.. और कुछ नहीं चखाओगी.. "
"तू तो.. अब इस चिमटे से मारूंगी.. और ये पुलाव और
ले, तू कुछ खा नहीं रहा
है, इतने प्यार से मैंने
बनाया है"
"मैं नहीं खाता.. तुमसे कट्टी"
"अरे खा ले मेरे राजा.. इतनी मेहनत करता है.. घर में
और बाहर.. चल ले ले और.. फ़िर रात को बदाम का दूध पिलाऊंगी"
"एक शर्त पे खाऊंगा दीदी"
"कैसी शर्त भईया?"
"तू ये साड़ी और ब्लाउज़ निकाल और मुझे सिर्फ़ वो नयी
चीजें पहने हुए परोस"
"ये क्या कह रहा है? मुझे शरम आती है भईया"
"दीदी.. आज ये शरम का नाटक जरा ज्यादा ही हो गया है.
अब बंद कर और मैं कहता हूं वैसे कर.. कर ना दीदी, तुझे मेरी कसम.. तूने तो कैसे कैसे रूप में मुझे
खाना खिलाया है.. है ना?"
"चल तू कहता है तो.. और नाटक ही सही पर तुझे भी
अच्छा लगता है ना जब मैं ऐसे शरमाती हूं?"
"जरा पास आओ दीदी तो दिखाऊं कि कितना अच्छा लगता
है"
"बाद में मेरे राजा. तू ये खीर ले, मैं अंदर साड़ी ब्लाउज़ रख के
आती हूं"
.. कुछ देर के बाद...
"वाह दीदी, क्या मस्त ब्रा और पैंटी हैं. नये हैं ना? मुझे पहले ही पता चल गया था,
तेरे ब्लाउज़ के कपड़े में से
इस ब्रा का हर हिस्सा दिख रहा था."
"हां भईया आज ही लायी हूं. उस दिन तू वो मेगेज़ीन
देखकर बोल रहा था ना कि दीदी ये तुझ पर खूब फ़बेंगी तो आज ले ही आयी. तू कहता था ना
कि वो हाफ़ कप ब्रा और यू शेप के स्ट्रैप की ब्रा ला. और ये पैंटी, वो तंग वाली, ऐसी ही चाहिये थी ना तुझे?"
"तू गयी थी मॉल पे दीदी?"
"और क्या? वो मेगेज़ीन से मेक लिख के ले गयी थी, दो मिनिट में ली और वापस आ गयी"
"क्या दिखते हैं तेरे मम्मे दीदी इन में, लगता है बाहर आ जायेंगे.
पैंटी भी मस्त है, तेरी झांटों का ऊपर का भाग भी दिखता है. सच दीदी, तू ऐसी ब्रा और पैंटी में अधनंगी खाना परोसती है तो
लगता है जैसे मेनका या उर्वशी प्रसाद दे रही हों. लगता है कि यहीं तुझे पटक कर.. "
"बस बस.. नाटक ना कर..
"दीदी.. मेरी ओर देख.. मेरी आंखों में देख.. तेरा
रूप देख कर मेरा क्या हाल होता है देख रही ऐ ना? तू मुझे बहुत अच्छी लगती है दीदी.. नरम नरम मुलायम
बदन.. हाथ में लेकर दबाने की इतनी जगहें हैं.. मुंह मारने की इतनी जगहें हैं..
तेरे इस बदन में जो सुंदरता है वो किसी मॉडल के बदन में कभी नहीं मिलेगी दीदी.. जरा
आना मेरे पास.. ये देख.. कैसा हो गया है. आ ना दीदी, मेरे पास आ."
"अभी नहीं भईया नहीं तो तू ठीक से खाना भी नहीं
खायेगा और शुरू हो जायेगा. चल खा जल्दी से."
"दीदी तू भी खा ले ना, नहीं तो फ़िर बाद में खाने बैठेगी और मुझे उतना
इंतजार करवायेगी"
"मैं तो खा चुकी पहले ही शाम को भईया. मेरा उपवास था
ना."
"उपवास सिर्फ़ खाने का है ना दीदी? और कुछ तो नहीं? मेरे साथ तो उपवास नहीं
करेगी ना दीदी? या मुझसे तो नहीं करायेगी उपवास?"
"नहीं मेरे राजा, तेरा तो मैं भोग लगाऊंगी. तुझे पकवान चखाऊंगी"
"ले दीदी, हो गया मेरा खाना"
"अरे और ले ना खीर, पूरा बर्तन भर के बनाई है तेरे लिये"
"अब नहीं दीदी, अब तो बस तू देगी वो प्रसाद लूंगा. खाना बहुत हो
गया, अब तो मुझे पुलाव
नहीं, वो फ़ूली फ़ूली डबल
रोटी चाहिये जो तेरी टांगों के बीच है. चल जल्दी आ, मैं इन्तजार कर रहा हूं बेडरूम में"
"आज इतना उतावला हो गया, रोज रात मैं इन्तजार करती हूं तब.. ?"
"आज वसूल लेना दीदी, रोज लेट आने का और तुझे तड़पाने का आज पूरा हिसाब
चुकता कर देता हूं दीदी, तू आ तो सही"
"ठीक है चल, मैं पांच मिनिट में आयी"
... कुछ देर के बाद...
"आज खाना कैसा था भईया? तूने बताया ही नहीं, बस मेरी ओर टुकुर टुकुर देख रहा था पूरे खाने के
वक्त"
"बहुत अच्छा था दीदी, ये भी पूछने की बात है? तेरी हर चीज अच्छी है, चल अब जल्दी से ये ब्रा और पैंटी भी उतार दे,
इनमें तू बहुत मस्त लगती है,
मजा आता है इन्हें मसलने में
पर अभी मेरे को टाइम नहीं है, बहुत जोर से खड़ा है दीदी."
"सच उतार दूं?"
"नहीं दीदी, मैं भूल गया कि आज अपने पास टाइम ही टाइम है, आज मैं जल्दी घर आ गया हूं,
नौ ही तो बजे हैं, रोज तो ग्यारा बारा बज जाते
हैं. मत उतार दीदी, पर मेरे पास आ"
"अरे ये क्या.. चल छोड़"
"गोद में ही तो लिया है दीदी, कुछ बुरा तो नहीं किया है, ऐसे क्या बिचकती है. अब ये दिखा जरा ब्रा. क्या
दिखती है दीदी, साटिन की है लगता है, इतनी चिकनी मुलायम"
"अरे कैसे दबा रहा है रे ब्रा के ऊपर से ही, रोज तो ब्रा निकाल के दबाता
है"
"आज बात और है दीदी, इस ब्रा ने सच में तेरी चूंचियों को निखार दिया है,
लगता है कि इन गोलों में
मीठा मुलायम खोवा भरा है खोवा जिसे मैं गपागप खा जाऊं. और खाने के पहले देखूं कि
कितना मुलायम खोवा है.. और ये डबल रोटी देख.. इतनी फूली फूली डबल रोठी और इस पर ये
रेशमी जाल.. "
"भईया, ये क्या कर रहा है, पैंटी के अंदर हाथ डाल रहा है बेशरम"
"तो ले, पैंटी निकाल दी, अब तो बेशरम नहीं कहेगी!"
"कैसा हे रे तू.. और मुझे ऐसा क्यों लगता है कि मैं
साइकिल के डंडे पर बैठी हूं"
"डंडा तो है दीदी पर तेरे भाई की जवानी का डंडा है
जो अपनी बहन के जोबन को देखकर खुशी से उछल रहा है.. ये देख.. ये देख"
"अरे.. ये तो मेरे वजन को भी उठा लेता है मेरे राजा..
कितना जोर है रे इसमें.. जादू सा लगता है"
"ये जादू है दीदी तेरे बदन का, तेरे हसीन नरम नरम शरीर का,
चल दीदी.. अब सहन नहीं होता,
निकाल ना ये ब्रा, इसका बकल कैसा है अजीब सा,
मेरे से नहीं निकलता"
"तू पोंगा पंडित है, इतने दिन हो गये अपनी बहन की पूजा करते करते और
ब्रा का बकल भी नहीं खुलता तुझसे! ये ले.. और ये उंगली क्यों रगड़ रहा है रे.. कैसा
तो भी होता है मेरे राजा"
"दीदी.. कितनी गीली है ये तेरी.. बुर दीदी.. तेरी
चूत दीदी.. डंडे को खाने का इरादा है इसका? डंडा तैयार है दीदी, चल जल्दी"
"ले, मुझे क्या पता था कि तू इतना उतावला होगा! रोज तो ऐसे ही ब्रा और पैंटी में
मुझे लेकर लिपटता है. ले निकाल दी दोनों, अब क्या करूं? सीधे चोदेगा क्या? देख कैसा झंडे जैसा खड़ा है, लगता है अपनी बहन को सलाम कर रहा है"
"हां दीदी, ये तेरे रूप को सलाम कर रहा है. आज तो हचक हचक के चोदूंगा
पर बाद में, पहले जरा अपने खजाने का रस पिलवा. कब से इस अमरित के स्वाद को याद कर करके मरा
जा रहा हूं"
"अरे इतना उतावला क्यों हो रहा है, रोज तो स्वाद लेता है"
"पर दीदी, पिछले कुछ दिन से इतनी देर हो जाती है रात को, बस जरा सा चख पाता हूं. आज
मुझे ये अमरित घंटे भर स्वाद के लेकर पीना है"
"हां भईया, पी ले, जितना मन है उतना पी, तेरे लिये ही तो संजो कर रखा है ये खजाना, जो चाहता है कर. आ जा, दे दे इसमें मुंह. बिस्तर पर लेटूं क्या? कि तेरे पास खड़ी हो जाऊं?"
"नहीं दीदी, आज इस कुरसी में बैठ जा और टांगें खोल दे. मन लगाकर पलथी
मारकर बैठूंगा अपनी बहन के सामने और उसकी बुर का रस चखूंगा."
"ले बैठ गयी. और फ़ैलाऊं क्या? चूत खुल गयी कि नहीं तेरे लायक?"
"दीदी, खुली तो है पर मुंह नहीं दिख रहा है ठीक से, झांटों में ढकी है. तेरी खुली
चूत क्या दिखती है दीदी, लाल लाल गुलाबी गुलाबी मिठाई जैसी. अभी बस झलक दिख रही है काले काले बालों में से,
जरा उंगली से झांटें बाजू
में करके चूत खोल कर रख ना, तेरी झांटें मुंह में आती हैं."
"काट लूं क्या? मैं तो कब से काटने को कह रही हूं, तू ही तो कहता था कि अच्छी
लगती हैं तुझे!!"
"हां दीदी पर अब बहुत लंबी हो गयी हैं, जीभ पे बाल आते हैं, चाटने में तकलीफ़ होती
है"
"तो पूरी साफ़ कर दूं क्या रेज़र से? दो महने पहले की थीं ना,
तूने ही शेव कर दिया
था."
"नहीं दीदी, एक दो दिन अलग लगता है, फ़िर रोज शेव करनी पड़ेगी नहीं तो वे जरा जरा से
कांटे और चुभते हैं. मैं काट दूंगा कल कैंची से, वैसे तेरी झांटें हैं बहुत शानदार, रेशमी और मुलायम, मजा आता है उनमें मुंह डाल
के, बस थोड़ी छोटी हों.
अब जरा खोल ना चूत, वो झांटें भी बाजू में कर, देख कितना रस बह रहा है, इतनी मस्त महक आ रही है, जरा चाटने तो दे ठीक से"
"ले मेरे राजा, चाट. अब ठीक है ना? आह ऽ भईया, बहुत अच्छा लगता है रे, कैसा चाटता है रे ऽ जादू कर देता है अपनी बहन पर.
ओह ऽ ओह ऽ हां मेरे राजा अं ऽ अं ऽ और चाट मेरे खसम.. मेरे राजा.. कैसा लग रहा है
रे.. बोल ना !!"
"दीदी जरा सुकून से चाटने दे ना... बात करूंगा तो
चाटूंगा कैसे.. हां अब ठीक है, कितनी चू रही है दीदी, बस टपकने को है. वैसे क्या बात है दीदी आज तो बिलकुल घी निकल रहा है तेरे छेद
से.. स्वाद आ रहा है मस्त, सौंधा सौंधा!"
"अरे सुबह से नहीं झड़ी हूं.. तू रोज की तरह सुबह
जल्दी भाग गया ऑफ़िस को, बिना अपनी बहन को चोदे या चूसे. आज कल लेट आता है और थक कर देर तक सोता है. आज मुठ्ठ भी
नहीं मार पायी, वो पड़ोस वाली दादी आ बैठी दिन भर मेरा दिमाग चाटा, तेरी याद आती थी तो मन मार कर रह जाती थी, बीच में लगा कि बाथरूम जाकर
मुठ्ठ मार लूं पर मुझे ऐसे जल्दबाजी में मुठ्ठ मारने में मजा नहीं आता भईया. जरा
आराम से लेट कर तेरे को याद करके.. दिन भर ये बुर रानी बस मन मारे बैठी है"
"तभी मैं कहूं आज इतनी गाढ़ी क्यों है तेरी रज.. दीदी
तेरी रज याने पकवान है पकवान दीदी.... अब जरा और खोल ना चूत.. जीभ अंदर डालनी
है."
ले भईया पूरी खोल देती हूं... अब ठीक है?.. हाय ऽ रे ऽ जीभ अंदर डालता
है तो मजा आता है भईया.. और अंदर डाल ना.. ओह ऽ ओह ऽ उई ऽ मां ऽ.. गुदगुदी होती है
ना!"
"दीदी, तू बार बार अपनी चूत छोड़ कर मेरा सिर पकड़ लेती है, चूत पर दबा लेती है, ऐसे में मैं कैसे चाटूंगा ऽ
मेरी बहन की बुर का अमरित?"
"अरे तो चूस ले ना.. चाटना बाद में.. हाय तुझे नहीं
पता कि भईया तेरे को बुर से दबा कर कैसा लगता है.. लगता है तेरे को पूरा फ़िर से
अपने अंदर घुसेड़ लूं"
"जादू सीख ले दीदी, मेरे को बित्ते भर का गुड्डा बनाकर अपनी चूत में
घुसेड़ कर रख, दिन भर वहीं रहा करूंगा. पर अब चल चाटने दे जरा, देख कैसी बह रही है"
"भईया.. हाथ बार बार हिल जाता है.. इसलिये खोल कर
नहीं रख पाती बुर तेरे लिये"
"तो दीदी.. ऐसा कर, अपनी टांगें उठा और कुरसी के हथ्थे पर रख ले."
"दुखता है भईया.. टांगें इतनी फ़ैलायेगा तो कमर टूट
जायेगी मेरी.. चल अब सिर नहीं पकड़ूंगी तेरा पर मेरे राजा तू इतना अच्छा चाटता है
रे ऽ सच में लगता है कि तू इत्ता सा होता तो तेरे को पूरा अंदर घुसेड़ कर तेरे बदन
से ही मुठ्ठ मारती"
"दीदी नखरे मत कर, रख टांगें ऊपर, ले मैं मदद करता हूं."
"ओह.. आह ऽ.. आह ऽ.... ओह ऽ.. ले हो गया तेरे मन
जैसा? रख लीं टांगें ऊपर
मैंने."
"अब देख दीदी, कैसे मस्त खुल गयी है तेरी बुर.. अब सही भोसड़ा लग
रहा है गुफ़ा जैसा.. अब आयेगा मजा चाटने का.. अब तो जीभ क्या.. मेरा पूरा मुंह
ठुड्डी समेत चला जायेगा अंदर"
"आह ऽ ओह ऽ.. हां भईया ऐसा ऽ आ ऽ ह ऽ ओह ऽ ओह ऽ हा ऽ
य ऽ रे.. अं ऽ अं ऽ.. अरे ऽ उई ऽ मां ऽ ऽ ऽ.."
"हां दीदी.. बस ऐसे ही.. और पानी छोड़ अपना.. ये बात
हुई.. मजा आ गया दीदी.. अब लगाई है तूने रस की फुहार.. नहीं तो बूंद बूंद चाट कर
मन नहीं भरता दीदी ऽ अब जरा मुंह लगाना पड़ेगा नहीं तो.. बह जायेगा ये अमरित.. दीदी..
ओ ऽ दीदी.. लगता है कि मुंह में भर लूं तेरी.. बुर और चबा चबा कर खा.. जाऊं.. देख
ऐसे.. "
"ओह.. ओह.. अरे.. ओह.. कैसा करता है रे.. उई मां ऽ..
आह.. ओह.. ओह.. हा ऽ य.. मैं मरी.. ओह.. ओह..उईईई ऽ उईई ऽ आह.. आह.. आह.. बस..
आह"
"अब झड़ी ना मस्त?.. अब जरा दो चार घूंट रस मिला है मेरे को.. और कितना
गाढ़ा है दीदी.. शहद जैसा.. चिपचिपा.."
"कैसा आम जैसा चूसता है रे.. निहाल कर दिया मेरे राजा..
अब जरा शांति मिली दिन भर की प्यास के बाद.. कितना अच्छा झड़ाता है तू भईया... बहुत
अच्छा लग रहा है मेरे राजा... अरे अब नहीं कर.. थोड़ा आराम तो करने दे.. अभी अभी
झड़ी हूं.. मेरे दाने को अब न छेड़ भईया... सहन नहीं होता रे मेरे ला ऽ ल.. "
"दीदी नखरा मत कर, पूरा पानी निकाल तो लूं पहले तेरी चूत से. कल बोल
रही थी ना कि भईया, निचोड़ ले मेरी चूत, सब पानी निकाल ले और पी जा. तो आज निचोड़ता हूं तुझे. अभी तो एक बार झड़ाया है,
आज तो घंटा भर
चूसूंगा."
"चूस ना.. मैं कहां मना करती हूं.. बस दम तो लेने दे
मेरे राजा.. तुझे बुर का पानी पिला कर मेरा मन खिल जाता है भईया, तेरे लिये ही तो बहती है
मेरी चूत.. हा ऽ य भईया मत कर इतनी जोर से... ओह.. अच्छा भी लगता है मेरे राजा और
सहन भी नहीं होता रे.. मैं तो मर ही जाऊंगी एक घंटे में.. उ ऽ ई ऽ उ ऽ ई ऽ कैसे
करता है रे? मेरे दाने को ऐसा बेहरमी से रगड़ता है जैसे मार डालना चाहता है मुझे.. उई ऽ मां..
ओह ऽ..
... कुछ देर के बाद...
"बस भईया छोड़ दे अब.. बहुत हो गया रे.. जान ही नहीं
है अब मेरे बदन में.. तुझे मेरी कसम मेरे राजा.. लगता है तीन चार घंटे हो गये तुझे
मेरी बुर से मुंह लगाकर.. सब रस खतम हो गया.. अब तो छोड़ ना मेरे राजा! दस बार तो
झड़ा चुका रे.. अब दुखता है रे.. दाना सनसनाता है.... कैसा तो भी होता है"
"कहां दीदी, एक घंटा भी नहीं हुआ होगा.. इतने में थक गयी? खैर चल, छोड़ता हूं तुझे पर दीदी,
बता तो.. मजा आया?"
"हां ऽ आं ऽ भईया.. कितनी मीठी गुदगुदी होती है रे
मेरी बुर में जब तू उसे प्यार करता है ऐसे.. कितना सुख देता है रे अपनी दीदी को..
मार डालेगा किसी दिन मुझे..."
"नहीं दीदी तुझे तो बहुत दिन जिंदा रखूंगा, बुढ़िया हो जायेगी तो कुछ कर
भी नहीं पायेगी मेरे को.. और जोर से बिना रोक टोक चोदा करूंगा. अब चल बिस्तर पर,
चोद डालता हूं तुझे.. ये देख
मेरा लौड़ा? मरा जा रहा है तेरी
चूत के लिये"
"अरे ये मुस्टंडा मुझे खतम कर देगा.. मुझसे नहीं सहा
जायेगा भईया.. चूत ऐसी कर दी है तूने चूस चूस कर कि लगता है कि रेती से रगड़ी हो..
अब उसपे ये जुलम न कर.. उई ऽ मां ऽ देखा राजा मुझसे तो चला भी नहीं जा रहा
है"
"तो उठा कर ले चलता हूं दीदी तेरा यह गुदाज गोरा गोरा बदन
किसी दुल्हन से कम थोड़े है!.. चल आ जा.. ऐसे.. मेरी गरदन में बांहें डाल दे दुल्हन
जैसे... बस हो गया.. आ गया बिस्तर.. ले अब लेट जा और टांगें फ़ैला दे"
"मत चोद राजा.. सुन अपनी दीदी की बात.. आ चूस देती
हूं इसे.. तेरे इस सिर उठाकर खड़े सोंटे की मलाई खाने दे मुझे"
"आज नहीं दीदी, कल तूने बस चूसा ही चूसा था मुझे, एक बार भी अपने बुर में नहीं
लिया इसे, आज तो चोदूंगा तुझे
और ऐसा चोदूंगा कि देख लेना तू ही"
"मत चोद रे.. छोड़ दे मेरे राजा.. आज मेरी चूत बहुत
थक गयी है रे, छूने से भी दुखती है, चुदवाऊंगी तो मर ही जाऊंगी!"
"अब किरकिर करेगी तो गांड मार लूंगा दीदी, फ़िर न कहना"
"नहीं नहीं भईया.. गांड मत मार.. दुखता है रे.. तेरा
यह मूसल तो फ़ाड़ देता है मेरी.. तू गांड खोलता है मेरी तो दिल धक धक करने लगता है
रे भईया डर के मारे.. "
"क्या दीदी तुम भी.. कितना नखरा कर रही है आज.. इतने
दिन से गांड मरा रही है और फ़िर भी कहती है कि दुखता है... सच बोल हफ़्ते में दो तीन
बार नहीं मरवाती तू?"
"सच में दुखता है रे.. तू नहीं समझेगा.. मैं कहां
मरवाती हूं, तू ही मार लेता है जिद करके.. गांड मत मार राजा.. ले मैंने चूत खोल दी तेरे
लिये.. चोद ही ले पर गांड मत मार!"
"ये बात हुई ना, अब आई रास्ते पर. जरा और फ़ैला टांगें, रखने दे लंड तेरी चूत के
दरवाजे पर.. ये ऽ ये घुसा अंदर ऽ.. दीदी तू फ़ालतू में किरकिर कर रही है पर तेरी
चूत कितनी पसीज रही है देख.. एक झटके में अंदर चला गया मेरा लौड़ा देख!"
"हां भईया मैं क्या करूं.. तू आगोश में होता है तो
पागल हो जाती है ये.. रस छोड़ती रहती है.. आह ऽ.. धीरे धीरे भईया.. हौले हौले चोद
ना.. चुम्मा दे ना भईया.. चुम्मा ले लेकर चोद.. जरा प्यार से चोद ना अपनी बहन को..
ऐसे रंडी के माफ़िक ना चोद"
"ठीक है दीदी.. धीरे धीरे चोदता हूं पर वायदा नहीं
करता.. मेरा लंड बहुत मस्ती में है तेरी चूत का भूसा बनाना चाहता है.. असल में दीदी
तू किसी रंडी से कम नहीं.. तेरे को देखते ही लंड खड़े हो जाते हैं लोगों के.. मेरे
को मालूम है.. ले.. ऐसे ठीक है".. चुम्मा दे.. तेरा चुम्मा बहुत मीठा है दीदी..
जरा जीभ दे न चूसने को"
" अंम ऽ म ऽ चुम्म ऽ अं ऽ अं ऽ मं ऽ चप ऽ अरे जीभ
क्यों चबाता है मेरी, खा जायेगा क्या ऽ ?"
"हां दीदी चमचम है चमचम रसीली मीठी, चूसने दे जरा सप ऽ सुर्र ऽ
अं ऽ... दीदी तेरे मम्मे क्या नरम नरम हैं, रबर के बंपर जैसे लगते हैं छाती पर, भोंपू हैं भोंपू ऽ."
"हां राजा तभी तू ये भोंपू बजाता रहता है ना?
ले और बजा, दबा ना और ऽ.. बहुत अच्छा
लगता है रे.. हां ऐसे ही.. ओह ऽ कितना अच्छा चूसता है रे.. चूस मेरे राजा.. चूस..
चूस ले मेरे निपल मेरे राजा.. पी जा बहन का दूध.. हाय ऽ ओह ऽ अरे काट मत.. कैसा
करता है?.. हां ऐसे ही चूस.. और..
और जोर से.. हाय चोद ना अब"
"दीदी, अब देख कैसे चूतड़ उछाल उछाल कर चुदवा रही है.. अभी कह रही
थी कि धीरे धीरे भईया.. रंडी जैसे ना चोद.. अब खुद रंडी जैसी चूतड़ उछाल कर मेरा
लौड़ा खा रही है"
"अरे तू नहीं समझेगा मेरे राजा एक बहन के दिल की
हालत जब उसका जवान भाई उसकी चूंचियां चूसता हुआ उसे चोद रहा हो.. चोद भईया चोद.. और
जोर से चोद.. तोड़ दे मेरी कमर.. मैं कुछ न बोलूंगी.. चोद चोद कर अधमरी कर दे मुझे..
चोद मेरे राजा.. और जोर से चोद.. जोर से धक्का लगा ना.. पेल दे मेरे राजा राजा.. पूरा
पेल दे अंदर.. ओह ऽ ओह ऽ.. हाय ऽ.. ऐसे ही मेरे भाई.. और जोर से मार.. लगा जोर से..
घुस जा अपनी बहन की बुर में ऽ.. उई ऽ मां ऽ आह आह उई मां ऽ ऽ ऽ ऽ चोद चोद कर मार
डाल मेरे भईया.. खतम कर दे रे मुझे ऽ ऽ इस रंडी से पैसा वसूल कर ले रे चोद चोद के..
मैं सच में तेरी रंडी हूं मेरे राजा भईया.. "
"ले दीदी ऽ.. ले.. चोद डालता हूं तुझे आज.. ले.. और
जोर से मारूं ऽ ? .. ये ले.. और ये ले.. तेरी चूत का आज भुजिया ऽ बना ऽ दे ऽ ता ऽ हूं ऽ ये ले ऽ
आया मजा? ऽ नहीं आया ?
ऽ तो ये ले.. ओह ऽ ओह ऽ आह ऽ
आह ऽ ओह दीदी ऽ ऽ ओह ऽ आह ऽ आह आ ऽ आ ऽ आ ऽ आह ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ"
...कुछ देर के बाद…
"मेरे राजा ऽ मेरे राजा ऽ थक गया ना? बहुत मेहनत की है तूने रे भईया
आज.. अपनी बहन को पूरा सुखी कर दिया भईया.. भगवान तुझे लंबी उमर दे.. ले चूस मेर मुम्मा और सो जा अब.. रात बहुत हो
गयी है."
"दीदी ऽ बहुत मजा आया दीदी.. तू कितनी मस्त है.. रूप
की खान है.. दीदी.. तेरा दूध पीने का मन करता है दीदी."
"अब दूध कहां से आयेगा मेरे राजा.. शादी के 3 दिन
बाद तो विधवा हो गई.. हमारे समाज में दोबारा शादी का रिवाज नहीं.. दोबारा शादी हो
गई होती तो पति का बच्चा पैदा करने के बजाए तेरे से चुदवा चुदवा का तेरा बच्चा
पैदा करती और अपना दूध पिलाती.. अच्छा ऐसा कर भाभी ले आ.. शादी कर ले.. फ़िर भाभी
का दूध पीना."
"मुझे नहीं करनी शादी दीदी.. तेरे से ज्यादा रूपवती
कौन होगी.. तेरे ये मोटे मोटे पपीते से मम्मे.. ये रसीली लाल लाल चूत.. ये मतवाली पहाड़ सी
गांड.. ये मोटे मोटे चिकने पैर.. ये गोरी फ़ूली रान.. तेरा ये गोरा गोरा बदन.. माल
है दीदी.. असल माल है.. खोवा है खोवा.. मावा... मुझे शादी की क्या जरूरत है?"
"पगला है रे तू पगला !.. बिलकुल बहन का दीवाना है.
अच्छा चल सो जा."
.. दूसरे दिन..
"आ गया भईया, आज फ़िर से देर हो गयी आफ़िस में?"
"हां दीदी, क्या करूं बहुत काम था, चल मैं आता हूं नहा कर, बहुत भूख लगी है"
"मैं हूं ना मेरे राजा तेरी भूख मिटाने को. चल आ जा
जल्दी"
"जानता हूं दीदी, सिर्फ़ तू ही है जो मेरी भूख मिटाती है. अभी आता
हूं"
"ठीक है, वैसे पराठे बना रही हूं आज, तेरी ही राह देख रही थी."
.. कुछ देर के बाद..
"आ गया मेरा राजा भईया! अरे ये क्या कर रहा है?
कैसा चिकना लग रहा है नहा धो
के!"
"चिकनी दीदी का चिकना भाई, है ना दीदी? जरा ऐसे सरक.. बस ठीक है"
"अरे ये क्या कर रहा है मेरे पीछे बैठ कर.. और साड़ी
क्यों उठा रहा है रे नालायक?"
"चुप कर दीदी. और तू भी इसी की राह देख रही थी ना?
तभी अंदर चड्डी नहीं पहनी,
तुझे मालूम है मेरी
चाहत"
"अरे.. अरे भूख लगी है ना?.. मुझे पराठे बनाने तो दे"
"तू बेल ना दीदी, तेरे हाथ थोड़े पकड़ रहा हूं. मुझे तो बस मन कर रहा
है इन गोरे गोरे तरबूजों में मुंह मारने का.. अं.. अं.. हं .."
"छोड़ ना, हमेशा करता है ऐसा, मैं यहां रसोई में रोटी बनाती हूं तो पीछे से मेरी साड़ी उठा
कर मेरी गांड चूसने लगता है.. अरे छोड़.. उई ऽ जीभ क्यों डालता है रे अंदर.. गुदगुदी
होती है ना"
"चूसने दे दीदी, मजा आता है.. स्वाद भी मस्त है.. सौंधा सौंधा मेरे
लंड को भी भाता है.. आज उसे भी चखाऊंगा"
"हाय ऽ गांड मारेगा मेरी? परसों ही तो मारी थी रे.. आज मत मार ना ऽ."
"मेरा बस चले तो रोज मारूं दीदी. पर तू कहां मारने
देती है! अब नखरा मत कर. मुझे जरा वो घी का डिब्बा दे, तेरी गांड में चुपड़ दूं."
"अरे.. रुक ना.. मत मार मेरे राजा.. पिछले हफ़्ते मैं
रोटी बना रही थी तब कैसा चिपक गया था मेरे से.. तेरे धक्कों से एक रोटी नहीं बनी
मेरी आधे घंटे, एक दो बनाई वो सब टूट गई.. देख.. तेरे को ही खाने में देर लगेगी.. "
"अभी नहीं मारूंगा दीदी.. वैसे तेरी कसम, अगर जोर की भूख नहीं लगी
होती तो यहीं रसोई में मार लेता तेरी इस प्लटफ़ॉर्म पे दबा के.. अभी बस घी लगा देता
हूं.. बाद में फाल्तू टाइम बरबाद होगा"
"तू मानेगा नहीं..... आज घी से चिकनी कर रहा है मेरे
भाग.. नहीं तो तू है बड़ा बेरहम, पिछली बार सूखी ही मार ली थी.. कितना दुखा था मुझे!
"कुछ दुखा वुखा नहीं था दीदी, सब तेरा नखरा है, कैसे कमर हिला हिला कर मरवा रही थी परसों कि मार भईया
और जोर से मार."
"वो तो भाई तू मेरे बदन से कहीं भी लगता है तो मुझसे
रहा नहीं जाता.. पर दुखता है सच.. आह तेरी उंगली जाती है तो गुदगुदी होती है भईया..
हां ऐसे ही.. और अंदर तक लगा ना.. ओह.. अरे ऽ दुखता है ना.. दो उंगलियां क्यों
डालता है रे दुष्ट?"
"दीदी दो ही तो हैं.. मेरा लंड कैसे ले लेती है?..
वो तो चार उंगली के बराबर है..
हां जरा अपनी साड़ी उठा कर पकड़, बीच में आती है और फ़ालतू पकर पकर मत कर, लगाने दे अंदर तक. चल हो गया"
"अरे ये उंगली क्या चाटता है.. गंदा कहीं का.. गांड
में उंगली की था ना.. अब उसी को.. छी छी"
"घी लगा है दीदी, उसे क्यों बरबाद करूं? और दीदी, तू जानती है कि तेरी कोई बात, तेरा कोई अंग मुझे गंदा नहीं लगता.. मेरा बस चले तो
तेरी गांड में मिठाई भर दूं और फ़िर वहीं से खाऊं"
"छी छी.. दिमाग खराब हो गया है तेरा.. "
"छी छी कर रही है और अपनी जांघें घिस रही है.. मजा आ
रहा है ना दीदी मेरे को तेरी गांड का स्वाद लेता हुआ देख कर?"
"चल बदमाश.. अब खाना बनाने देगा या नहीं?"
"बना ना दीदी, सच अब नहीं रहा जाता, फटाफट पराठे बना ले और फ़िर तू भी मेरे साथ बैठ जा
खाने पे, नहीं तो फ़िर बाद में
खायेगी, साफ़ सफ़ाई में आधा
घंटा बरबाद करेगी और ये तेरा गुलाम, तेरे रूप का मतवाला भाई लंड पकड़कर बैठा रह जायेगा"
.. कुछ देर के बाद..
"चल हो गया भाई, आ जा और खा ले"
"दीदी.. तेरे मुंह से खाऊंगा आज"
"अरे ये क्या हो गया है तेरे को? भूख लगी है ना? तो खा ना हाथ से, वैसे देरी हो जायेगी भाई"
"मैं खा रहा हूं दीदी पर बीच बीच में एक एक निवाला
दे ना तेरे मुंह से, तेरे मुंह के स्वाद से खाने का जायका दूना हो जाता है दीदी"
"ठीक है मेरे राजा.. अं... अं.. ये ऽ ले ऽ "
"और चबा दीदी, जरा मुंह का स्वाद लगने दे.. "
"अं.. क्यां.. नॉलॉ..यंक.. लं.. ड़का है.. अं अं ..
ले"
"मजा आगया दीदी, बस हर दो मिनिट में एक निवाला देती जा.. आज मस्त
पिक्चर लाया हूं.. बेडरूम चल और मेरी बाहों में आ, फ़िर दिखाता हूं, तुझे मजा आ जायेगा"
"सच भईया? पिछले हफ़्ते वाली भी बहुत अच्छी थी..वैसी ही है क्या?"
"थोड़ी अलग है दीदी पर मजा आयेगा तुझे. पिछले वाले
में लंड ही लंड थे, आज बस चूतें ही चूतें हैं."
"अं.. अं.. ले रा.. जा.. ते.. रा.. निवॉला.. फ़िर तेरी
ज्यादा पसंद की है, मुझे क्यों दिखाना चाहता है?
"दीदी नाटक मत कर, उस दिन जिस औरत को वो चार चार मर्द चोद रहे थे,
उस औरत की गोरी गोरी चूत देख
कर कैसे बोल रही थी कि भाई कितनी प्यारी चूत है.. चूसने को मन करता है मेरा भी.. ,
और पिछले महीने वाली पिक्चर देखते वक्त
बोल रही थी कि वो औरत कैसे मस्त चूत चाट रही थी उस लड़की की, काश कोई औरत मेरी भी ऐसी चाटती"
"नालायक.. बहन की बात पकड़ कर रखता है तू.. अब मस्ती में तो कुछ
भी मुंह से निकल जाता है रे.. "
"नहीं दीदी, मस्ती में मन की बात होंठों पर आ जाती है. वैसे इसीलिये आज
बस चूतें और बुरें दिखलाऊंगा तेरे को, तेरी हर खुशी में मेरी खुशी है. अच्छा ये बता दीदी, तेरा मन होता है और किसी से
चुदवाने को? याने तू इतनी गरम है, मैं थक जाता हूं पर तेरी भूख नहीं मिटती, बोल तो इंतजाम करूं कूछ, तेरी जैसी मतवाली माल औरत को चोदने को तो कोई भी
तैयार हो जायेगा खुशी से.. लाऊं आपने यार दोस्तों को? या नौकर रख लूं एकाध, दिन भर तुझे चोदा करेगा."
"भईया.. क्यों अपनी बहन को ऐसे शब्द कह रहा है.. मुझसे
नाराज है क्या.. बोल ना.. तेरे सिवा मैंने किसी की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखा
मेरे राजा और तू.. हं.. "
"अरे बुरा मत मान दीदी, मैं नाराज होकर नहीं कह रहा, सच कह रहा हूं, तुझे मैं हर खुशी देना चाहता हूं.. मैं जानता हूं
कि तेरी तबियत कितनी गरम है.. अगर तेरे मन में और लंडों से चुदवाने का खयाल आता हो
तो ये तेरा अधिकार है दीदी.. अपने मन को मत मार"
ये क्या कहता है भईया.. तेरे सिवा किसी से चुदाने की मैं
सोच भी नहीं सकती.. तू इतना प्यारा है.. मेरा लाड़ला भईया है.. खूबसूरत जवान है....
तुझसे चुदाने में जो मजा है वो और कहां मेरे राजा?"
"वो तो ठीक है दीदी पर तू है बड़ी गरम, एक आदमी से तेरी ये गरमी
ठंडी नहीं होगी. मेरे को मालूम है कि दिन में मैं नहीं होता तब तू तड़पती रहती है
बदन की इस गरमी से, मेरा बस चलता तो दिन भर घर रहता पर दीदी.. नौकरी करना है.. और वैसे भी लंड
आखिर कितनी बार खड़ा होगा.. मुझे कभी कभी लगता है दीदी के तेरे को कम से कम एक और
लंड चाहिये"
"चल अब इस विषय की बात मत कर.. मैं देख लूंगी.. अरे
मैं लाती हूं ना केले और ककड़ी.. तुझे तो मालूम ही है.. भले ही उनमें वो बात न हो
जो.. और तू चूसता भी तो है मेरे राजा.. इतना अच्छा लगता है मुझे बुर चुसवा कर.. मेरी
बुर पूरी खुश हो जाती है.. चल खाना हो गया ना, अब ले चल मुझे. साफ़ सफ़ाई सुबह उठ कर कर लूंगी"
"वा दीदी अभी अभी नखरे कर रही थी और अब खुद ही बेताब
है... क्या बात है.. चूत वाली पिक्चर के नाम से मजा आ रहा है लगता है."
"तू कुछ भी समझ पर चल ना अब."
"चल दीदी, नंगी होकर आजा मेरे कमरे में, मैं तब तक पिक्चर लगाता हूं. आज ब्रा और पैंटी भी
निकाल दे, पूरी नंगी हो जा,
ब्रा पैंटी में तेरे से
मुहब्बत करने का टाइम नहीं है, पिक्चर भी लंबी है."
.. कुछ देर के बाद..
"अरे ये कुरसी में क्यों बैठा है, लेटे लेटे नहीं देखेगा पिछली
दफ़ा जैसे?"
"वो उसमें ठीक से नहीं दिखता दीदी, गर्दन दुखती है"
"अरे पिछली बार तो मजे से देखी थी, याने मैं नीचे पट लेटी थी और
तू मेरे ऊपर चढ़ कर.. बस हिल बहुत रहा था तू.. बार बार बस धक्के लगा रहा था."
"अब लंड तेरी गांड में हो तो धक्के लगाने का मन तो
होगा ही दीदी, इसीलिये आज तुझे गोद में बिठा कर दिखाऊंगा, चल जल्दी आ, ऐसे खड़े हो जा मेरे सामने... अरे ऐसे नहीं, मेरी ओर पीठ करके.. पिक्चर
नहीं देखनी है क्या? चल लंड ले मेरा अपनी गांड में और बैठ गोद में"
"पिक्चर देखनी है भईया पर तू ऐसे बैठता है तो तेरे
ऊपर बैठ कर चोदने में बड़ा मजा आता है मेरे राजा. चोद लेने दे ना एक बार, तेरी कसम. एक बार लंड तूने
पीछे डाला कि आगे की मेरी इस सौतन की तुझे सुध ही नहीं रहती "
"दीदी, अब उतावली न हो, तेरी इस जालिम सौतन की.. चूत के लिये भी इंतजाम किया है दीदी,
ये देख"
"हाय, ये केले कहां से लाया रे? बहुत बड़े हैं, पिछले हफ़्ते तो छोटे वाले लाया था. पर भईया,
वो टूट जाते हैं बार बार..
मजा नहीं आता, और बिना छिले तू डालता नहीं है"
"और क्या दीदी, बिना छिले डाले तो तेरी चूत का रस कैसे लगेगा
उसमें. फ़िकर मत कर, ये आधे कच्चे हैं, टूटेंगे नहीं. वो आज आते आते ये केले दिख गये, मद्रासी केले, एक एक फ़ुट के, ये हैं तेरी चूत के लायक - नहीं तो वो छोटे वाले तो
तेरी चूत ऐसे खा जाती है जैसे... अब बक बक मत कर और आ जा.. हां ऐसे.. लौड़ा तेरी
गांड पर रखता हूं .. अरे चूतड़ पकड़कर खींच ना, जरा छेद खोल.. हां ऐसे.. अब बैठ जा मेरे लंड पर
"ओह.. उई मां.. दुखता है भईया"
दीदी अभी तो बस सुपाड़ा अंदर गया है.. पूरी नीचे बैठ जा मेरी
गोद में.. ये.. अब देख कैसे सप्प से अंदर गया.. आ जा चुम्मा दे मुझे.. तेरे मम्मे
दबाने में मजा आता है दीदी ऐसे गोद में बिठा कर गांड मारते वक्त. ले पिक्चर शुरू
करता हूं"
जोर से दबा ना मम्मे ऽ हाऽ य ऽ कैसा खड़ा है रे तेरा.. दुखता
है.. इतना मोटा है.. लगता है जैसे मेरे पेट में घुस गया है.. कैसा मेरी गांड के
पीछे पड़ा रहता है रे नालायक, ओह.."
"दीदी मैं तो तेरे पूरे बदन के पीछे दीवाना हूं और
खास कर तेरी गांड का.. सच दीदी, किसी भाई को अपनी बहन की गांड मारने में क्या आनंद आता है तू नहीं जानती.. लगता
है कि कोई बड़ा बुरा गंदा सा.. हरामीपन का काम किया जा रहा है.. अब चपर चपर बंद कर
और पिक्चर देख. देख उस लड़की को, तू चपर चपर कर रही थी तब तक वो नंगी भी हो गयी देख"
"कितनी अच्छी लड़की है भईया... बहुत खूबसूरत है ..
देख कैसे मुठ्ठ मार रही है.. अकेली ही है.. तू कहता था कि और भी औरतें हैं इस
पिक्चर में.. ये लड़की छोटी लगती है ना? लगता है स्कूल में है"
"छोटी वोटी कुछ नहीं दीदी, बीस बाईस की होगी.. ये पिक्चर वाले बनी देते हैं
उन्हें ऐसा.. स्कूल की लड़की जैसी चोटी बांध देते हैं.. अब देख उसकी मौसी आई.. देख
कैसे भांजी को प्यार कर रही है.. अब देख पूरा पिक्चर.. अब कुछ देर में लड़की की मां
भी आयेगी."
.. कुछ देर के बाद..
"भईया.. भईया.. जोर से कर ना.. मन नहीं मानता रे.. झड़ा
दे ना मुझको.. वो देख वो छिनाल औरत कैसे अपनी बेटी से जबरदस्ती चूत चुसवा रही है..
वो देख.. कैसे उसके बाल पकड़कर अपनी बुर पर उसका मुंह रगड़ रही है और वो दूसरी औरत..
उसकी मौसी..हाय देख ना भईया.. कैसे उस बच्ची की चूत पर पिल पड़ी है.. भईया.. जोर से
चोद ना मुझे केले से.. कितना जुल्मी है रे.. बस तरसाता जाता है.. बहन की परवा नहीं
है तुझे? ओह ऽ ओह ऽ"
"परवा कैसे नहीं है दीदी, तभी तो ये पिक्चर लाया हूं आज, मुझे पता था तुझे अच्छी
लगेगी. अब ये केला अंदर बाहर तो कर रहा हूं, तू झड़ती नहीं है तो मेरा क्या कुसूर है, ये भी टूट जायेगा अगर ज्यादा
जोर से किया तो, दो केले तो तोड़ चुकी है अब तक, देख कैसे यहां प्लेट पर पड़े हैं.. दीदी देखा ये केले कैसे लगते हैं.. जैसे घी
और शहद में डुबोए हों.. मैं बाद में खाऊंगा दीदी मस्ती ले लेकर... ओह ऽ.. गांड
सिकोड़ती है तो मजा आता है दीदी.... और कर ना.. लगता है कि अभी तेरी कस के मार लूं,
सच दीदी.. तेरी गांड बहुत
गरमा गरम है.. ले नीचे से ही तेरी मारता हूं.. ले.. ले.. ले ऽ"
ओह भईया.. उई मां.. झड़ गयी रे मैं मेरे राजा.. ओह ऽ ओह ऽ
कितना अच्छा लगता है रे.. ओह.. हाय.. पिक्चर खतम हो गयी रे.. उस लड़की पे क्या क्या
करम किया उन दोनों छिनालों ने.. मैं होती तो और करती भईया.. और लगा ना.. और पिक्चर
नहीं है?.. ये वाला ही लगा दे
ना फ़िर से.. वो देखा कैसे वो मौसी उस लड़की के मुंह में मूत भी रही थी.. और वो
मुंहजली भी मजे लेकर पी रही थी जैसे शरबत हो.. तभी तूने झड़ा दिया.. ठीक से देख भी
नहीं पाई.. लगा ना पिक्चर फ़िर से..
"अब कल लगाऊंगा दीदी.. मेरे से सहन नहीं होता.. इन
पिक्चरों में तो कुछ भी दिखाते हैं.. और गंदे गंदे करम होते हैं.. मैं और ले आऊंगा
पर ओह ओह ऽ अब नीचे लिटा कर कायदे से तेरी मारता हूं.. मां कसम क्या गरम है तेरी
गांड दीदी.. ले .. ये ले.. और जोर से पेलूं.. तेरी गां ऽ ड का ऽ.. कचू ऽ.. मर.. बना
ऽ देता ऽ हूं आज.. ये ले.. ओह.. ओह.. ओह.. आह.. आह ऽ ऽ आह ऽ ऽ ऽ"
.. कुछ देर के बाद..
"भईया एक बात कहूं?"
"हां बोलो दीदी, हुकुम करो. आज तो मजा आ गया दीदी तेरी मारने में.. और
वो केले भी क्या जायकेदार थे.. तेरी चूत का रस तो अमरित है दीदी अमरित. बोल क्या
कह रही थी? और पिक्चर ले आऊं
ऐसा ही? क्या बात है दीदी?
चूतें भी भा गयीं आखिर
तुझे."
"हां भईया, कितनी खूबसूरत थी वो दोनो औरतें और वो लड़की तो सच में बहुत
सुंदर थी. मुझे कमला की याद आ गयी भईया."
"कौन कमला दीदी?"
"अरे वो मेरी सहेली, बेचारी का कोई नहीं है,
मां बाप बचपन में ही गुजर
गये ना, वो उसकी मौसी ने ही
पालपोसकर बड़ा किया है, वहीं रहती है, अब शादी की उमर हो गयी है करीब करीब."
"हां तो दीदी? मौसी शादी रचा रही है उसकी?"
"हां भईया.. बोली नहीं पर लगता है मन में है
उसके"
"चलो अच्छा है दीदी, लड़का देख तू भी उसके लिये"
"भईया.. तू कर ले ना उससे शादी."
"मैं शादी वादी नहीं करने वाला दीदी"
"अरे बहुत सुंदर लड़की है, जरा छोटी है, अभी उन्नीस की हुई होगी पर तू हां कहेगा तो मैं मना
लूंगी सब को, आखिर मेरा भईया भी तो जवान है, इतना कमाता है. वो लोग तो उछल पड़ेंगे, उनको भी कहां तुझसे अच्छा लड़का मिलेगा"
"अब दीदी, मैंने पहले ही कहा था कि शादी ब्याह की जरूरत नहीं है मुझे,
तू जो है मेरी हर जरूरत पूरी
करने को. और मैंने तेरे को वो मंगलसूत्र नहीं पहनाया था उस दिन?"
"अरे वो तो ऐसे ही.. बदमाश कहीं का.. मेरे को तेरा
मंगलसूत्र पहना देख कर तेरा लंड ऐसा हो गया था जैसे लोहे की सलाख.. वो बात अलग है भईया..
वो तो मेरे तेरे बीच की बात है"
"पर दीदी, मेरे लिये तो तू ही बहन है, तू ही मेरी बीवी, लुगाई, सब कुछ. अब उस लड़की से शादी करके मैं क्या करूंगा?"
"अरे कर ले ना. सच में बड़ी रूपवती है. तुझे बहुत
पसंद आयेगी. भाभी घर में आये तो मुझे भी कुछ आराम मिलेगा."
"तो क्या मैं तुझे इतना रगड़ता हूं कि तेरे को मेरे
से आराम चाहिये?"
"हंस रहा है ना, हंस, और हंस, तेरे को मालूम है कि तू मुझे चौबीस घंटे रगड़ेगा फ़िर भी मैं तेरे को आशिर्वाद
ही दूंगे मेरे राजा. अरे घर का भी काम होता है, घर के काम को तो जवान भाभी चाहिये ना?"
"ऐसा बोल. पर दीदी, घर में कमला हो ना हो, चोदूंगा तो मैं बस तुझे ही. अब वो बालिका घर में
रहेगी तो उसे पता चल ही जायेगा कि ये भाई अपनी बहन के पीछे दीवाना है. तब वह हाय
तोबा नहीं मचायेगी?"
"अरे मैं सब संभाल लूंगी. उसे बता भी दूंगी."
"अच्छा दीदी? वो शादी को तैयार हो जायेगी अगर उसे पता चलेगा कि
हमारे यहां तो बहन भाई का इश्क चलता है?
"शादी के बाद बताऊंगी. तब बच के कहां जायेगी?
उसकी सुनता कौन है बाद में?
शादी के बाद तो ऐसे जाल में
फ़ंसा दूंगी कि पर मारेगी तो भी उड़ नहीं पायेगी.
"अच्छी डांट डपट के रखेगी? उससे काम करवायेगी दीदी?"
"हां भईया, घर का काम भी करवाऊंगी और.. जरा अपनी भी सेवा
करवाऊंगी."
"अच्छा.. अब समझा. दीदी तू बड़ी चालू चीज है. भाभी से
सेवा करवायेगी, वो पिक्चर वाली सेवा? ओह दीदी, क्या दिमाग पाया है तूने."
"अरे तो क्या हुआ? तू ही कह रहा था ना आज कि दीदी किसी को ले आऊं क्या
चोदने को अगर तेरा मन नहीं भरता. तो अब भाभी ही ले आ, मैं उसी से मन बहला लूंगी."
"पर वो तो मैं किसी मर्द की बात कर रहा था, किसी तगड़े लंड वाले मर्द की.
तेरी हवस क्या वो जरा सी छोकरी पूरी कर पायेगी? तेरे को चाहिये मस्त मूसल जैसा लौड़ा जो कभी ना
झड़े"
"तेरा लंड क्या कम है? चूत में घुसता है तो स्वर्ग ले जाता है भईया और
गांड में.. उई मां ऽ.. हालत खराब कर देता है मेरी, तू नहीं जानता कि जब एक बहन अपने भाई का लंड पा
लेती है तो उसे और कोई लंड नहीं भाता. तेरे बिना मैं किसी से नहीं चुदाऊंगी. हां
कोई प्यारी सी लड़की मिल जाये तो बात और है. बहुत सुकून मिलेगा भईया मुझे. तू नहीं
जानता, तूने जो ये आग लगायी
है मेरे बदन को वो बुझती नहीं है मेरे राजा. जब तू होता है तो अपनी दीदी से चिपटा
रहता है पर दोपहर को जब मैं अकेली होती हूं तो परेशान हो जाती हूं भईया, मुठ्ठ मार कर भी आराम नहीं
मिलता. वो केले, ककड़ी, गाजर - सब नाकारा हो
जाते हैं. और जब तू काम से शहर के बाहर जाता है तो.. मैं पागल सी हो जाती हूं भईया.
ये जो पिक्चर तू लाता है ना, उन्हें देख देख कर अब मेरा भी मन होता है किसी औरत के बदन से बदन लगाने का.
अगर भाभी ले आये तो दोनों काम हो जायेंगे."
"चलो, मेरी दीदी को और कोई तो मिला प्यास बुझाने को पर क्या हुआ दीदी,
एकदम से कमला कैसे खयाल में
आ गयी तेरे? ऐसी क्या खास बात है उसमें? या तेरी बुर कुलबुलाती है उसकी कमसिन जवानी देख कर,अब मेरे को पता चला है कि तेरा कोई भरोसा नहीं दीदी"
"खास बात है ना उसमें. हमारे यहां बहू लानी हो तो
जरा देख भाल कर चुननी पड़ेगी भईया. और कमला में वो सब बातें हैं. वो सुंदर तो है ही,
जरा चालू चीज भी है. मार खा
चुकी है अपनी मौसी से कई बार. असल में एक दो बार पकड़ी गयी थी वहां की नौकरानी चंपा
के साथ कुछ कर रही थी."
"अच्छा! अब समझा. तो कल जैसी पिक्चर में हीरोइन बनने
लायक है?"
"और क्या? पिछली बार जब मौसी ने पकड़ा तो छत पर के कमरे में चंपा की टांगों के
बीच मुंह दे कर बैठी थी बदमाश. मौसी तो हाथ पैर ही तोड़ देती उसके, मैंने ही मना लिया कि शुकर
करो किसी लड़के या मर्द के साथ मुंह काला नहीं किया. तब छोड़ा उसे. फ़िर भी कस के दो
चार जड़ ही दिये थे उसको. रो रही थी तब मैंने मौसी को नीचे भेजा और कमला को मना कर
चुप किया. मुझे लिपट कर सहम कर बैठी ती बेचारी. मैंने तब हौले हौले उसकी छाती भी
टटोल ली भईया, छोटे छोटे हैं मम्मे पर एकदम अमरूद जैसे सख्त हैं, दबाने में मजा आयेगा"
"तेरे को या मेरे को?"
"दोनों को मेरे राजा. मैंने बात करके ये भी जान लिया
कि उसको औरतें बहुत पसंद हैं, तभी तो उस चंपा को दिल दे बैठी. अब वो घर आयेगी तो उसे मनाने में कोई मुश्किल
नहीं होगी भईया. मेरी सेवा करने को आसानी से मान जायेगी वो छोकरी. और उसे भी तो
मैं सुख दूंगी."
"हां दीदी, तू इतनी खूबसूरत है, किसी का भी मन डोल जायेगा."
अरे यही चिंता है मेरे को कि कमला को मैं कैसी लगूंगी.."
"तो वो चंपा कहां विश्व सुंदरी है! मैंने देखा था
पिछले साल जब गांव गया था. गिट्टी सी है, ये बड़े बड़े मम्मे हैं उसके और खाया पिया बदन है. वही तो राज
है दीदी तेरे रूप का, क्या माल भरा है तेरे बदन में, ये मोटे मोटे मम्मे, लटकते हुए, ये गोरी गोरी मोटी टांगें, वो कमला तो निछावर हो जायेगी तुझ पर दीदी."
"सच कहता है भईया? फ़िर बात चलाऊं?"
"जैसा तू ठीक समझे दीदी. पर वो छोकरी क्या सिर्फ़
तुझसे इश्क करेगी? मेरी मतलब है दीदी कि वैसे मुझे तेरे सिवा और किसी की जरूरत नहीं है पर अगर
खूबसूरत माल घर में ही आ जाये और वो भी हक का तो.. फ़िर मुंह मारने का मन तो होगा
ना. वो लड़की कमला अपने सैंया को, एक मरद को - मुझे - मुंह मारने का मौका देगी या नहीं?"
"क्या बात करता है भईया. आखिर तू उसका पति होगा.
तुझे कैसे मना करेगी? और आखिर तू भी तो इतना सजीला नौजवान है. वो लड़की इस तरह की है मेरा मतलब है
औरतों वाली फ़िर भी उसको इतनी तो समझ होगी कि पति की सेज तो उसे सजाना ही है. मैं
भी समझा दूंगी. फ़िर भईया, हम दोनों मिलकर उसे चोदा करेंगे. ये ध्यान रख कि वो अकेली है और हम दो हैं,
जैसा चाहेंगे उस लड़की को
करना पड़ेगा, ना करके जायेगी किधर? और एक बात भईया.."
"क्या दीदी?"
"तेरे को गांड मारने का शौक है ना? मुझे हमेशा कहता है ना कि
मैं रोज नहीं मरवाती! तू उसकी गांड मार लिया कर, चाहे तो सुबह शाम. मुझे थोड़ी राहत मिलेगी उस
मुस्टंडे लंड से.. मेरे को सच में दुखता है भईया"
"तेरी तो मैं जरूर मारूंगा दीदी, भले हफ़्ते में एक बार,
ऐसी मोटी डनलोपिलो की गांड
थोड़े होगी उसकी, बाकी मेरी कमला रानी को मेरा शौक सहना पड़ेगा. पर दीदी, वो तैयार हो जायेगी? नखरा भी कर सकती है, आखिर औरत औरत वाले इश्क में तो गांड का तो कोई रोल
ही नहीं है ना"
"उससे तुझे क्या करना, मैं तैयार करूंगी उसे. भईया ऐसी लड़कियां.. मेरा
मतलब है औरतों पर मरने वाली लड़कियां.. चुदाने में नखरा करती हैं अक्सर.. बुर
चुसवाने में ज्यादा मजा आता है उन्हें.. इसलिये मैं कह दूंगी कि अगर चुदाई से बचना
है तो गांड मरवा लिया कर. अगर नहीं मानेगी तो हाथ पैर मुंह बांध कर तेरे सामने डाल
दूंगी, मारना उसकी जोर से..
थोड़ा रोयेगी धोयेगी शुरू में फ़िर मान जायेगी.. अखिर अपने पसंद की ऐसी ससुराल उसे
कहां मिलेगी जो उसके असले इश्क का खयाल रखती हो?"
"और अपने पसंद की ऐसी मस्त ननद उसे और कहां मिलेगी,
है ना दीदी?.. सच, मजा आ जायेगा दीदी.. पर तेरी गांड भी मैं मारूंगा दीदी...
उसे नहीं छोड़ सकता."
"कहा ना, कभी कभी मार लिया कर, पर ज्यादा उसकी मारा कर जब मन चाहे."
"दीदी, तेरा ये भाई और भाभी मिलकर तेरी सेवा किया करेंगे. जरा
कल्पना कर कि मैं तुझे चोद रहा हूं और वो तुझे अपनी बुर का पानी पिला रही है. या
तेरा भाई तेरी गांड मार रहा है - अच्छा अच्छा नाराज मत हो तूने अभी कहा था कि तेरी
ज्यादा न मारा करूं.. समझ ले मैं तेरी चूंचियां दबा कर तेरे मुंह में लंड देकर
चुसवा रहा हूं और तेरी भाभी तेरे सामने लेटकर अपनी जीभ से ननद की बुर से पानी
निकाल रही है. या जब मैं उसकी गांड मारा करूं, तू अपनी बुर से उसका मुंह बंद कर दिया कर.."
"कैसा करता है रे.. गंदी गंदी बातें सुनाकर फ़िर से
मुझे पानी छूटने लगा."
"तो क्या हुआ दीदी, आ जा बैठ जा मेरे मुंह पर. और देख ले, तेरा पानी पी कर फ़िर से तेरी
गांड मारूंगा आज. मरवा और अपनी भाभी के बारे में सोच. चल आ जा दीदी......."
"आती हूं मेरे राजा, आज तो मैं बहुत खुश हूं, ऐसे मौके पर तो मुंह मीठा करना चाहिये, वो बर्फ़ी ले आऊं?"
"बर्फ़ी वर्फ़ी कुछ नहीं दीदी, देना हो तो तेरा दूध दे दे"
"अरे बार बार वही कहता है, अब दूध कैसे पिलाऊं तेरे को, और भाभी आ रही है ना! दूध पिला देगी एक साल
बाद!"
"उसकी तो फ़िर सोचूंगा, पर दीदी, सच में, मन नहीं मानता, तेरा दूध, तेरे बदन का ये रस पीने को इतना दिल करता है.. लंड साला पागल कर देता है"
"भईया.. वो तू.. मेरा दूध पीने की बात करता है ना
हरदम ? बुर का रस काफ़ी नहीं
पड़ता तेरे को?"
"कहां दीदी.. दूध पीने को मैं इसलिये बेताब हूं कि -
बहुत मन होता है कि पेट भर के पियूं तेरे बदन का रस.. तेरी बुर का रस लाजवाब है पर
बस दो तीन चम्मच ही मिलता है दीदी. बस इसलिये बार बार दूध पिलाने को कहता हूं दीदी
"
"दूध कहां भईया पर.. भईया तुझे अपना.. मेरा मतलब है
एक और बात है मेरे बदन में जो तुझे पेट भर के पिला सकती हूं...."
"क्या दीदी, बोल ना.."
"अरे कैसे बोलूं.. शरम आती है.. तुझे अच्छा ना लगे
तो.. डर लगता है"
"अब बता ना दीदी.. कुछ तो बोल"
"अरे अब क्या बोलूं.. इतनी देर देर तक कहां कहां
मुंह लगाये रहता है मेरे बदन में.. उतनी देर में चाहे तो आरम से कई बार पेट भरके
पी सकता है मेरा लाड़ला.. "
"दीदी.. तेरा मतलब वही है ना जो मैं समझ रहा हूं?
तू यही कह रही है ना कि.. "
"हां भईया.. मेरा मूत पियेगा?"
"दीदी.. दीदी तू सौ साल जिये.. तूने तो मेरे मन की
बात कह दी.. एक दो हफ़्ते से मैं सोच रहा हूं, एक बार लगा कि जबरदस्ती तेरे साथ बाथरूम घुस जाऊं,
फ़िर लगता था कि कैसे कहूं.. तुझे
अटपटा ना लग जाये."
"बहुत आस है रे मेरे मन में.. हमेशा यही सोचती रहती
हूं कि मेरा भाई बहन के बदन के रस के लिये तरस रहा है और मैं उसकी इतनी सी भी इच्छा पूरी नहीं
कर सकती.. इतनी आस है तेरी कुछ पीने की अपने बहन के बदन से और.. और मैं कुछ
नहीं कर रही हूं.. बोल भईया.. पियेगा?"
"चल दीदी, मूत दे मेरे मुंह में अभी यहीं पर.. आ जा दीदी."
"अरे पगला हो गया है क्या.. यहां नहीं.. छलक जायेगा..
पहली बार है.. चल बाथरूम में चल.. पर सोच ले मेरे राजा फ़िर से.. बाद में मौके पर
पीछे हट जायेगा तो.. मैं नहीं सहन कर पाऊंगी भईया"
"सोच लिया दीदी.. कब का सोच कर रखा है मैंने.. कर दे
ना दीदी यहीं पर, जल्दी पिला दे.. मुझसे नहीं रुका जाता अब"
"चल ना मेरे दिल के टुकड़े.. बाथरुम में, आज तो चल, अब तो हमेशा पिलाऊंगी भईया,
फ़िर कहीं भी पी लिया करना.
तू नहीं जानता मेरे राजा, कितनी इच्छा होती है तुझे अपने बदन से.. तेरी हर प्यास बुझाने की मेरे राजा...मैं
तो निहाल हो जाऊंगी आज.. "
"चलो दीदी.. और दीदी आज मेरा यह लंड अब ऐसा खड़ा हो
गया है कि रात भर मारूंगा आज तेरी... मां कसम.. तेरी कसम.. मार मार के आज फ़ुकला कर
दूंगा तेरी गांड.. तेरे बदन का ये अमरित पी कर दीदी.. ऐसा जोश चढे़आ है दीदी मेरे
लंड को सिर्फ़ उसके बारे में सोचने से.. तब जब पी लूंगा तो ये क्या करेगा.. आज तेरी
गांड की खैर नहीं दीदी"
"मार लेना भईया.. कुछ महने की तो बात है, फ़िर भाभी भी आ जायेगी मेरा
दर्द कम करने को."
"दीदी.. एक बात तो बता . वो भाभी को भी पिलायेगी
क्या? वो पिक्चर जैसे?"
"और क्या? उसका भी तो हक है अपनी ननद के बदन पर. मन में बात थी कब से
मेरे, आज पिक्चर में देखा
तो कल्पना करने लगी कि मेरी भाभी है और मैं उसके मुंह में मूत रही हूं, बड़ा मजा आया भईया, फ़िर सोचा कि सिर्फ़ भाभी
क्यों, मेरे भाई को भी शायद
मजा आये. इसलिये सोचा कि कह ही डालूं तुझे.. अब चल भईया, तेरे मुंह में मूतूंगी तभी चैन आयेगा मुझे.. आ जा
मेरे राजा.. आ जा."
"वो कमला पियेगी ना दीदी?"
"पियेगी भईया, झट से पियेगी, मैं पहचान गयी हूं उसको, बड़ी बदमाश छिनाल सी लड़की है, हर चीज करेगी वो ये मुझे यकीन है. और मान लो नहीं
किया तो.. तो भी मैं इसे छोड़ने वाली नहीं भईया.. मुश्कें बांध कर जबरदस्ती भी करनी
पड़े तो करूंगी.. पर लगता है उसकी नौबत नहीं आयेगी"
"दीदी, एक मेरे मन की भी बात सुन ले. ये तो शुरुआत है. तेरी गांड
चूस रहा था ना दीदी? बहुत मस्त स्वाद आता है दीदी. उंगली से घी लगाने के बाद मैंने उंगली चूसी थी,
मजा आ गया दीदी. अब सोच ले,
सिर्फ़ पिलायेगी मुझे अपने
बदन से या.."
"या क्या भईया? बोल ना?"
"खिलाने की नहीं सोची? सच दीदी, तेरे बदन से मैं खाना भी चाहता हूं."
"कैसी गंदी बात करता है रे.. नालायक.."
"अब इसमें गंदा क्या है? आज मैंने नहीं कहा था कि लगता है तेरी गांड में
मिठाई भर दूं और वहीं से खा लूं?"
"वो.. अच्छा उसकी बात कर रहा है.. मेरे को लगा.. "
"तुझे क्या लगा दीदी? बोल? बोल ना. अब गंदी बात कौन सोच रहा है?"
"चल बदमाश.. वैसे बुर में केला तो तू रोज डालता है
और खाता है.. "
"बस वैसे ही केला गांड में डाल दूंगा.. वो पिछले
हफ़्ते जब तू हलुआ बना रही थी दीदी.. और मैं वहीं खड़ा खड़ा तेरी गांड मार रहा था.. याद
आया?"
"याद कैसे नहीं आयेगा मूरख.. वो कढ़ाई उलटते उलटते
बची थी नालायक"
"बस उस दिन मन में आ गया कि अगर वो हलुआ तेरी गांड
में भर दूं और वहां से खाऊं तो क्या मजा आयेगा"
"अच्छा ये बात है.. तभी एकदम से बीच में हुमक कर झड़
गया था.. मैं भी अचरज में पड़ गयी थी कि आज क्या हुआ नहीं तो आधे घंटे तक मारे बिना
मेरे को नहीं छोड़ता कभी.. ओह.. ओह.. कैसी कैसी बातें करने लगा रे तू अब.. देख ये
बुर फ़िर बहने लगी"
"बहेगी ही, आखिर मेरी चुदैल बहन की बुर है! आखिर भाई को खिलाने में किस
बहन को मजा नहीं आता दीदी? सोच ले, मैं इंतजार करूंगा दीदी."
"हां सोचूंगी मेरे राजा सोचूंगी, तू तो पागल है, पर अब चल ना, जल्दी चल बाथरूम में"
"चल दीदी, उठा के ले चलता हूं."
समाप्त
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.